सिखों के संघर्ष की कहानी! कामागाटा मारू जहाज (गुरु नानक नाम जहाज)

सिख कौम हमेशा ही मजदूरों के हक के लिए हमेशा ही लड़ते आ रहे हैं।चाहे वह आज की बात हो,चाहे वह किसानों के हक की बात हो और चाहे 100 साल पहले की बात की जाए।सिख हमेशा सच व हक की लड़ाई के लिए अपनी जान निछावर करते आए हैं।इसी का एक उदाहरण है,बजबज घाट 29 सितंबर 1914 की घटना।

कामागाटा मारू की घटना दक्षिण अमेरिका में एशियंस के प्रवासी इतिहास की एक अहम घटना है।कनाडा सरकार और वहां के रहने वाले गोरे लोग नहीं चाहते थे कि काले लोग इधर आए।कनाडा में भारतीयों का आना बंद करने के लिए गवर्नर जनरल ने कानून की धारा 38(A)के अंतर्गत आदेश संख्या 220 पास किया जो 9 मई 1910 को लागू हुआ।

इस कानून के मुताबिक कनाडा आने के लिए हर नागरिक को अपने देश से सीधा जहाज लेकर कनाडा आना पड़ेगा और 200 डाॅलर की करेंसी साथ में लानी पड़ेगी। जिससे भारतीयों का कनाडा जाना नामुमकिन हो गया।क्योंकि उस समय भारत से कोई भी जहाज सीधा कनाडा नहीं जाता था।

इस मसले का हल निकालने के लिए सिंगापुर के रहने वाले एक सिख व्यापारी गुरदित सिंह सरहाली ने एक योजना बनाई।उसने एक कंपनी बनाई।जिसका नाम उसने गुरु नानक जहाज कंपनी रखा और एक जहाज किराए पर लिया।यह जहाज 4 अप्रैल 1914 को हांगकांग से 376 मुसाफिर लेकर कनाडा की तरफ रवाना हुआ। गुरु नानक जहाज कंपनी ने जिस जहाज को किराए पर लिया था।उस जहाज का नाम कामागाटा मारु था। कामागाटा मारू के जरिए गुरदित सिंह ने अपनी कमाई करने का भी साधन बना लिया और अपने सिख भाईचारे को कनाडा पहुंचाने का भी इंतजाम कर लिया।इस जहाज में रंग-बिरंगे भारतीय मुसाफिर कनाडा के लिए रवाना हुए। जहाज शंघाई (चीन)और योकोहामा (जापान) के रास्ते होता हुआ कनाडा की तरफ बढ़ा।

23 मई 1914 को जहाज कनाडा के बंदरगाह वैंकूवर पर जा पहुंचा। लेकिन कनाडा पुलिस ने उनको वहां पर पहले ही रोक लिया।जहाज के मुसाफिरों ने कनाडा की धरती पर उतरने के लिए अपनी कानूनी कोशिश की लेकिन कनाडा की सरकार ने अदालती फैसला सुना दिया कि जहाज मुसाफिरों समेत वापस भारत की तरफ मुड़ जाए।लेकिन मुसाफिरों ने उनके हुकुम को नहीं माना।कनाडा पुलिस ने मुसाफिरों को दो बार समुंदर में डुबो के मारने की कोशिश की।लेकिन मुसाफिरों ने पुलिस का दिलेरी के साथ मुकाबला किया और पुलिस को पीछे हटना पड़ा।इस फैसले के तहत कनाडा सरकार ने मुसाफिरों को वापसी के रास्ते के लिए खाद्यान्न और किराया दिया और जहाज वापस 23 जुलाई 1914 को भारत की तरफ चल पड़ा।

26 सितंबर 1914 को जहाज हुगली नदी जा पहुंचा।यहां भी मुसाफिरों को अपनी धरती पर उतरने नहीं दिया गया।अंग्रेज हुकूमत जहाज को घेरकर बजबज घाट कोलकाता ले गए और वहां 3 दिन तक मुसाफिरों को जहाज में ही कैद कर लिया।अंग्रेजों ने मुसाफिरों को 29 सितंबर 1914 को जहाज से उतारकर गिरफ्तार कर लिया।जब सरकार ने उनको रिहा नहीं किया।तब अंग्रेज अधिकारियों से उन लोगों की तकरार शुरू हो गई।अंग्रेज अफसर मुसाफिरों के ऊपर रौब जमाने लगे।जिसका मुसाफिरों ने कड़ा विरोध किया।अंग्रेजों ने मुसाफिरों के ऊपर गोलियां चलाने का हुकुम दिया।जिससे 22 मुसाफिर शहीद,25 जख्मी,202 गिरफ्तार और 62 को रिहा किया गया जिसमें 28 मुसाफिर लापता हो गए,जिनका कोई भी पता नहीं चला। बंगाल के सिखों द्वारा हर साल इस दिन को बजबज घाट के उन शहीदों को उनकी कुर्बानी के लिए याद किया जाता है और श्रद्धांजलि समागम किया जाता है।

आज उन्ही शहीदों की शहादत के कारण ही लाखों-करोड़ों लोगों के लिए विदेशों में काम करने के रास्ते खुले और आज भी उन सिखों को नमन है जो किसानों की हक की लड़ाई लड़ रहे हैं।

इनपुट सिख इतिहास

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