
देश में 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है।देवघर का बैद्यनाथ धाम पौराणिक मान्यता है। कि माता सती के 52 खंडों में माता सती का हृदय यहां गिरा था। मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल की जगह पंचशील मौजूद है। मानता है।कि इसके दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। कहा जाता है। कि मां सती के शरीर के 52 खंडों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने भैरव नियुक्त किए। यहां मां सती का हृदय गिरा। इसलिए इसे हृदय पीठ शक्तिपीठ भी कहते हैं।
माता के हृदय की रक्षा के लिए जिस भैरव को नियुक्त किया। उसका नाम बैजनाथ था। जब रावण शिवलिंग लेकर यहां पहुंचा तो भगवान ब्रह्मा विष्णु ने शिवलिंग का नाम बैद्यनाथ रख दिया। शक्तिपीठ के नामकरण को लेकर एक मान्यता यह भी है। कि त्रेतायुग में बैजू नाम एक शिवभक्त था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने अपने नाम के आगे बैजू जोड़ लिया। जिसके कारण यहां का नाम बैजनाथ पड़ा और बैजनाथ बैद्यनाथ भी कहा जाता है।
शिव को लंका में बसाना चाहता था। रावण
शिवभक्त रावण चाहता था।कि शिव कैलाश छोड़कर लंका में रहें। इसके लिए उसने कैलाश में घनघोर तपस्या की। एक-एक कर अपने सिर शिवलिंग पर चढ़ाने लगा। जैसे ही वह दसवां सिर काटने चला। भगवान प्रकट हो गए। और वरदान मांगने का कहा। रावण ने शिव को लंका चलने की इच्छा बताई। शिव ने मनोकामना पूरी की। साथ ही शर्त भी रखी। इसके अनुसार रावण को बीच में कहीं भी शिवलिंग रखना नहीं था। देवघर के पास आकर रावण ने शिवलिंग नीचे रखा। और वह वही जम गया।इस तीर्थ को रावणेश्वर धाम भी कहा जाता है।
पंचशूल की मान्यताएं-
इस ज्योतिर्लिंग में त्रिशूल नहीं बल्कि पंचशूल है। इसको लेकर अलग-अलग मान्यताएं है। कुछ लोगों का मानना है। पंचशूल मानव शरीर के पांच विकार काम, क्रोध,मद, लोभ, मोह को नाश करने का प्रतीक है। तो कुछ लोग पंचशूल पंचतत्वों क्षिति जल पावक गगन समीर से बने मानव शरीर को द्योतक मानते हैं। पंचशूल को सुरक्षा कवच के रूप में भी मानता है। इस कारण आज तक मंदिर पर किसी भी प्रकार की आपदा नहीं आई है।
कांवड़िए तय करते हैं। 105 किमी सफर इस ज्योतिर्लिंग में जलभिषेक का विशेष महत्व है। इसके लिए सावन में भक्त 105 किमी का कठिन पैदल यात्रा कर। सुल्तानगंज में बह रही उत्तर वाहिनी गंगा के जल लेकर बाबा का जलाभिषेक करते हैं।