रिपोर्ट – राम प्रकाश त्रिपाठी,
अयोध्या। भगवान श्री राम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण हो और यह शताब्दियों तक सुरक्षित रहे, इसके हर संभव प्रयास हो रहे हैं। किसी भी भवन के निर्माण के लिए सबसे अहम हिस्सा होता है उसकी नींव।
इस समय श्री रामजन्मभूमि निर्माण समिति की प्रमुख चिंता मंदिर का आधार तैयार करना है, इसके लिए विशेषज्ञों की राय लेने का क्रम बना हुआ है। मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी लार्सन और टुब्रो कारपोरेशन के पास है। निर्माण करने वाली कंपनी ने मंदिर का आधार तैयार करने के लिए कैसे आगे बढ़ा जाए और आधार कैसा हो, इसके लिए केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) से सहयता और सहयोग मांगा है। केंद्र सरकार भी मंदिर को लेकर सजग है और सुरक्षा की दृष्टि से इसके डिजाइन पर उसका विशेष ध्यान है।
बताते चलें कि मंदिर निर्माण में आधार के निर्माण के बाद राह आसान हो जाएगी और केवल तराशे गए पत्थरों को जोड़ने का कार्य ही करना होगा, क्योंकि मंदिर का डिजायन तैयार करने वाले प्रसिद्ध वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा और उनके पुत्रों निखिल और आशीष सोमपुरा ने मंदिर के निर्माण में पत्थरों के तराशने के लिए ऐसी व्यवस्था की है, जिससे केवल पत्थरों को लगाने का कार्य ही करना शेष रह जाएगा। इस संबंध में सीबीआरआई रुड़की के मुख्य वैज्ञानिक शांतनु सरकार ने बताया कि सीबीआरआई के निदेशक एन गोपाल कृष्णन के नेतृत्व में सात वैज्ञानिकों का दल मंदिर के आधार का रचनात्मक तथा संरचात्मक प्रारूप बनाने पर काम कर रहे हैं।
नींव बनाने में क्या कुछ करना है, इसके लिए केवल मिट्टी की जांच ही नहीं की जा रही है, बल्कि इस क्षेत्र में अब तक आई प्राकृतिक आपदा, उससे हुए नुकसान का भी अध्ययन किया जा रहा है। किसी भी भवन को सर्वाधिक क्षति भूकंप से होती है, इसलिए मिट्टी की जांच के साथ ही इस क्षेत्र में आए भूकंपों का ब्यौरा भी सीबीआरआई अध्ययन कर रही है। उनकी जांच पड़ताल में लगभग छह माह का समय लगने का अनुमान है। अध्ययन और अनुसंधान के बाद ही नींव का काम प्रारंभ हो पाएगा।
बताते चलें की सीबीआरआई ने ही राम लला के लिए आग और पानी दोनों से सुरक्षा करने वाला टेंट भी तैयार किया था, जिससे राम लला के विग्रह का मौसम की मार से बचाव संभव हुआ था। मेकशिफ्ट स्ट्रक्चर वाले इस टेंट को इस तरह से तैयार किया गया था कि सर्दी और गर्मी से बचाव के साथ ही मंदिर में होने वाले यज्ञ-हवन के समय प्रज्ज्वलित होने वाली अग्नि से भी उस क्षति ना पहुंचे।
जानने योग्य है कि इस तरह के भवन का मानचित्र स्वीकृत कराने के लिए भवन के प्रत्येक स्तर का संरचात्मक प्रारूप (स्ट्रक्चरल डिजायन) भी मानचित्र के प्रस्तुत करना होता है। जैसी तैयारी है, उसके अनुसार मानचित्र प्रस्तुत करने में नींव का संरचात्मक प्रारूप ही अहम है। शेष डिजायन खंडवार तैयार किया जा रहा है।