MDH मसाले के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी का बुधवार सुबह 5.30 बजे 98 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया है | दिल्ली में पिछले तीन हफ्ते से उनका इलाज चल रहा था। उनका अंतिम संस्कार आज दोपहर किया गया। कभी दिल्ली की सड़कों पर तांगा चलाने वाले महाशय धर्मपाल को उद्योग जगत में योगदान के लिए पिछले वर्ष पद्मविभूषण जो देश का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है से सम्मानित किया गया था।
महाशय का परिवार विभाजन से पहले पाकिस्तान के सियालकोट में रहता था। उनकी पढ़ने में कभी भी रुचि नहीं रही । पिता चुन्नीलाल ने काफी कोशिश भी की, लेकिन उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा। 1933 में उन्होंने पांचवीं का इम्तिहान भी नहीं दिया और किताबों से हमेशा के लिए दूरी बना ली। पिता ने एक जगह काम पर लगा दिया, लेकिन यहां भी मन नहीं लगा। एक के बाद एक कई काम छोड़े। पिता चिंता में पड़ गए, तब उन्हें सियालकोट में मसाले की दुकान खुलवा दी। यह उनका पुश्तैनी कारोबार था। दुकान चल पड़ी। इसे पंजाबी में महाशियां दी हट्टी (महाशय की दुकान) कहा जाता था। इसीलिए उनकी कम्पनी का प्रचलित नाम MDH पड़ा।
जब सब ठीक चल रहा था देश का विभाजन हो गया और सियालकोट पाकिस्तान में चला गया। परिवार सब कुछ छोड़कर सितंबर 1947 में अमृतसर फिर कुछ दिन बाद दिल्ली आ गया। तब उनकी उम्र 20 साल थी। विभाजन की पीड़ा को उन्होंने बखूबी देखा और महसूस किया था। उनको पता था कि परिवार सब कुछ पाकिस्तान में छोड़ आया है और हिंदुस्तान में सब नए सिरे से शुरू करना है ।जेब में सिर्फ 1500 रुपए थे। परिवार पालना था, इसलिए उन्होंने 650 रुपए में एक तांगा खरीदा और इस पर दिल्ली की सड़कों पर सवारियां ढोने लगे। एक सवारी से दो आना किराया लेते थे, लेकिन कहते हैं न कि जिसका काम उसी को साजे। महाशय का मन तो कारोबार में रमता था, इसलिए दो माह बाद ही तांगा चलाना बंद कर दिया। जो थोड़ी बहुत पूंजी थी उसी में घर पर ही मसाला बनाकर बेचना शुरू कर दिया।
महाशय धर्मपाल ने दिल्ली के कीर्तिनगर में कम पूंजी के साथ पहली फैक्ट्री लगाई थी । आज MDH देश-दुनिया में अपने स्वाद और खुशबू के लिए जाना जाता है । इनके मसाले लंदन, शारजाह, अमेरिका, साउथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, हॉन्गकॉन्ग, सिंगापुर समेत कई देशों में मिलते हैं। 1000 से ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर व चार लाख से ज्यादा खुदरा व्यापारी हैं। औसतन 2000 करोड़ रुपए का कारोबार है। इस कंपनी के पास आधुनिक मशीनें हैं, जिनसे प्रतिदिन 30 टन मसालों की पिसाई और पैकिंग की जा सकती है।
महाशय की जिंदगी तकलीफ में गुजरी थी, इसलिए दूसरों का दर्द बांटने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उन्होंने पिता के नाम पर महाशय चुन्नीलाल चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की। इसके तहत कई स्कूल, अस्पताल और आश्रम बनवाए, जो गरीबों और जरूरतमंदों की मदद में लगे हुए हैं।
महाशय अपनी आय का एक बड़ा प्रतिशत धर्मार्थ कार्यों पर खर्च करते थे | अभी करोना से लड़ने में सरकार की मदद करने की गरज से उन्होने एक बड़ी धनराशि दान करने के अतिरिक्त दिल्ली सरकार को बड़ी मात्रा में पीपीई किट भी उपलब्ध कराई थीं |
MDH मसालों के विज्ञापनों में आगे आने वाले सालों में उनकी कमी बहुत अखरेगी। बताते हैं कि एक विज्ञापन की शूटिंग के दौरान दुल्हन के पिता का किरदार अदा करने वाला अदाकार नही आया । तब डायरेक्टर के कहने पर महाशय ने यह किरदार खुद निभाया। तब से विज्ञापनों में उनकी अदाकारी का सिलसिला शुरू हो गया जिसे लोगों ने खूब पसन्द किया।
रिपोर्ट- विकास चन्द्र अग्रवाल