
वैसे तो जनप्रतिनिधि और अधिकारी दोनों ही पिछले कुछ दशकों में अपने पद की गरिमा को लेकर संवेदनशीलता नहीं बरत रहे हैं, अक्सर कहीं नेताओं तो कहीं अधिकारियों की हरकत से विवाद होते हैं व्यवस्था शर्मसार होती है।

लेकिन प्रतापगढ़ में एक ऐसी घटना हुई है जिसकी वजह से पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था का सिर शर्म से झुक गया है यहां भारतीय जनता पार्टी के विधायक ने आरोप लगाया है कि जिले के पुलिस अधीक्षक ने उन्हें सरेआम मारा-पीटा और गोली मारने की धमकी भी दे दी।
दरअसल भारतीय जनता पार्टी के विधायक धीरेन्द्र ओझा रानीगंज विधानसभा क्षेत्र के निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं उनका आरोप है कि आज वह जिलाधिकारी से किसी विषय पर मिलने आए थे और वहां पुलिस अधीक्षक भी मौजूद थे उनका कहना है कि पुलिस अधीक्षक ने उनके साथ मारपीट की उन्हें बेइज्जत किया और गोली से उड़ा देने की धमकी भी दी।

विधायक पुलिस अधीक्षक की दहशत से इस कदर परेशान थे कि अपने कपड़े उतार कर सड़क पर लेट लेट कर चिल्लाने लगे। कुल मिलाकर जो दृश्य दिखाई पड़ रहा था वह लोकतंत्र को शर्मसार करने वाला था और सबसे ज्यादा किरकिरी भारतीय जनता पार्टी की हुई, क्योंकि एक तो प्रदेश में उनकी सरकार है दूसरी तक उनके ही विधायक जिले के कप्तान पर पिटाई करने का आरोप लगा रहे हैं।
आज दिनभर यह सियासी ड्रामा देश प्रदेश की बड़ी खबरों का हिस्सा बना हुआ है। इस घटना के बाद प्रतापगढ़ के डीएम ने विधायक और पुलिस अधीक्षक के बीच में समझौता कराने का प्रयास भी किया है, जिसके बाद विधायक जी का मोबाइल नहीं उठ रहा है।

वही प्रतापगढ़ के पुलिस अधीक्षक आकाश तोमर ने एक प्रेस नोट जारी करके विधायक पर झूठे आरोप लगाने का आरोप लगा दिया है।
एसपी आकाश तोमर के द्वारा जारी किए गए सूचना के अनुसार बीजेपी के विधायक सरासर झूठ बोल रहे हैं , उन्होंने विधायक के साथ कोई अभद्रता नहीं की है।

वही प्रतापगढ़ के भाजपा जिलाध्यक्ष ने द इंडियन ओपिनियन को बताया कि विवाद को सुलझा लिया गया है और विधायक जी ने जो भी गंभीर आरोप जिले के एसपी पर लगाए गए थे वह सारे आरोप थोड़ी ही देर में अपने आप वापस ले लिए हैं। इस घटना का यह पहलू भी बहुत शर्मनाक है कि यदि विधायक ने जिले के एसपी पर अपने स्वार्थ में झूठे आरोप लगाए गए थे तो उन्होंने अपने पद की गरिमा और लोकतांत्रिक व्यवस्था को कलंकित किया है और यदि विधायक के आरोप सही थे तो जिले के एसपी ने अपने पद की गरिमा और लोकतांत्रिक व्यवस्था को कलंकित किया है।

अब यह विवाद शांत होने की बात कही जा रही है लेकिन यहां पर फिर एक प्रश्न खड़ा होता है कि क्या विधायक ने झूठ बोला था और एक वरिष्ठ अधिकारी पर झूठे आरोप लगाए थे, तो फिर क्यों ना झूठ बोलने के लिए झूठे आरोप लगाने के लिए विधायक के खिलाफ कार्रवाई की जाए और यदि विधायक ने सत्य बोला था और किसी दबाव में अपने आरोप वापस लिए हैं तो विधायक के आरोपों की निष्पक्ष जांच कराकर कार्रवाई होनी चाहिए।
फिलहाल वायरल वीडियो पूरे देश में उत्तर प्रदेश की राजनीति और उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था को जरूर शर्मसार कर रहा है। उत्तर प्रदेश की सरकार चलाने वालों को साथ ही साथ भाजपा का संगठन चलाने वालों को जरूर इस वायरल वीडियो के साथ-साथ विधायक और पुलिस अधीक्षक के बीच चल रही नूरा कुश्ती पर सामने आकर जनता को कोई कहानी बतानी चाहिए।
रिपोर्ट – प्रतापगढ़: राजेन्द्र मिश्रा / लखनऊ: दीपक मिश्रा