
पचपेड़वा से तकरीबन 17 किलोमीटर दूर भारत नेपाल सीमा पर स्थित ग्राम पंचायत परसरामपुर आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। यहां पर सड़क, बिजली, स्वास्थ्य जैसी मूल सुविधाओं की नितांत कमी है। भले ही देश की आजादी को 75 साल बीत चुके हों, लेकिन यहां के रहवासी आज भी सामाजिक और आर्थिक आजादी की प्रतीक्षा में अपनी आंखें पत्थरा रहे हैं।
ग्रामप्रधान शेखर पांडे ने बताते हैं कि किसी प्रकार की सुविधा मेरे ग्राम पंचायत में अब तक सरकार द्वारा नहीं दी गई है। परसरामपुर, गिद्दहवा, बनगांव 3 गांव मिलाकर परसरामपुर ग्रामसभा बनता है। गांव की आबादी ढाई हजार है। यहां वोटरों की संख्या तकरीबन 1300 है।

ग्रामीण बताते हैं कि 1984 में गांव में बिजली का खंभा लगाया गया था। उस समय कुछ दिन तक बिजली जली। लेकिन उसके बाद 2002 तक के लिए बिजली नहीं आई। फिर 2002 में कुछ दिन के लिए ग्रामवासियों को लाइट मिली। उसके बाद आज तक गांव में पूरी तरह से अंधेरा है।
ग्रामीण बताते हैं कि सोलर के माध्यम से कुछ उजाला तो हुआ लेकिन अब वो भी खराब हो रहे हैं। गांव में आज तक सरकारी बोरिंग नहीं लगाया गया है। अर्रा नाले के पानी से ही खेतों की सिंचाई होता है। सबसे बड़ी समस्या ग्राम वासियों के आवागमन में है। यहां 3 किलोमीटर घने जंगलों के बीच से होकर आवागमन करना होता है लेकिन सड़क की कोई व्यवस्था नहीं है। ऊपर से जंगली जानवरों का खतरा भी बना रहता है।
ग्राम पंचायत में प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं। लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को 20 किलोमीटर दूर पचपेड़वा जाना पड़ता है। ग्राम पंचायत से 3 किलोमीटर दूर रेहरा में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है। लेकिन प्रथम उपचार के लिए ग्रामीणों को सौ मीटर दूर नेपाल राष्ट्र जाना पड़ता है।
परसरामपुर गांव के विकास के बारे में बात करते हुए स्थानीय विधायक शैलेश सिंह शैलू कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार में तमाम सीमावर्ती इलाकों में विकास करवाया गया है। यह गांव चूकिं सोहेलवा वन्यजीव क्षेत्र के अंतर्गत आता है, इसलिए यहां पर अभी तक सड़क नहीं बन पाई है। जबकि बिजली, पानी की व्यवस्था के लिए लगातार कार्रवाई की जा रही है। प्राथमिक उपचार के लिए ग्रामीणों को समस्या ना हो इसलिए रेहरा में पीएचसी संचालित है।
रिपोर्ट – योगेंद्र त्रिपाठी, बलरामपुर