मुस्लिम चेहरा गुलामनबी आजाद और दलित चेहरा मल्लिकार्जुन खड़गे के “पर” सोनिया ने क्यों कतरे?

कांग्रेस पार्टी के संगठन में बदलाव की ख़बर जैसे ही आई, सबसे ज़्यादा चर्चा गुलाम नबी आज़ाद की रही. उनके बाद मलिकार्जुन खरगे आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल जैसे नेताओं की यानी वो सारे वरिष्ठ नेता जिन्होंने  कांग्रेस में मज़बूत नेतृत्व और संगठन में चुनाव की माँग की थी।कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी संगठन में बड़ा फ़ेरबदल करते हुए गुलाम नबी आज़ाद समेत चार वरिष्ठ नेताओं को महासचिव की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया और कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्लूसी) का भी पुनर्गठन किया।

इसके अलावा उन्होंने एक समिति का भी गठन किया है जो पार्टी के संगठन और कामकाज से जुड़े मामलों में सोनिया गांधी का सहयोग करेगी।

ध्यान देने वाली बात ये है कि कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम ना तो सोनिया गांधी को सलाह देने वाली समिति में है और ना ही पार्टी संगठन में उन्हें कोई महत्वपूर्ण पद दिया गया है. और तो और किसी राज्य की ज़िम्मेदारी भी नहीं सौंपी गई.लेकिन अगर ध्यान से देखें तो ये सारे बदलाव आने वाले दिनों में उनकी ताजपोशी की ओर इशारा कर रहे हैं।

कांग्रेस कार्यसमिति में राहुल गांधी का क़द अब भी ऊपर है। सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के बाद अब वो तीसरे स्थान पर आ गए है। गांधी परिवार के चहेते कांग्रेस की कार्यकारी अध्‍यक्ष को सलाह देने के लिए विशेष समिति में एके एंटनी, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक और रणदीप सिंह सुरजेवाला शामिल हैं. ये वो लोग हैं जो पूरी तरह से गांधी परिवार के विश्वासपात्र हैं। इन लोगों ने कभी दबे रूप से भी राहुल गांधी के नेतृत्व की आलोचना नहीं की है।रणदीप सिंह सुरजेवाला तो राहुल गांधी की ख़ास पसंद हैं।

राहुल गांधी को उन पर पूरा भरोसा है और यही वजह है कि वो पार्टी के मुख्‍य प्रवक्‍ता, फिर पार्टी के महासचिव, कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्‍य और अब अध्‍यक्ष को परामर्श देने वाली समिति के सदस्‍य भी बन गए हैं। सुरजेवाला अकेले ऐसे नेता हैं जिन्‍हें एक साथ इतने पद मिले हैं.
इसके साथ ही पार्टी ने मधुसूदन मिस्त्री को केंद्रीय चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाया है।

2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात की वडोदरा सीट से मधुसूदन मिस्त्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था, उस दौरान वो काफ़ी विवादों में भी रहे। गुजरात के मिस्त्री की भूमिका 2012 के उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी काफी अहम थी वह राहुल गांधी के भी ख़ास हैं।

प्रियंका गांधी को पूरे उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई इसके अलावा राहुल गांधी के चहेते दिनेश गुंडूराव, मणिकम और एच के पाटिल जैसे नेताओं का क़द पार्टी में बढ़ा है। राज्यों के प्रभारी बनाने में भी राहुल गांधी के वफ़ादारों को प्राथमिकता दी गई है। इनमें शक्तिकांत गोहिल और राजीव साटव जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं।

कांग्रेस पार्टी के लिए सक्षम अध्यक्ष के चुनाव की मांग को लेकर पिछले दिनों कांग्रेस के 23 नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी और उसके बाद हंगामेदार कार्यसमिति की बैठक हुई. यह फ़ेरबदल इस घटना के 20 दिनों के अंदर हुआ है।

चिट्ठी लिखने वाले नेताओं ने कार्यसमिति का चुनाव कराए जाने की माँग की थी, लेकिन सोनिया गांधी ने चुनाव की बात को अनदेखा करते हुए कार्यसमिति पुनर्गठित कर दी। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मनमोहन सिंह, अहमद पटेल, गुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, ए के एंटनी, अम्बिका सोनी समेत कुल 22 नेता कार्यसमिति के सदस्य बनाए गए हैं।

गुलाम नबी आज़ाद कार्यसमिति के सदस्य बनाये गए हैं लेकिन उन्हें महासचिव के पद से हटा दिया गया है। अम्बिका सोनी और मल्लिकार्जुन खड़गे को भी महासचिव की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया है। हालांकि दोनों को ही कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया है.
आनंद शर्मा भी कार्यसमिति के सदस्य बनाये गए हैं। मुकुल वासनिक को महासचिव के पद पर बरक़रार रखा गया है और उन्हें सोनिया गांधी की मदद करने वाली समिति में भी जगह दी गई है।

चिट्ठी लिखने वाले नेताओं में शामिल भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी का नाम किसी भी लिस्ट में नहीं है। सचिन पायलट को भी नजरअंदाज़ किया गया है। राजस्‍थान में उनके सारे पद पहले ही छीने जा चुके हैं. यानी बाग़ियों को भी पार्टी कोई संदेश दे रही है।

जिन नेताओं के पर सोनिया गांधी ने कतरे हैं यह वह लोग हैं जो कांग्रेस संगठन में चुनाव की मांग कर रहे थे जो शायद दबी जुबान से कांग्रेस को गांधी परिवार से प्रभाव से मुक्त करने की सोच रहे थे या फिर संदेश देना चाह रहे थेl  गुलाम नबी आजाद ने तो यहां तक कह दिया था कि अगर यही हाल रहा तो कांग्रेस को 50 साल तक विपक्ष में बैठना पड़ेगा कुल मिलाकर गुलाम नबी आजाद और मलिकार्जुन खरगे कांग्रेस के काफी वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं और यह दोनों ही पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र और चुनाव की मांग कर रहे थे इन दोनों ने इशारों ही इशारों में कांग्रेस पर गांधी परिवार के वर्चस्व के खिलाफ आवाज उठाई और पार्टी के प्रमुख मुस्लिम नेता और दलित नेता होते हुए भी दोनों को सोनिया गांधी ने फिलहाल महत्वहीन कर दिया हैl

रिपोर्ट- प्रदीप पांडेय

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