संकट के दौर में क्यों भारत के “दुश्मन” के साथ खड़ा हो गया पुराना “दोस्त रूस” ?

रिपोर्ट – दीपेश

पिछले कई दिनों से भारत और चीन के बीच युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं, दोनों देशों ने सीमाओं पर बड़ी संख्या में फौज और हथियारों का जमावड़ा भी कर दिया है चीन अपनी जिद पर कायम है और वह लद्दाख में भारतीय सीमा के अंदर घुस आया है और वहां से वापस जाने को तैयार नहीं हो रहा उल्टा वह भारत को वापस जाने के लिए कहता है।

इसके पहले अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के भी कुछ क्षेत्रों पर चीन अपना दावा करता रहा है भारत और चीन के बीच पुरानी दुश्मनी है और कई बार हिंसक संघर्ष भी हो चुके हैं। ताजा मामला भी बेहद तनावपूर्ण है लद्दाख क्षेत्र में चीन नए विवादों को जन्म दे रहा है और पाकिस्तान के साथ पहले से ही सीमा विवाद झेल रहे भारत के लिए नए मोर्चे खोल रहा है।

वहीं भारत के पारंपरिक दोस्त रूस ने इस मौके पर चौंकाने वाला फैसला किया है। जब भी भारत पर मुश्किल आई रूस ने हमेशा भारत का साथ दिया लेकिन भारत और रूस के संबंधों के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है जब रूस भारत का पक्ष लेने में संकोच कर रहा है और इतना ही नहीं भारत के दुश्मन का खुलकर पक्ष ले रहा है।

कुछ दिनों पहले ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा बयान दिया उन्होंने कहा कि G7 देशों की बैठक  तब की जाए जब इसमें भारत और रूस जैसे महत्वपूर्ण देशों को शामिल कर लिया जाए। G7 दुनिया के साथ ताकतवर देशों का संगठन है और अमेरिका ने यह इच्छा जताई कि रूस और भारत जैसे देश भी इस संगठन का हिस्सा हो जाए जिससे यह संगठन पहले से भी और अधिक ताकतवर हो जाए और इसमें शामिल होने वाले देशों को भी इस संगठन का संरक्षण और फायदा मिल सके।

भारत के लिए यह खबर बड़ी राहत पहुंचाने वाली थी क्योंकि स्वाभाविक रूप से ताकतवर चीन से सीमा पर जो विवाद भारत झेल रहा है और भारत चीन के बीच युद्ध का वातावरण भी बना हुआ है उसको लेकर भारत बेहद तनाव में है और ऐसे में अमेरिका का भारत को समर्थन करना और जी 7 देशों में भारत का रूस के साथ शामिल होना भारत के लिए चीन के साथ खतरनाक दुश्मनी के दौर में बड़ी राहत पहुंचाने वाली खबर थी।

लेकिन रूस ने भारत के पक्ष में बन रहे समीकरण को मजबूत करने की बजाय कमजोर कर दिया रूस ने साफ तौर पर यह कह दिया कि वह G7 का हिस्सा नहीं बनेगा क्योंकि G7 चीन के खिलाफ अमेरिका और उसके सहयोगी देशों का एक गठजोड़ है और रूस ऐसा भी कोई भी काम नहीं करेगा जिस से चीन की खिलाफत होती है जिससे चीन के लिए रणनीतिक मुश्किलें  पैदा होती हैं।

रूस ने साफ तौर पर इस मामले में भारत के हितों के खिलाफ जाकर चीन का साथ दिया है और यह कह दिया है कि वह चीन के खिलाफ बनने वाले किसी भी गठजोड़ का हिस्सा नहीं होगा। रूस की सरकार में विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष और वहां के सांसद कांस्टेंटिन कोसचिव ने एक बयान जारी करते हुए या बात कही है कि उसके चीन के साथ अच्छे संबंध हैं और वह चीन के खिलाफ नहीं जाना चाहता।

उन्होंने G7 का जिक्र करते हुए कहा है कि G7 देशों की सदस्यता बढ़ाने के बहाने अमेरिका चीन के खिलाफ एक गठजोड़ तैयार करना चाहता है जबकि रूस अमेरिका की ऐसी किसी योजना का हिस्सा नहीं बनेगा, रूस चीन के खिलाफ नहीं जाएगा क्योंकि वर्तमान में रूस और चीन के संबंध अपने बेहतर दौर में हैं।

रूस का यह रवैया भारत को बेहद निराश करने वाला है क्योंकि भारत इस समय चीन की तरफ से जबरदस्त सामरिक चुनौती का सामना कर रहा है ऐसे में भारत को दुनिया के उसके सबसे बड़े मददगार और पुराने दोस्त रूस से अच्छे व्यवहार की उम्मीद थी। भारत रूस का एक बड़ा साझीदार है और बड़े पैमाने पर उससे भारत हथियार खरीदता है जिससे रूस को काफी व्यापारिक फायदा होता है।

लेकिन चीन के मसले पर जिस तरह से रूस ने भारत के हितों के खिलाफ जाकर चीन के पक्ष में प्रतिक्रिया दी है वह बेहद चौंकाने वाली है भारत को निराश करने वाली है और भारत की मुश्किलें बढ़ाने वाली है क्योंकि चीन की चालबाजीयों का इतिहास पुराना है और वह निश्चित तौर पर दुनिया का एक ताकतवर बड़ा देश है।

हालांकि रूस ने यह भी कहा है कि वह भारत और चीन के बीच बेहतर संबंध चाहता है उसकी इच्छा है कि भारत और चीन शांतिपूर्ण तरीके से सैन्य विकल्पों के बगैर अपने विवादों को सुलझाने की कोशिश करें। यह भी माना जा रहा है कि रूस का यह रवैया अमेरिका से उसके पुराने विवादों की वजह से है रूस यह भी कहता है कि अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश रूस की खिलाफत करते रहे हैं इसलिए रूस पश्चिमी देशों के गठजोड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहता।

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