आप भी जानिए.. आखिर कैसे और कहां हुई होली के महापर्व की शुरुआत


होली के महापर्व पर आदित्य यादव की विशेष रिपोर्ट…

होली का त्योहार दुनिया के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है और कई देशों में करोड़ों लोग होली के त्यौहार को धार्मिक रीति रिवाज और पूरे आनंद के साथ सैकड़ों वर्षो से मनाते आ रहे हैं.. यह एक ऐसा त्यौहार है जब सारे मतभेदों को भुलाकर लोग एक दूसरे के साथ प्रेम व्यवहार को निभाते हुए रंग खेलते हैं ..गले मिलते हैं एक दूसरे को शुभकामना देते हैं.. और अपने घरों में मिठाइयां और पकवानों से एक दूसरे का खूब स्वागत करते हैं.. सामाजिक समरसता और भेदभाव को भुला कर मानवता को नमन करना होली के महापर्व का संदेश है..
लेकिन हम आपको बताते हैं की होली के इस त्यौहार की शुरुआत आखिर कैसे और कहां हुई…
प्राचीन काल में वर्तमान उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद का नाम हरि द्रोही था और हरी द्रोही नगरी पर राक्षसराज हिरणकश्यप का शासन था.. अपनी नगरी का नाम हरि द्रोही रखा था.. क्योंकि वह हरि का द्रोही था यानी हरि का विरोधी था और भगवान की पूजा और उपासना का भी विरोध करता था.. वह समाज को राक्षसी प्रवृत्ति की ओर ले जाना चाहता था परंतु हिरणाकश्यप का बेटा प्रहलाद जन्म से ही बड़ी सात्विक प्रवृत्ति का था और उसकी ईश्वर की उपासना करता था.. वह अपराधियों और मनुष्य पर अत्याचार का विरोध करता था.
शुरू में तो हिरणाकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को समझाया कि वह ईश्वर की उपासना छोड़कर राक्षसों की संगत में आ जाए लेकिन जब हिरण कश्यप की बात उसके बेटे प्रह्लाद ने नहीं मानी और सत्य और न्याय के प्रतीक के रूप में ईश्वर की भक्ति को प्रारंभ रखा तो हिरण्यकश्यप नाराज हो गया और उसने प्रह्लाद के हत्या करने का प्रयास किया.
प्रह्लाद ने भगवान से मदद मांगी तो भगवान ने हिरण कश्यप के अंत की योजना बनाई पूर्व में हिरणकश्यप को भगवान ब्रह्मा से यह वरदान था धरती पर मनुष्य के द्वारा अथवा किसी भी जीव जंतु के द्वारा कहीं भी किसी रूप में उसकी हत्या करना संभव नहीं होगा.. इतना ही नहीं हिरण कश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को मारने की जिम्मेदारी सौंप दी ..और राक्षसी होलीका प्रहलाद को लेकर होली एक बड़े अग्निकुंड में बैठ गई उसने योजना बनाई कि अपनी दैवी शक्ति से वह तो जलने से बच जाएगी. परंतु प्रहलाद जलकर मर जाएगा लेकिन ईश्वर की महान कृपा से प्रहलाद की जान बच गई और उसी अग्निकुंड में होलिका जल गई तब से राक्षसी होली का के अंत की खुशी में होली का पर्व मनाया जाता है.. जैसे ही होलिका का अंत हुआ था उसके तुरंत बाद हिरणकश्यप नाराज होकर जनता पर भारी अत्याचार करने लगा तो.. भगवान नरसिंह का अवतार लेकर प्रकट हुए और आधा मनुष्य और आधा सिंह का रूप धारण करके न धरती पर ना आसमान पर यानी हिरणकश्यप को अपनी जांघों पर बैठाकर भगवान ने उसका पेट फाड़ कर उसका वध किया
. इस प्रकार भगवान ब्रह्मा के द्वारा हिरण कश्यप को दिए गए वचन की रक्षा हुई और राक्षसराज हिरण कश्यप का अंत भी हुआ यह सारे प्रसंग हरदोई जनपद से जुड़े हुए हैं .

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इसीलिए यह माना जाता है कि जनपद हरदोई से ही होली के महापर्व की शुरुआत हुई हरदोई में आज भी भगवान नरसिंह का मंदिर और प्रह्लाद घाट नाम के दर्शनीय स्थल है जहां दूर-दूर से लोग होली के इतिहास और प्रारंभ से जुड़े प्रश्न को समझने के लिए आते हैं.