राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का अयोध्या दौरा, बोले- राम के बिना अयोध्या की कल्पना संभव नहीं।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद रविवार को भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या पहुंचे। ज्ञानी जैल सिंह के बाद 38 साल में पहली बार भारत के कोई राष्ट्रपति अयोध्या पहुंचे हैं। राष्ट्रपति ने इस दौरान रामायण कॉन्क्लेव का शुभारंभ किया। बोले, बिना राम के अयोध्या नगरी की कल्पना करना भी मुमकिन नहीं है। राम के बिना अयोध्या है ही नहीं। अयोध्या तो वहीं है जहां प्रभु श्री राम हैं। इसके बाद राष्ट्रपति ने हनुमानगढ़ी में पूजा अर्चना की।
इस दौरान देश की प्रथम महिला सविता कोविंद, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और डॉ. दिनेश शर्मा भी मौजूद रहे। रामायण कॉन्क्लेव के शुभारंभ समारोह में लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने गीतों की शानदार प्रस्तुति दी। पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों ने जय श्री राम का जय घोष किया।


महामहिम परिवार के साथ रामलला का दर्शन करने पहुंचे हैं। यहां रामलला की आरती की। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी की रामलला की आरती की। मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास व सहायक पुजारी संतोष तिवारी ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूजन कराया। वहीं, दोनों डिप्टी सीएम व पर्यटन मंत्री नीलकंठ तिवारी भी मौजूद रहे। परिसर में ही रुद्राक्ष के पौधे का रोपण किया। इसके साथ ही राम मंदिर का निर्माण कार्य देखा।
आपको बता दे कि यहां पर महामहीम द्वारा 12 बड़ी बाते कही गई
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामकथा के बारे में कहा है, ‘रामकथा सुंदर करतारी, संसय बिहग उड़ावनि-हारी।’ मतलब राम की कथा हाथ की वह मधुर ताली है, जो संदेहरूपी पक्षियों को उड़ा देती है।


गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि रामायण और महाभारत, इन दोनों ग्रन्थों में, भारत की आत्मा के दर्शन होते हैं। यह कहा जा सकता है कि भारतीय जीवन मूल्यों के आदर्श, उनकी कहानियां और उपदेश, रामायण में समाहित हैं। रामायण ऐसा विलक्षण ग्रंथ है, जो रामकथा के माध्यम से विश्व समुदाय के समक्ष मानव जीवन के उच्च आदर्शों और मर्यादाओं को प्रस्तुत करता है। मुझे विश्वास है कि रामायण के प्रचार-प्रसार हेतु उत्तर प्रदेश सरकार का यह प्रयास भारतीय संस्कृति तथा पूरी मानवता के हित में महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। राम के बिना अयोध्या… अयोध्या है ही नहीं। अयोध्या तो वहीं है, जहां राम हैं। इस नगरी में प्रभु राम सदा के लिए विराजमान हैं। इसलिए यह स्थान सही अर्थों में अयोध्या है।


अयोध्या का शाब्दिक अर्थ है, ‘जिसके साथ युद्ध करना असंभव हो’। रघु, दिलीप, अज, दशरथ और राम जैसे रघुवंशी राजाओं के पराक्रम व शक्ति के कारण उनकी राजधानी को अपराजेय माना जाता था। इसलिए इस नगरी का ‘अयोध्या’ नाम सर्वदा सार्थक रहेगा।
रामायण में दर्शन के साथ-साथ आदर्श आचार संहिता भी उपलब्ध है जो जीवन के प्रत्येक पक्ष में हमारा मार्गदर्शन करती है। संतान का माता-पिता के साथ, भाई का भाई के साथ, पति का पत्नी के साथ, गुरु का शिष्य के साथ, मित्र का मित्र के साथ, शासक का जनता के साथ और मानव का प्रकृति व पशु-पक्षियों के साथ कैसा आचरण होना चाहिए? इन सभी आयामों पर, रामायण में उपलब्ध आचार संहिता, हमें सही मार्ग पर ले जाती है।
रामचरितमानस में एक आदर्श व्यक्ति और एक आदर्श समाज दोनों का वर्णन मिलता है। रामराज्य में आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ आचरण की श्रेष्ठता का बहुत ही सहज और हृदयग्राही विवरण मिलता है। ‘नहिं दरिद्र कोउ, दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध, न लच्छन हीना।’
ऐसे अभाव-मुक्त आदर्श समाज में अपराध की मानसिकता तक विलुप्त हो चुकी थी। दंड विधान की आवश्यकता ही नहीं थी। किसी भी प्रकार का भेद-भाव था ही नहीं। कहा गया है, ‘दंड जतिन्ह कर भेद जहँ, नर्तक नृत्य समाज। जीतहु मनहि सुनिअ अस, रामचन्द्र के राज।’


रामचरित-मानस की पंक्तियां लोगों में आशा जगाती हैं। प्रेरणा का संचार करती हैं और ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं। आलस्य एवं भाग्यवाद का त्याग करके कर्मठ होने की प्रेरणा अनेक चौपाइयों से मिलती है। एक चौपाई है, ‘कादर मन कहुं एक अधारा, दैव दैव आलसी पुकारा।’ मतलब, ‘यह दैव तो कायर के मन का एक आधार है यानि तसल्ली देने का तरीका है। आलसी लोग ही भाग्य की दुहाई दिया करते हैं। ऐसी सूक्तियों के सहारे लोग जीवन में अपना रास्ता बनाते चलते हैं।’
रामायण में राम निवास करते हैं। इस अमर आदिकाव्य रामायण के विषय में स्वयं महर्षि वाल्मीकि ने कहा है- ‘यावत् स्था-स्यन्ति गिरय: सरित-श्च महीतले
तावद् रामायण-कथा लोकेषु प्र-चरिष्यति।’ मतलब, ‘जब तक पृथ्वी पर पर्वत और नदियां विद्यमान रहेंगे, तब तक रामकथा लोकप्रिय बनी रहेगी।’
रामकथा की लोकप्रियता भारत में ही नहीं बल्कि विश्वव्यापी है। उत्तर भारत में गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित-मानस, भारत के पूर्वी हिस्से में कृत्तिवास रामायण, दक्षिण में कंबन रामायण जैसे रामकथा के अनेक पठनीय रूप प्रचलित हैं।
विश्व के अनेक देशों में रामकथा की प्रस्तुति की जाती है। इन्डोनेशिया के बाली द्वीप की रामलीला विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मालदीव, मारिशस, त्रिनिदाद व टोबेगो, नेपाल, कंबोडिया और सूरीनाम सहित अनेक देशों में प्रवासी भारतीयों ने रामकथा व रामलीला को जीवंत बनाए रखा है। रामकथा का साहित्यिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव मानवता के बहुत बड़े भाग में देखा जाता है। भारत ही नहीं विश्व की अनेक लोक-भाषाओं और लोक-संस्कृतियों में रामायण और राम के प्रति सम्मान और प्रेम झलकता है।
मैं तो समझता हूं कि मेरे परिवार में जब मेरे माता-पिता और बुजुर्गों ने मेरा नाम-करण किया होगा तब उन सब में भी संभवतः रामकथा और प्रभु राम के प्रति वही श्रद्धा और अनुराग का भाव रहा होगा जो सामान्य लोकमानस में देखा जाता है।

रामायण में राम-भक्त शबरी का प्रसंग सामाजिक समरसता का अनुपम संदेश देता है। महान तपस्वी मतंग मुनि की शिष्या शबरी और प्रभु राम का मिलन, एक भेद-भाव-मुक्त समाज व प्रेम की दिव्यता का अद्भुत उदाहरण है। निषादराज के साथ प्रभु राम का गले मिलना और उन दोनों का मार्मिक संवाद, समरसता, सौहार्द और प्रेम की उत्कृष्टता का अनुभव कराता है। अपने वनवास के दौरान प्रभु राम ने युद्ध करने के लिए अयोध्या और मिथिला से सेना नहीं मंगवाई। उन्होंने कोल-भील-वानर आदि को एकत्रित कर अपनी सेना का निर्माण किया। अपने अभियान में जटायु से लेकर गिलहरी तक को शामिल किया। आदिवासियों के साथ प्रेम और मैत्री को प्रगाढ़ बनाया। प्रभु राम द्वारा ऐसे समावेशी समाज की रचना, सामाजिक समरसता व एकता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो हम सबके लिए आज भी अनुकरणीय है।
सार्वजनिक जीवन में प्रभु राम के आदर्शों को महात्मा गांधी ने आत्मसात किया था। वस्तुतः रामायण में वर्णित प्रभु राम का मर्यादा-पुरुषोत्तम रूप प्रत्येक व्यक्ति के लिए आदर्श का स्रोत है।
गांधीजी ने आदर्श भारत की अपनी परिकल्पना को रामराज्य का नाम दिया है। बापू की जीवन-चर्या में राम-नाम का बहुत महत्व था। मैं कामना करता हूं कि जिस प्रकार रामराज्य में सभी लोग दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों से मुक्त थे उसी प्रकार हमारे सभी देशवासी सुखमय जीवन व्यतीत करेंगे।


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रभु श्री राम का वंदन किया। कहा, श्री राम तो जन-जन के हैं। अगर किसी भी नाम के आगे सर्वाधिक शब्द का प्रयोग हुआ है तो वह भगवान राम का नाम है। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति के नाम का भी जिक्र किया। बोले- राष्ट्रपति के नाम के आगे भी श्री राम का नाम जुड़ा हुआ है। योगी आदित्यनाथ ने कहा, करोड़ों लोगों की अस्था और रोम-रोम में प्रभु श्री राम बसे हैं। इसी आस्था के चलते अयोध्या में प्रभु श्री राम के मंदिर का निमार्ण कार्य शुरू हो पाया।
परिवार के साथ महामहिम ने किए रामलला के दर्शन, लगाया रुद्राक्ष का पौधा महामहिम ने परिवार के साथ कोतवाल हनुमागढ़ी में हनुमंतलाल और रामजन्म भूमि परिसर में विराजमान रामलला का दर्शन किया। यहां रामलला की आरती की। इस दौरान उनके साथ मौजूद राज्यपाल आनंदीबेन पटेल व सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी रामलला की आरती की। मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास व सहायक पुजारी संतोष तिवारी ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूजन कराया। वहीं, दोनों डिप्टी सीएम व पर्यटन मंत्री नीलकंठ तिवारी भी मौजूद रहे। महामहिम ने परिसर में ही रुद्राक्ष के पौधे का रोपण किया। इसके साथ ही राम मंदिर का निर्माण कार्य देखा। बता दें, रुद्राक्ष एक औषधीय वृक्ष है और आयुर्वेद में भी उसका विशिष्ट स्थान है। एक साल पहले 5 अगस्त को राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन कार्यक्रम में आए प्रधानमंत्री मोदी ने रामजन्म भूमि परिसर में पारिजात का पौधा लगाया था।
महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद प्रेसिडेंशियल ट्रेन से लखनऊ के लिए रवाना हो गए हैं। उनके साथ ही राज्यपाल आनंदीबेन पटेल व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लखनऊ के लिए रवाना हुए।

रिपोर्ट – आर डी अवस्थी

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