योगेश्वर के भक्त हैं बहुत मुस्लिम विद्वान, कृष्णप्रेम से मशहूर हुए सैयद इब्राहिम “रसखान”!

वैसे तो भगवान श्री कृष्ण कि पूरे विश्व में पूजा होती है दुनिया के सभी देशों में भगवान कृष्ण के चाहने वाले लोगों ने भव्य मंदिर बनवाए हैं इस्कॉन संस्था तो लाखों विदेशी मूल के लोगों को भी कृष्ण भक्ति का आनंद ले रही है लेकिन भारत में कई मुस्लिम विद्वान यदुवंश शिरोमणि सनातन सूर्य भगवान श्री कृष्ण के मुरीद हैं और उन्हें पूरी इमानदारी से अपना मानते हैं ऐसे ही एक विद्वान कवि और साहित्यकार थे सैयद इब्राहिम जिन्होंने कृष्ण भक्ति में अपना नाम रसखान रख लिया था।

प्रतिष्ठित मुगल खानदान से था रसखान का संबंध :कहा जाता है कि बड़े मुगल खानदान से ताल्लुक रखने वाले सैयद इब्राहिम हरदोई जनपद के बिहानी कस्बे के रहने वाले थे उनके पूर्वज दिल्ली के शाही परिवार से वास्ता रखते थे इनका जन्म 1533 से 1548 के बीच माना जाता है। हालांकि इस बारे में विद्वानों में मतभेद है परंतु उनकी परवरिश किसी बड़े खानदान में हुई थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था।

कृष्ण भक्ति में उन्होंने अनेक रचनाएं लिखी जो आज भी दुनिया के बड़े हिस्से में पढ़ी जाती हैं हिंदी भाषा साहित्य और काव्य में स्थान का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है इस्लाम मजहब होने के बावजूद रसखान ने कृष्ण भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर दिया वह मानवता के प्रबल समर्थक थे और सभी धार्मिक मान्यताओं को एक ही परमपिता परमेश्वर तक पहुंचने का मार्ग मानते थे लेकिन भगवान कृष्ण का व्यक्तित्व कृतित्व और चरित्र उन्हें बहुत प्रभावित करता थाl

कृष्ण भक्ति की रचनाओं ने उन्हें पूरे देश में बड़ा आदर सम्मान दिलाया:

उन्होंने भगवान कृष्ण के प्रेम और भक्ति में लीन होकर बहुत सी चर्चित रचनाएं प्रस्तुत की जो आज भी न सिर्फ पाठ्य पुस्तकों में बल्कि कृष्ण भक्ति के ग्रंथों में भी पढ़ी जाती है। “सुजान रसखान” और “प्रेम-वाटिका” इन की प्रमुख रचनाएं हैंl

मथुरा के गोकुल में बनवाई अपनी समाधि :

रसखान भगवान कृष्ण से इतना प्रेम करते थे कि उनकी अंतिम इच्छा यही थी कि उनके मरने के बाद उन्हें गोकुल में ही स्थान दिया जाए इसलिए मथुरा में ही उनके मरने के बाद उनकी समाधि बनवाई गई आज भी मथुरा में उनकी समाधि मौजूद है और सरकार के द्वारा उसका संरक्षण और विकास भी किया जा रहा है।

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