हाथों में स्टियरिंग, निगाहें सड़क पर और दिल में छिपा बहुत सा दर्द- एक ओला कैब ड्राइवर से बातचीत।

आज प्रातः 2.15 पर चारबाग स्टेशन उतरा और घर पहुँचने के लिए ओला कैब बुक की | गाड़ी की पंजीयन संख्या और ड्राईवर का नाम फ़ोन पर आ गया | सर्वेश था ड्राईवर का नाम | कैब में बैठा ,सर्वेश को ओ टी पी बताया और हमारी यात्रा शुरू |

कैब थोड़ी आगे बढ़ी तो बातचीत का सिलसिला चालू हुआ –
मैं – और लॉकडाउन की अवधि में कैसे और कैसी कटी जिंदगी ?
सर्वेश – कटनी क्या थी साहब गाँव में थोड़ी खेती पाती है , वहीं चले गए थे तो गुज़ारा हो गया वरना…….. ( उसने अपनी बात मेरे समझने के लिए बीच में ही अधूरी छोड़ दी )
मैं – अब कैसा है ?
सर्वेश – लॉकडाउन से पहले के मुक़ाबले लगभग 50 प्रतिशत काम है अभी भी | कंपनी वालों ने अपना कमीशन बढ़ा लिया है और हमारा घटा दिया है | इनसेंटिव खत्म कर दिया है |
( मैंने शायद उसकी दुःखती रग पर हाथ रख दिया था ) वह बताता रहा …… 12 घंटे ओला चलाओ तो 700 से 800 रुपयों की कमाई हो पाती है | रात में तो हाल और भी बुरा है, कहीं दूर की सवारी मिल गई तो लौटते में खाली लौटो या फिर 2-3 घंटे खड़े रहो अगली बुकिंग के इंतज़ार में | 500 रुपये की कमाई हो जाये तो बहुत है | गाड़ी की ई एम आई , घर का किराया, गाड़ी का रखरखाव , बच्चों की फीस , बीमारी और सामाजिक दायित्वों का निर्वाहन …बहुत मुश्किल हो जाता है सब कुछ | अभी तो फिर भी ठीक है अभी कंपनी की अपनी गाडियाँ सड़कों पर नहीं हैं , नहीं तो एक किलो मीटर दूर से भी अपनी गाडियाँ बुलाकर बुकिंग देते हैं और पास खड़ी प्राइवेट गाड़ी को बुकिंग नहीं मिलती है…. क्योंकि उनको अपनी गाड़ियों के चालकों से 800 रुपए रोज़ जो लेने होते हैं | सुना है कंपनी की गाड़ियों की सर्विसिंग हो रही है और शायद अगले महीने से सड़कों पर आ भी जाएँ , तब तो हम लोगों की मुश्किलें और भी बढ़ जाएंगी |

फिर चुप्पी छा गई | मेरे सवाल खत्म हो चुके थे और उसके जवाब | उस काटने वाली खामोशी में, मैं सोच रहा था कि लॉकडाउन की अवधि में बेरोजगार चालकों के नाम पर डोनेशन मांगने वाली और अब चालकों को टिप देने की सिफ़ारिश करने वाली कम्पनी खुद अपने चालकों के हितों के प्रति कितनी सजग और हमदर्द है ?

मेरी मंज़िल आ चुकी थी कुछ भारी मन से भुगतान करते हुए मैंने सर्वेश से विदा ली | सर्वेश मेरी सोसाइटी के बाहर वीरान सड़क पर खड़ा हो गया होगा, अपनी अगली बुकिंग के इंतज़ार में | पता नहीं कितना लंबा रहा होगा उसका यह इंतज़ार ?

सिर्फ वही ही नहीं, न जाने कितने सर्वेश, कितने चौराहों पर खड़े अगली बुकिंग का इंतज़ार कर रहे होंगे ,ताकि वो किसी विकास को उसकी मंज़िल तक पहुँचाकर सम्मान पूर्वक दो वक़्त की रोटी कमा सकें।

आलेख- विकास चन्द्र अग्रवाल

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