
अमेरिका की बेशर्मी और मौका परस्ती एक बार फिर दुनिया के बड़े हिस्से के लिए मुसीबत का कारण बन रही है खासतौर पर दक्षिण एशिया में इस्लामिक आतंकवाद का चेहरा बन चुके तालिबान के हाथों बड़ी संख्या में अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक और उनकी मनमानी का विरोध करने वाले निर्दोष मुसलमान मारे जा रहे हैं इतना ही नहीं हैवानियत की सीमाओं को पार करते हुए तालिबान आतंकवादियों ने अफगानिस्तान सेना के उन फौजियों की भी सामूहिक हत्या का वीडियो जारी किया है जिन फौजियों ने हथियार छोड़कर तालिबान के आगे सरेंडर कर दिया था।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका और दुनिया के दूसरे ताकतवर देशों कि बेशर्म खामोशी के दम पर तालिबान लगातार अफगानिस्तान के अलग-अलग शहरों में नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों का कत्लेआम करते हुए आगे बढ़ रहा है और 80 फ़ीसदी से ज्यादा तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा करके काबुल और कंधार जैसे बड़े शहरों को भी अपने कब्जे में लेने में जुटा है ।

अफगानिस्तान में बेशर्मी के साथ अधूरा युद्ध छोड़कर भागने वाले अमेरिका ने एक बार फिर अफगानिस्तान को अपने स्वार्थों के लिए आतंकवाद की आग में झोंक दिया है । आज दुनिया भर में यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्यों जिस तालिबान का खात्मा करने की कसमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने खाई थी बराक ओबामा ने जिस अभियान को आगे बढ़ाया था उसे नतीजे के बगैर वापस लेने का फैसला करने वाले डोनाल्ड ट्रंप और उस फैसले को लागू करने वाले जॉन बाईडन ने अमेरिका को बहादुर देश के स्थान पर कायर देश की पहचान देने का काम किया है ।

40 देशों की ताकत रखने वाले अमेरिकी सैन्य गठबंधन नाटक नाटो के सुरक्षाबलों ने जहां कुछ सालों पहले अफगानिस्तान से आतंकवाद को समाप्त करके वहां शांतिपूर्ण लोकतंत्र स्थापित करने का संकल्प लिया था उसी अफगानिस्तान को और वहां के लाखों लोगों को आतंकियों के हाथों मरने के लिए छोड़ कर आज नाटो और अमेरिकी फोर्स अधूरा युद्ध छोड़कर तेजी से भाग रही हैं। अमेरिका और नाटो की कायरता सबसे ज्यादा दक्षिण एशिया पर भारी पड़ने वाली है और इसका सबसे ज्यादा नुकसान अफगानिस्तान के साथ-साथ पाकिस्तान भारत कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान समेत कई पड़ोसी देशों के नागरिकों और सरकारों को उठाना पड़ेगा ।
ना चाहते हुए भी दुनिया के कई देशों को तालिबान से अपनी सीमाओं की सुरक्षा को बेहतर बनाने की नई रणनीतियों पर काम करना पड़ेगा जिसकी वजह से इलाके में हथियारों की होड़ और हिंसक संघर्षों को बढ़ावा मिलेगा ।
लेकिन अमेरिका ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि अपने छोटे फायदों के लिए विवाह दुनिया को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है।
इंटरनेशनल डेस्क ‘द इंडियन ओपिनियन’