आलेख- विकास चन्द्र अग्रवाल
हर मुठभेड़ जितने सवालों का उत्तर देती है उससे ज्यादा सवालों को उलझा जाती है। फिर सवाल हो तेलंगाना में मुठभेड़ में मारे गए लेडी डॉ दिशा के बलात्कारी और कातिलों का या फिर बिकरु, कानपुर पुलिस हत्याकाण्ड के उपरान्त विकास दुबे और उसके सहयोगियों का मुठभेड़ में मारे जानें का।
निर्भया के बालात्कारी और हत्यारों को हम कितने दिनों में सज़ा दे पाए ? इन हत्यारों की फांसी को जिस तरह उनके वकील ने बार बार स्थगित कराया उससे उनकी काबलियत कम और क्रिमिनल जुरिसपुडेंस की लाचारी ज्यादा प्रकट होती है। वकालत जिसका कार्य है, न्यायपालिका को सही निर्णय पर पहुँचने में सहायता पहुँचाना वह कानून की बारीकियों में उसको उलझाने का कार्य बखूबी निभा रही है।
सिर्फ इतना ही नहीं कानपूर के बिकरू थाना क्षेत्र में 8 पुलिस वालो की हत्या के आरोपी विकास दुबे को पुलिस द्वारा एनकाउंटर में मार गिराए जाने के पश्चात अब सुप्रीम कोर्ट में मुंबई के वकील अटल बिहारी दुबे की तरफ से याचिका दायर की गई है। ईमेल के ज़रिये उन्होंने अपनी याचिका कोर्ट को भेजी है।
वकील अटल बिहारी दुबे की तरफ से एक वीडियो शेयर किया गया है। इस वीडियो में उन्होंने विकास दुबे के एनकाउंटर को फर्ज़ी एनकाउंटर कहा है और इस पूरे मामले की जांच सीबीआई के द्वारा कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में कराए जाने की माँग की है।
अपनी एप्लीकेशन में वकील दुबे ने कहा है जिस तरह से विकास दुबे कल उज्जैन में पकड़ा गया था। उससे यह साफ़ था की विकास की मौके से भागने की कोई मंशा नहीं थी। उनका यह भी तर्क था कि विकास दुबे को कानपुर लाती पुलिस के काफिले में शामिल मीडिया वालों की गाड़ियों को घटनास्थल से दो किलोमीटर पहले ही रोक दिया गया था।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट में घटना वाले दिन से पहली रात को एक याचिका दायर की गई थी जिसमे विकास दुबे के एनकाउंटर किये जाने की आशंका जताई गई थी।
लाइव लॉ के मुताबिक यह याचिका वकील घनश्याम उपाध्याय ने दायर की थी जिसमें “अभियुक्त विकास दुबे के पांच साथी अभियुक्तों की हत्या / कथित मुठभेड़ की गहन जांच की मांग की गई जो 02 जुलाई को जिला कानपुर में कथित तौर पर आठ पुलिसकर्मियों की हत्या में शामिल थे, जिसे अब कानपुर कांड के नाम से जाना जाता है और जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है।
आगे यह प्रार्थना भी की गई है कि इस प्रकरण की गहन जांच करा सभी दोषियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाही की जाए ।
सर्वोच्च न्यायलय इन याचिकाओं पर क्या निर्णय लेता है यह तो समय ही बताएगा परन्तु जन सामान्य का और खासतौर से उनका जिनके कंधों पर न्याय व्यवस्था लागू करने की ज़िम्मेदारी है, का विश्वास अगर न्याय व्यवस्था से उठ जाएगा तो देश को एक बहुत ही कठिन दौर से गुजरना होगा ।
संविधान में न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका में शक्तियों का विकेन्द्रीयकरण किया गया है । जरूरत है सरकार के इन तीनों अंगों में बेहतर सामन्जस्य की, ताकि जनमानस के मन में लुप्तप्राय होता विश्वास पुनः स्थापित हो सके।