रिपोर्ट – मनोज कुमार
गोरखपुर के ऐतिहासिक बलिदान स्थल मण्डलीय कारागार पर पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की 123वीं जयंती मनायी गयी।वहाँ उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया और उनकी जिला कारागार में उन्हें जिस कारागार में रखा गया था उसका निरीक्षण किया गया।
वही 1897 में आज के ही दिन यानी 11 जून को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में माता मूलारानी और पिता मुरलीधर के पुत्र के रूप में जन्मे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के बारे में आज की तारीख में यह तो सर्वज्ञात है कि अंग्रेजों ने ऐतिहासिक काकोरी कांड में मुकदमे के नाटक के बाद 19 दिसंबर, 1927 को उन्हें गोरखपुर की जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था।
इतिहास के जानकार के मुताबिक, ‘बिस्मिल’ के क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत 1913 में अपने समय के आर्य समाज और वैदिक धर्म के प्रमुख प्रचारकों में से एक भाई परमानंद, जो कि अमेरिका स्थित कैलीफोर्निया में अपने बचपन के मित्र लाला हरदयाल की ऐतिहासिक गदर पार्टी में सक्रियता के बाद हाल ही में स्वदेश लौटे थे, गिरफ्तार कर प्रसिद्ध गदर षड्यंत्र मामले में फांसी की सजा सुनाये जाने के बाद हुई।
परमानंद भाई को सुनाई गई इस क्रूर सजा से उद्वेलित राम प्रसाद बिस्मिल ने ‘मेरा जन्म’ शीर्षक से कविता तो रची ही, साथ ही ब्रिटिश साम्राज्य के समूल विनाश की प्रतिज्ञा कर I WISH DOWN FALL OF THE BRITISH UMPAIRE क्रांतिकारी बनने का फैसला कर लिया तो इसके लिए जरूरी हथियार अपनी पुस्तकों की बिक्री से प्राप्त रुपयों से ही खरीदे थे।