
एग्रीकल्चर डेस्क द इंडियन ओपिनियन
विश्वजीत शर्मा
एमएससी एग्रीकल्चर
केले के किसान हो जाए सावधान एक छोटी सी गलती पड़ बन जाएगी नुकसान का कारण।
केला भारत में एक प्रमुख फल के रूप में लोकप्रिय है साथ ही इसकी खेती आर्थिक रूप से किसानो को मज़बूत भी बनाती है, जिस कारण पिछले कुछ दशकों में देश के अलग-अलग हिस्सों में किसानों में भी इसकी खेती के प्रति काफी उत्साह देखा जा रहा है क्योंकि यह अच्छा मुनाफा देने वाली फसल है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में केले की फसल को भी कई बीमारियों से जूझना पड़ रहा है।

ज्यादातर किसानों को इस फसल में लगने वाली बीमारियों के बारे में जानकारी नहीं है ।जहां फसल को बचाने में जरा सी लापरवाही हुई वहां किसानों को भारी नुकसान भी हो रहा है । फिलहाल हम एक खास बीमारी के बारे में बात कर रहे हैं जिसमें केले के पत्ते पहले पीले होते हैं फिर सूखने लगते हैं उसके बाद पूरा पौधा ही नष्ट होने लगता है।
सिगाटोका :- यह एक फफूँद जनित रोग है। जो केले में लगने वाली एक प्रमुख बीमारी है इसके प्रकोप से पत्ती के साथ साथ घेर के वजन एवं गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। शुरू में पत्ती के उपरी सतह पर पीले धब्बे बनना शुरू होते है जो बाद में बड़े भूरे परिपक्व धब्बों में बदल जाते है।जिस कारण पौधा सुख कर मर जाता है
रोगजनक: स्यूडोसेर्कोस्पोरा मुसीकोला
प्रकोप का समय :- उच्च आर्द्रता, भारी ओस और बरसात के मौसम में 21 डिग्री सेल्सियस ( उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से नवम्बर माह के मध्य से शुरू होता है )

सिगाटोका रोग के लक्षण
1:-इस रोग के शुरुआत में केले के पत्तों पर पीले रंग के अंडाकार धब्बे बन जाते हैं।
2:-धीरे – धीरे इन धब्बों की संख्या एवं आकार में वृद्धि होने लगती है।
3:-धब्बों का रंग पीला से गहरा भूरा में बदल जाता है।
4:-रोग का प्रकोप अधिक होने पर पत्ते सूखने लगते हैं।
5:-इस रोग से ग्रस्त पौधों के फल भी आकार में छोटे रह जाते हैं।
6:-समय से पहले फल पक जाते हैं और फलों की गुणवत्ता कम हो जाती है।
रोग से बचाव के उपाय:-
1:-इस रोग से प्रभावित क्षेत्रों से केले की खेती हेतु कंद न लें ।
2:- खरपतवार को समाप्त कर उचित सफ़ाई का ध्यान रखें ।
3:-केले के खेत में जल भराव ना होने दे ।
जैविक उपचार :- फ़ंगल गॉर्ड दवा की 2ml / L. की दर से 2 स्प्रे से रोग की रोकथाम हो जाती है इसके उपरांत मैजिकल ग्रो व पी॰जी॰आर॰ नम्बर 1 का स्प्रे करने से पौधा स्वस्थ होकर बढ़ना शुरू कर देता है और रोग से होने वाली क्षति को कम करता है।
केले की फसल में या बीमारी देखते ही विशेषज्ञ से संपर्क करें जहां तक संभव हो सके हर्बल ( जैविक ) दवाओं का ही प्रयोग करें समय से देखभाल के जरिए इस बीमारी से नियंत्रण पाया जा सकता है और फसल में बेहतर उपज और लाभ हासिल किया जा सकता है।