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क्या है हरिशंकर तिवारी का असर, जिसका आशीर्वाद मिलने पर अखिलेश यादव जीत पक्की मान रहे हैं?

हरिशंकर तिवारी के बारे में उत्तर प्रदेश में बड़े चर्चे हैं कई दशकों से उन्हें एक बड़ा बाहुबली माना जाता है कुछ लोग उन्हें प्रदेश में ब्राह्मणों के बड़े प्रभावशाली नेता के रूप में भी देखते हैं कहा जाता है कि उनके ही नक्शे कदम पर चलकर राजनीति में आए अतीक अहमद मुख्तार और बृजेश सिंह धनंजय सिंह जैसे बाहुबली, हरिशंकर तिवारी के संरक्षण में मजबूत हुए श्री प्रकाश शुक्ला जैसे खतरनाक गैंगस्टर।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब तक कई बाहुबली नेता हुए हैं इन बाहुबलियों ने अक्सर अपनी वारदातों के चलते मीडिया का ध्यान खींचा वर्तमान में अतीक अहमद मुख्तार अंसारी, ब्रजेश सिंह, रमाकांत यादव, उमाकांत यादव, धनंजय सिंह, विजय मिश्र और राजा भैया जैसे कई नाम चर्चा में हैं, लेकिन हरिशंकर तिवारी वह नाम है जिसने कई दशकों तक लगातार पूर्वाचल और मध्य यूपी एक दर्जन से ज्यादा जनपदों में सबसे बड़े बाहुबली के तौर पर अपना वर्चस्व कायम रखा और अब विपक्ष के सबसे बड़े नेता अखिलेश यादव ने भी हरिशंकर तिवारी के परिवार के आगे नतमस्तक होकर यह स्पष्ट कर दिया है, की बात चाहे समाजवाद की हो या फिर लोहिया के सिद्धांतों कि बाहुबलियों की मदद के बगैर सियासत की सीढ़ियां चढ़ना आसान नहीं है ।

हरिशंकर तिवारी जैसे लोगों की मदद लेने वाले अखिलेश यादव पहले नेता नहीं है इसके पहले कल्याण सिंह मायावती और मुलायम सिंह यादव ने भी अपनी सरकारों में हरिशंकर तिवारी को मंत्री बनाया गया था।
कई मुख्यमंत्रियों ने हरिशंकर तिवारी को मिटाने की कोशिश की लेकिन अपनी पराजय देखकर समझौता करके उन्हें अपनी सरकार में मंत्री बनाना ही बेहतर समझा।

 साल 1985 में हरिशंकर तिवारी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की चिल्लूपार विधानसभा सीट से विधायक बने। हरिशंकर का चुनाव जीतना कई मायनों में अनूठा था वह निर्दलीय उम्मीदवार थे और जेल की सलाखों के भीतर रहते हुए चुनाव जीते थे। इस जीत को कुछ लोगों ने राजनीति में अपराध का प्रवेश भी कहा।

नब्बे के दशक में गोरखपुर में ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी और क्षत्रिय नेता वीरेंद्र शाही के गुटों में वर्चस्व की लड़ाई चलती थी। साल 1997 में लखनऊ में दिनदहाड़े वीरेंद्र शाही की हत्या कर दी गई। इससे इस वर्चस्व की लड़ाई पर लगाम तो लग गई, लेकिन इसके बाद पूर्वांचल की राजनीति में कई बाहुबलियों ने दस्तक देनी भी शुरू कर दी।

हरिशंकर तिवारी का गोरखपुर में इतना दबदबा था कि वे लगातार 22 वर्षों तक विधायक चुने गए. साथ ही 1997 से लेकर 2007 तक लगातार अलग-अलग सरकारों में मंत्री भी रहे। यानी कि हरिशंकर तिवारी कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मायावती और मुलायम सिंह यादव के मंत्रिमंडल का हिस्सा बने।

हरिशंकर तिवारी के खिलाफ दो दर्जन से अधिक मुकदमें दर्ज किए गए थे, लेकिन उनके खिलाफ लगे सभी मुकदमे कोर्ट द्वारा खारिज कर दिए गए। लोग मानते हैं कि तिवारी ने या तो अपने खिलाफ मौजूद सबूतों को नष्ट करवा दिया या फिर गवाहों को चुप करा दिया।

 2007 के विधानसभा चुनाव में हरिशंकर तिवारी को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा, राजेश त्रिपाठी नाम के बसपा उम्मीदवार ने उन्हें मात दी। अप्रत्याशित इसलिए कि राजेश त्रिपाठी उस वक्त एक गुमनाम सा शख्स था, ऐसे में तिवारी की जीत हर बार की तरह पक्की मानी जा रही थी।

2012 के विधानसभा चुनाव में भी हरिशंकर तिवारी को हार का मुंह देखना पड़ा। इस चुनाव में भी राजेश त्रिपाठी की ही जीत हुई, तिवारी इस बार तीसरे नंबर पर आ गए।

हरिशंकर तिवारी ने इसके बाद फिर कोई चुनाव नहीं लड़ा हालांकि उन्होंने अपने दो बेटों और एक भांजे को राजनीति में स्थापित कर दिया। उनके बड़े बेटे भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी सांसद रह चुके हैं और उनके छोटे बेटे विनय तिवारी वर्तमान में विधायक हैं और उनके भांजे गणेश शंकर पांडे विधान परिषद के सभापति रह चुके हैं। फिलहाल उनका पूरा कुनबा अखिलेश यादव के नेतृत्व में आस्था जताकर समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुका है हरिशंकर तिवारी वृद्ध हो गए हैं बहुत से लोग उन्हें बाबा भी कहते हैं उनके ज्यादातर मुकदमे न्यायालय से समाप्त हो चुके हैं किसी भी मामले में उन्हें सजा नहीं हुई कानूनी दृष्टि से ना तो उन्हें माफिया कहा जा सकता है ना तो अपराधी।
लेकिन अभी भी उनके नाम के दम पर पूर्वांचल से जुड़ी हुई दर्जनों विधानसभा सीटों और कई लोकसभा सीटों के चुनावी समीकरण बदल जाते हैं।

पूर्वांचल के सूत्र बताते हैं कि लंबे समय से गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ और हरिशंकर तिवारी के बीच शीत युद्ध चल रहा था योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार और प्रशासन ने हरिशंकर तिवारी के लोगों पर शिकंजा भी कसना शुरू कर दिया उनके यहां छापेमारी की खबरें भी आई जिसके बाद तिवारी परिवार मजबूत राजनीतिक धरातल की तलाश में जुट गया कुछ लोग बताते हैं कि बीजेपी के बड़े नेताओं से भी तिवारी परिवार की बातचीत हुई और अखिलेश यादव से भी ,लेकिन अखिलेश से हुई बातचीत ज्यादा बेहतर समझ में आई क्योंकि बसपा कमजोर हो गई इसलिए मजबूत धरातल के रूप में समाजवादी पार्टी का चुनाव हुआ । इसमें दोनों का फायदा था अखिलेश यादव भी यह समझ चुके हैं कि सामान्य वर्गों को साथ लिए बगैर उत्तर भारत की राजनीतिक में सफलता मुश्किल है और ब्राह्मण समाज सामान्य वर्ग में सबसे बड़ा वोट बैंक माना जाता है । अब अखिलेश यादव के रणनीतिकार और स्वयं वह भी आश्वस्त हैं कि पूर्वाचल और मध्य यूपी में ब्राह्मणों के नेता के रूप में चर्चित रहे हरिशंकर तिवारी का राजनीतिक आशीर्वाद मिलने के बाद उनका दोबारा यूपी का सीएम बनना सुनिश्चित हो गया है।

द इंडियन ओपिनियन
लखनऊ

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