बारबंकी: वट वृक्ष की पूजा कर सुहागिनों ने की पति के लंबी आयु की कामना!

बाराबंकी: सनातन परंपरा के अनुसार आज के दिन विवाहित स्त्रियां वट वृक्ष की पूजा कर अपने सुहाग की लंबी आयु की कामना करती हैं। सनातन धर्म की मान्यता अनुसार जेष्ठ अमावस्या के दिन वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान देते हैं। गांवों-शहरों में हर कहीं जहां वट वृक्ष हैं, वहां सुहागिनों का समूह परंपरागत विश्वास से पूजा करता दिखाई देता है। इन समूहों में हर उम्र की विवाहित महिलाएं शामिल होती है।

अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए वट सावित्री अमावस्या पर सुहागिनों ने वट सावित्री पूजा करती है। कई स्थानों पर वट वृक्ष के तले सुहागिनों का तांता नजर आता है, लेकिन वर्तमान समय में करोना महामारी के चलते इस संख्या में भारी गिरावट भी देखी जा रही है।जहां कुछ समय पूर्व आज के दिन वटवृक्ष के नीचे हजारों की संख्या में स्त्रियां पूजा पाठ करती थी वही महामारी के दौर में महिलाओ की संख्या में भारी कमी देखी गयी है, आज सुबह से ही हो रही बारिश के बीच भी महिलाओ ने वट वृक्ष की पूजा की। भारी बारिश भी महिलाओ की आस्था को न रोक सकी और महिलाएं छाता लेकर पूजा करते हुए अपने सुहाग की लंबी आयु की कामना कर रही हैं।

वही माहमारी के दौर को देखते कई महिलाएं अपने घर पर रहकर ही गमले में वट वृक्ष की पूजा कर रही है। महिलाओ ने बताया कि कोविड से बचाव के लिए घर पर रहकर पूजा करना उचित है। सुहाग की कुशलता की कामना के साथ सुहागिनों ने परंपरागत तरीके से वट वृक्ष की पूजा कर व्रत भी रखती है।

महिलाओ द्वारा वट वृक्ष पर 24 पूड़ी, 24 पकवान और इतने ही प्रकार के फल व अनाज भी चढ़ाए जाते है। इस पूजा में कई महिलाये ऐसी भी है जो प्रथम बार शामिल हो रही है और आस्था के साथ पूजा अर्चना भी कर रही है।

पूजा अर्चना की विशेष विधि में महिलाएं वट वृक्ष को धागा लपेटकर पूजा करके पति की लंबी उम्र की कामना करती है। इस दिन सुहागिन महिलाएं वट के पेड़ की पूजा-अर्चना कर अखंड सुहाग का वर मांगती है। पूजा के लिए घर से सज-धज के निकलीं वट वृक्ष के नीचे कतारबद्ध रूप में पूजन करके दिखाई पड़ती है।

कई जगहों पर वट की पूजा के लिए महिलाएं घरों से ही गुलगुले, पूड़ी, खीर व हलुआ के साथ सुहाग का सामान लेकर पंहुचती है। कहीं-कहीं जल, पंचामृत भी लेकर भी जाती है जहां वे वट के पेड़ के 3 या 5 फेरे लगाकर कच्चे धागे को पेड़ पर लपेटकर वस्त्र सहित चंदन, अक्षत, हल्दी, रोली, फूलमाला, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी इन्हें पहना कर पति की लंबी उम्र के लिए वट से आशीर्वाद प्राप्त करेंगी।वट अमावस्या के पूजन की प्रचलित कहानी के अनुसार सावित्री अश्वपति की कन्या थी, उसने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया था। सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए जंगल में जाया करता था। सावित्री अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करके सत्यवान के पीछे जंगल में चली जाती थी।

एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। सावित्री ने उन्हें पहचाना और सावित्री ने कहा कि आप मेरे सत्यवान के प्राण न लें।

यम ने मना किया, मगर वह वापस नहीं लौटी। सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वर रूप में अंधे सास-ससुर की सेवा में आंखें दीं और सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया।

वट पूजा से जुड़ी हुई धार्मिक मान्यता के अनुसार ही महिलाएं इस दिन को वट अमावस्या के रूप में पूजती हैं।

रिपोर्ट- नितेश मिश्रा

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