क्या राम मंदिर के लिए जान गवाने वाले कारसेवकों के परिजनों को मिलेगा शिलान्यास कार्यक्रम में न्योता?

अयोध्या में भव्य राम मंदिर के शिलान्यास के ऐतिहासिक क्षण का कौन-कौन होगा साक्षी

रिपोर्ट आशीष मिश्रा,

लखनऊ। देश की स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय राजनीति में अयोध्या का रामजन्म भूमि विवाद दशकों तक सबसे ज्वलंत मुद्दा बना रहा। इस एक मुद्दे ने देश की राजनीति की दिशा और दशा बदल दी। वर्ष 2020 में शीर्ष अदालत ने इस विवाद पर अंतिम निर्णय सुनाकर मामले का पटाक्षेप कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब अयोध्या में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया है।

मंदिर निर्माण की तैयारियां जोरों पर हैं और ऐसे समय में उन कारसेवकों की कुर्बानियों की यादें ताजा हो जाती हैं जिन्होंने जय श्री राम के जयघोष के साथ अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। क्या राम मंदिर के शिलान्यास के अवसर पर उन कारसेवकों के परिजनों को आमंत्रित किया जाएगा जो कारसेवा के दौरान शहीद हो गए थे?

अयोध्या में भव्य राम मंदिर के शिलान्यास की तिथि 5 अगस्त बताई जा रही है। इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूजन हेतु आमंत्रित किया गया है। राम मंदिर का शिलान्यास कई मायनों में विशेष होगा। राम मंदिर के लिए अनवरत आंदोलन करने वालों के लिए यह ऐतिहासिक क्षण होगा। राम मंदिर के लिए न जाने कितने कार सेवकों ने कष्ट झेल। भूखे-प्यासे कारसेवा में भगवा ध्वजा पताका फहराते रहे कई बार गिरफ्तारियां दी। पुलिस की लाठियों को झेला पर हर कष्ट में अपने आराध्य का जयघोष करना नहीं भूले। अनेक कारसेवकों ने राम मंदिर के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उन शहीदों का स्वप्न अब साकार होने जा रहा है। जाहिर है यह शहीद कारसेवकों के परिजनों के लिए बेहद भावुक एवं ऐतिहासिक पल होगा, पर क्या सरकार उनकी सुध लेगी?

राम मंदिर के शिलान्यास के अवसर पर क्या शहीद कारसेवकों के परिवार के सदस्यों को बुलाया जाएगा? कई लोगों के मन में यह सवाल कौंध रहा है। पर सरकार अथवा प्रशासन की ओर से इस सम्बन्ध में अभी तक कोई स्पष्ट संदेश नहीं मिले हैं जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि सरकार शहीद कारसेवकों के परिवार को इस गौरवशाली क्षण का साक्षी बनाएगी।

80 व 90 के दशक में जब राम मंदिर मुद्दा गर्माया तो देश में भूचाल आ गया था। राम मंदिर के मुद्दे ने देश की राजनीति के स्थापित समीकरणों को ध्वस्त कर नए समीकरण गढ़े थे। भारतीय जनता पार्टी ने हिन्दुत्व का कार्ड खेला। विपक्षी पार्टियों ने उसे साम्प्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया।

तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार ने कारसेवकों के साथ बर्बरतापूर्ण कार्रवाई की थी जिसमें अनेक कारसेवक शहीद हो गए थे। सैकड़ों को जेलों में बंद कर यातनाएं दी गई थी। कई नेताओं को भी नजरबंद कर दिया गया था। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि राम मंदिर के मुद्दे ने भाजपा को केंद्र में सत्तारूढ़ कराने में अहम भूमिका निभाई। आज वह देश के कई राज्यों में सरकार चला रही है। भाजपा के लिए राम मंदिर महत्वपूर्ण मुद्दा था इस कारण सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आते ही उसने राहत की सांस ली। अयोध्या में भव्य राम मंदिर के शिलान्यास के अवसर पर प्रदेश में भी भाजपा की सरकार है और केंद्र में भी। ऐसे में लोगों को उम्मीद भी है कि राम मंदिर के शिलान्यास के मौके पर भाजपा सरकार शहीद कारसेवकों की कुर्बानियों को नहीं भूलेगी।

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