कोविड 19 और सोशल मीडिया पर फैलता भ्रम जाल दुविधा में है जनता, सरकार, प्रशासनिक और चिकित्सीय तन्त्र।

कोविड 19 को लेकर जनता में अलग अलग धारणाएँ हैं। एक वर्ग इतना डरा हुआ है कि उसने अपने आप को सब से अलग थलग कर  अपने घर तक सीमित कर लिया है। दूसरे वर्ग की बाहर निकलना एक मज़बूरी है। उसके ऊपर सरकारी दायित्वों का बोझ है या फिर परिवार के भरण पोषण की ज़िम्मेदारी । तीसरा वर्ग है जो ये मानता है कि उसको अमरत्व प्राप्त हो चुका है कॅरोना संक्रमण उस तक नहीं पहुँच सकता ।

सरकार की ज़िम्मेदारी- सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है कि केन्द्र या राज्य सरकारों ने अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से  निभाई या नही ? हर फ़ोन कॉल से पहले रिकार्डेड संदेश, सभी टी वी चैनलों व रेडियो पर ,सरकारी  व पब्लिक स्थलों, सभी सोशल मीडिया पर लगातार सावधानियों के सम्बंध में संदेश, पुलिस प्रशासन द्वारा सख्ती से पालन करवाना भी अगर पर्याप्त नहीं है तो सरकार से क्या आपेक्षित है? अगर अब भी कोई नागरिक इन सावधानियों को अनदेखा करता है और खुद संक्रमित होता है और दूसरों को संक्रमित करता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी उसको स्वयँ लेनी होगी।

चिकित्सा तंत्र- विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व का 90 प्रतिशत चिकित्सा तंत्र चरमराने की कगार पर पहुँच चुका है। सोच कर ही डर लगता है कि अगर कॅरोना यूँ ही अनियंत्रित ढंग से बढ़ता रहा तो क्या होगा?

लॉक  डाउन और गिरती जी डी पी – यह भी कहा जा रहा है कि जब संक्रमण कम था तब लॉक डाउन था और जब संक्रमण अनियंत्रित है तब इसको क्रमवार समाप्त किया जा रहा है। वहीँ दूसरी तरफ गिरती हुई जी डी पी की न सिर्फ बात की जाती है अपितु इसकी पिछले वर्षों से तुलना भी की जाती है । लॉक डाउन होगा तो कल कारखाने, सेवा क्षेत्र सभी बन्द अथवा न्यूनतम स्तर पर कार्य कर रहे होंगे तो जी डी पी कहाँ से बढ़ेगी? और अगर उसको बढ़ाना है तो सब को घरों के बाहर निकलकर काम करना होगा पूरी सावधानी और ज़िम्मेदारी के साथ अपना और दूसरों का बचाव करते हुए। यह मुश्किल सन्तुलन जन साधारण के सहयोग बिना संभव नहीं है ।

नीम हकीम खतरे जान सोशल मीडिया पर हर तरह के उपचार के संबंध में ज्ञान सुलभ है। दुष्परिणाम भी सामने है। एक व्यक्ति ने इतना विटामिन डी खा लिया कि उसे इसकी अधिकता के दुष्परिणाम भुगतने पड़े। एक ने इतनी हल्दी खा ली की उसकी आंखें पीली हो गईं। डॉक्टर्स को लगा कि कहीं उसे पीलिया तो नहीं हो गया? एक व्यक्ति ने तो इतना एलोवेरा जूस पी लिया कि उसका यकृत खराब होने की कगार पर पहुँच गया।

ऐसे में आयुष मंत्रालय, आई सी एम आर, राज्यों के चिकित्सा विभागों द्वारा जारी मेडिकल प्रोटोकॉल के हिसाब से ही कुछ भी लेना ठीक होगा चाहे व हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिये हो अथवा संक्रमित होने के बाद इलाज के लिए।

कॅरोना वेक्सीन वैक्सीन के बारे में भी रोज़ाना भ्रामक खबरें आती हैं। लगता है जैसे कल ही कोई वैक्सीन बाज़ार आएगीऔर हमारी सारी परेशानियाँ समाप्त हो जायेंगी। रूस की वैक्सीन बस आने वाली है, सीरम इंडिया की वैक्सीन के परीक्षण रोक दिए गए है । 200 से अधिक वैक्सीन्स पर दुनिया भर में काम हो रहा है।

वैक्सीन अगर आ भी गयी तो कितनी जल्दी और किस मूल्य पर हर भारतीय नागरिक को उपलब्ध कराई जा सकेगी यह भी एक गहन सोच का विषय है।

सबकुछ पढ़ने के बाद सिर्फ एक ही बात समझ में आती है कि खुद की सुरक्षा और उसके लिए हाथ धोना, मास्क पहनना, दो ग़ज़ की दूरी बनाए रखना , अपने इर्द गिर्द साफ सफाई रखना, व्यायाम करना, संतुलित और पौष्टिक भोजन करना की इस संक्रमण से बचने के सबसे प्रभावी उपाय है। एक नई खोज कहती है कि एक बार कॅरोना हो कर ठीक हो जाना, इसके दोबारा न होने की गारन्टी नहीं है। जो व्यक्ति इससे ठीक भी हुए है उन के फेफड़ों पर कोई न कोई दुष्प्रभाव अवश्य पड़ रहा है।

सरकार के लिए आपकी मौत सिर्फ एक आँकड़ा हो सकता है पर आपके परिवार के लिए एक अपूर्तनीय क्षति, आपकी सावधानी में ही आपकी सुरक्षा है।

आलेख- विकास चन्द्र अग्रवाल।

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