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इलाहाबाद की पृष्ठभूमि पर केंद्रित उपन्यास ‘वाया फुरसतगंज’ पर परिचर्चा!

लखनऊ: बालेन्दु द्विवेदी लिखित दूसरे उपन्यास ‘वाया फुरसतगंज’ पर परिचर्चा का आयोजन मोती महल लॉन में चल रहे मेले में किया गया। इस उपन्यास को दिल्ली के प्रतिष्ठित हिंदी प्रकाशन, वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। परिचर्चा में राम बहादुर मिसिर, संपादक अवध ज्योति पत्रिका; मूसा खान अशांत बाराबंकवी,वरिष्ठ कथाकार; अरूण सिंह, संपादक इंडिया इनसाइड एवं अदिति माहेश्वरी गोयल, निदेशक वाणी प्रकाशन समूह ने भाग लिया।

उपन्यासकार बालेन्दु द्विवेदी ने बताया कि वाया फुरसतगंज नामक उनका यह उपन्यास इलाहाबाद की ही पृष्ठभुमि पर केंद्रित है और इसमें इलाहाबाद की ठेठ संस्कृति को उकेरने की कोशिश की गई है।इसके मंचन और विमोचन के पीछे इलाहाबाद को चयनित करने के पीछे यह भी एक बड़ा कारण है।

उपन्यास की कहानी के बारे में उन्होंने यह कहा कि असल में वाया फुरसतगंज एक गांव की छोटी सी घटना के बहाने पूरी मुख्यधारा की राजनीति की गहन पड़ताल करती है और इसके रेशे-रेशे उघाड़ती चलती है। इस दौरान अरुण सिंह ने कहा कि बहुत दिनों बाद एक मुकम्मल व्यंग्य उपन्यास पढ़ने को मिला।इसे आधुनिक राजनीति की महागाथा नहीं तो कम से कम गाथा जरूर कह सकते हैं।

मूसा खान अशांत ने कहा कि इस उपन्यास के माध्यम से उपन्यासकार शायद यह दिखाना चाहता है कि फुरसतगंज में घटने वाली एक छोटी-सी घटना कैसे सभी के कौतुक का विषय बनकर उभरती है और कैसे सभी चाहे-अनचाहे इसमें एक-एक कर शामिल होते जाते हैं।फिर यह भी कि यह आरंभिक कौतूहल कैसे शासन-प्रशासन के लिए चिंता का सबब बनता जाता है और कैसे न चाहते हुए भी सभी इस घटना के इर्द-गिर्द बुने अपने ही जाले में उलझते चले जाते हैं।

रामबहादुर मिसिर का कहना था कि दरअसल अपने ही जाल में उलझने के बाद सत्ता पाने के लिए आपस की होड़,इसकी जद्दोजहद और फिर गलाकाट-संघर्ष को पाठक के सामने ले आना ही इस उपन्यास का मूल मंतव्य है।

कार्यक्रम का संचालन एवं डा देवी प्रसाद तिवारी,अध्येता एवं आलोचक,काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने किया। अंत में अदिति महेश्वरी गोयल ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

रिपोर्ट- नितेश मिश्रा

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