खेल विभाग की उदासीनता, बदहाली का दर्द झेल रहा राष्ट्रीय तीरंदाजी चैंपियन का परिवार!
बाराबंकी। तीरंदाजी में राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतने वाला होनहार खिलाड़ी पत्नी व बच्चों के साथ समोसे बेचकर चला रहा है गुजारा!
जी हां, बाराबंकी जनपद के नवाबगंज क्षेत्र के शहावपुर गांव निवासी महेंद्र प्रताप सिंह एक राष्ट्रीय स्तर के आधुनिक आर्चरी के खिलाडी है,जिनकी परवरिश भी गरीबी के साथ हुई घर में बचपन के दौरान पिता चना चबाना भून कर के बेचते थे उसी से परिवार का गुजारा चलता था।
बाराबंकी के आधुनिक तीरंदाजी (आर्चरी)के राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी महेंद्र प्रताप बताते हैं कि अपने जीवन में बहुत संघर्ष देखा। उन्हें पहली बार धनुषविद्या सीखने की प्रेरणा अपने पिता विश्वमित्र रामदेव जी से ही मिली, उन्होंने बताया कि उनके पिता पारंपरिक धनुष विद्या के कलाकार थे जिनका प्रदर्शन जनपद के बाहर भी होता था इनके पिता “गामा” नाम से भी प्रसिद्ध थे, इसी के साथ उनके द्वारा यह भी अवगत कराया गया कि उनके पिता अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर तीर चलाते थे और पट्टी बांधे हुए ही तीर एवम कमान से किसी भी कार्यक्रम में लोगों को माल्यार्पण भी कर दिया करते थे, इसी वजह से उनका नाम जिले और जिले के बाहर भी काफी मशहूर था।
इनके पिता को तत्कालीन जिलाधिकारी बाराबंकी ने आधुनिक अर्जुन का खिताब दिया था उन्ही के पदचिन्हो पर चलकर उनके सुपुत्र महेंद्र प्रताप सिंह राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे।
महेंद्र सिंह ने यह भी बताया कि एक बार वो अपने पिता के साथ धनुष विद्या का प्रदर्शन करने के लिए कहीं जा रहे थे, तभी आराम करने के लिए एक बाग में रुक गए साथ में बाल्यावस्था के दौरान महेंद्र प्रताप सिंह जी अपने पिता के साथ थे उसी दौरान बाल्यावस्था में ही धनुष चलाया लेकिन लक्ष्य से अलग जाकर तीर लगा लेकिन इस गलती के बावजूद भी उनके पिता को अपने पुत्र में भविष्य दिखा, जिसके चलते उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र को प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा देना शुरु कर दिया लेकिन महेंद्र सिंह को भविष्य में तो कुछ और ही करना था किसी विधा में अपने प्रदेश अपने जनपद का नाम करने का सपना संजोए भविष्य की योजना थी लेकिन आर्थिक स्थिति, विषम व कमजोर होने के कारण योजनाओं में रुकावट आती गयी।
महेंद्र ने बताया कि उन्होंने 10 वर्ष की उम्र में धनुष को पहली बार हाथ में पकड़ा था धीरे धीरे पिता की दिशा निर्देशन में पारंगत होते गए l तब से आज तक जिले के कई जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक को कई कार्यक्रम के दौरान आंखों पे पट्टी बांधकर उनका माल्यार्पण किया।
सन 1989 में तत्कालीन जिलाधिकारी निरोती लाल के प्रोत्साहन से तथा उनके सहयोग से स्पोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया आधुनिक आर्चरी का प्रशिक्षण लेने के लिए उन्हें भेजा जिसकी वजह से महेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश से अकेले चयनित किए। जहां उन्होंने लंबी अवधि की पूर्ण प्रशिक्षण 1990 से 95 तक लिया।
महेंद्र ने तकरीबन 11 बार राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया जिसमें उड़ीसा पटियाला पंजाब आंध्र प्रदेश, चेन्नई,विशाखापट्टनम में अपने प्रदर्शन का लोहा मनवाया। सन 1994 में आर्थिक स्थिति ठीक ना होने की वजह से और किसी प्रकार का सरकारी यात्रा भत्ता ना मिलने से फ्रांस में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में न जा सके जिसका मलाल उन्हें अभी भी है।
उन्होंने यह भी बताया आधुनिक आर्चरी के लिए किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं थी धनुष तक की व्यवस्था नहीं थी उसी दौरान इनके प्रशिक्षण के दौरान के मित्र वर्तमान में जम्मू कश्मीर में जिलाधिकारी के पद से तैनात अजीत साहो अपना धनुष महेंद्र को देते थे प्रेक्टिस करने के लिए और फिर अपनी प्रेक्टिस के लिए वापस भी ले लेते थे।
महेंद्र अपने संघर्ष के दिनों की एक दिलचस्प घटना बताते हुए कहते हैं कि जब मुझे कोलकाता में प्रशिक्षक से प्रशिक्षण लेने के लिए जाना था और वहां का पत्र केवल 1 दिन पहले आया मुझे 24 घंटे के अंदर कोलकाता पहुंचना था, मेरे पास एक भी पैसा नहीं था मैं इधर उधर लोगों से मांगता फिर रहा था लेकिन किसी ने कोई भी मदद नहीं की परंतु तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी ने अपने कर्मचारियों से कैसे भी 4586 रुपया एकत्रित किया और उन्हें तत्काल हवाई जहाज से कोलकाता भेजा गया, जहां उन्होंने पूरे मन योग से प्रशिक्षण प्राप्त किया, कोलकाता पहुंचने पर और चयन हो जाने के बाद उनके पास खाने पीने के लिए एक पैसा नहीं था। किसी तरह पूर्व में कोलकाता खेलने आए थे उस दौरान के एक मित्र ने 3500 रुपए दिए जो तत्काल शुल्क जमा करना उन्होंने बताया कि उस समय के तत्कालीन सी ओ सिटी शैलेंद्र सिंह ने उनकी प्रतिभा को प्रोत्साहन देते हुए ₹20000 की मदद की थी।
उत्तर प्रदेश खेल निदेशालय द्वारा संविदा की अंतर्गत 2002 में अथक प्रयासों से उनका आर्चरी शिक्षक के तौर पर नौकरी लग गई लेकिन खेर निदेशालय और उत्तर प्रदेश सरकार की उदासीनता के चलते एक बार फिर उनके जीवन पर बेरोजगारी का काला साया छा गया कोरोनॉ महामारी के चलते संविदा के कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया जाए। जिसके लिए अभी हाल ही में समस्त विधाओं के शिक्षकों ने लखनऊ में धरना प्रदर्शन भी किया और खेल मंत्री व खेल सचिव तथा खेल निदेशक को अपना ज्ञापन सौंपा गया।
महेंद्र प्रताप सिंह वर्तमान समय में सोनभद्र में आधुनिक आर्चरी के प्रशिक्षक के तौर पर पर नौकरी कर रहे थे लेकिन अब उनके सामने बेरोजगारी पिछले कई महीनों से मुंह खोले खड़ी हुई है। आज उनको अपने परिवार के भरण पोषण के लिए पकौड़ी और समोसे का काम करना पड़ रहा है।
महेंद्र प्रताप का कहना है कि “आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से मेरा सपना तो अधूरा रह गया लेकिन मेरी चाहत है कि मैं अपने जनपद बाराबंकी और उत्तर प्रदेश के बच्चों को आधुनिक आर्चरी में प्रशिक्षण देकर अपना कर्तव्य पूरा करूं लेकिन सरकार के आदेश के चलते शायद मेरा यह सपना भी अधूरा रह जाए आज मेरा परिवार मेरी पत्नी मेरे दो छोटे छोटे बच्चे भुखमरी के कगार पर हैं।”
जब द इंडियन ओपिनियन संवाददाता ने उनके घर जाकर हाल जानने का प्रयास किया तो ऐसा प्रतिभावान खिलाडी आज देश व प्रदेश की सरकारों के उदासीन रवैए के कारण विषम दौर से गुजरता हुआ पाया गया। ऐसे हालातों मैं सैकड़ों प्रतिभाएं अभाव में तथा कोई भी मदद न मिलने से दम तोड़ती नजर आती है।
देश के सरकारी तंत्र के संचालकों और नीति निर्माताओं को यह जरूर देखना होगा कि एक तरफ जहां उनकी वीआईपी सुविधाओं के नाम पर लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ देश के नौजवान देश के होनहार खिलाड़ी गरीबी और भुखमरी का शिकार हो रहे हैं, ऐसे हालात किसी भी देश के लिए अच्छे नहीं कहे जा सकते।
प्रस्तुति: रविनंन खजांची /शरद राज सिंह