टाइम कैप्सूल में क्या है पीएम मोदी की प्लानिंग, जिसे राम मंदिर के 2000 फीट नीचे गाड़ा जाएगा!

रिपोर्ट – दीपक मिश्रा,

राम मंदिर के संघर्ष से जुड़े सारे ऐतिहासिक तथ्यों को एक टाइम कैप्सूल में पृथ्वी के 2000 फीट नीचे गाड़ा जाएगा ताकि सारी जानकारियां सुरक्षित रह सकें।   ‘टाइम कैप्सूल’ एक बॉक्स होता है, जिसमें वर्तमान समय की जानकारियां भरी होती हैं। देश का नाम, जनसँख्या, धर्म, परंपराएं, वैज्ञानिक अविष्कार की जानकारी इस बॉक्स में डाल दी जाती है। कैप्सूल में कई वस्तुएं, रिकार्डिंग इत्यादि भी डाली जाती है। इसके बाद कैप्सूल को कांक्रीट के आवरण में पैक कर जमीन में बहुत गहराई में गाड़ दिया जाता है। ताकि सैकड़ों-हज़ारों वर्ष बाद जब किसी और सभ्यता को ये कैप्सूल मिले तो वह ये जान सके कि उस प्राचीन काल में मनुष्य कैसे रहता था, कैसी भाषाएं बोलता था।

टाइम कैप्सूल की अवधारणा मानव की आदिम इच्छा का ही प्रतिबिंब है। अयोध्या में बनने जा रहे राम मंदिर की नींव में एक टाइम कैप्सूल डाला जाएगा।
पाषाण युग से ही मानव की सोच रही है कि वह भले ही मिट जाए लेकिन उसके कार्यों को आने वाली पीढ़ियां याद रखें। इसी सोच ने मानव को इतिहास लेखन के लिए प्रेरित किया होगा। किसी प्राचीन गुफा की खोज होती है तो उसकी दीवारों पर हज़ारों वर्ष पुराने शैलचित्र पाए जाते हैं। ये भी एक तरह के टाइम कैप्सूल ही है, जो एक ख़ास तरह की स्याही से दीवारों पर उकेरे गए थे। उनकी स्याही में इतना दम था कि हज़ारों वर्ष पश्चात् की पीढ़ियों को अपनी कहानी पढ़वा सके।

भारत के प्राचीन मंदिरों में स्थापित शिलालेखों का उद्देश्य यही था, जो आधुनिक काल में टाइम कैप्सूल बनाने वालों का है। भविष्य की पीढ़ियों को वर्तमान के बारे में बताने की ललक ने टाइम कैप्सूल की अवधारणा को जन्म दिया।

अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के समस्त कार्य तकनीकी विशेषज्ञों की देखरेख में हो रहे हैं और टाइम कैप्सूल भी इसी दिशा में तकनीक का एक बेहतर प्रयोग है जो वर्तमान के इतिहास को भविष्य के लिए सुरक्षित रखेगा।

हालांकि विश्व हिंदू परिषद और राम जन्मभूमि निर्माण क्षेत्र न्यास से संबंधित पदाधिकारियों ने अभी टाइम कैप्सूल के बारे में कोई पुष्ट सूचना नहीं दी है।

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