1857 जयंती आज! देश के लिए जवानों और किसानों का अभूतपूर्व संघर्ष, एक करोड़ भारतीयों का बलिदान, क्या भूल गया हिंदुस्तान? फिल्म लेखक इतिहासकार अमरेश मिश्र का लेख जरूर पढ़ें !

मंगल पांडे को भारत रत्न,बहादुर शाह ज़फर का स्मारक, ब्रिटेन मांगे नरसंहार के लिए माफी! मंगल पांडे सेना की मांग!

आज 10 मई 2020, प्रथम भारतीय सवतंत्रता संग्राम 1857 की 163वी जयंती है।

सरकार की नीतियों की वजह से, भारत मे कोरोना संकट अमीर बनाम गरीब, गांव बनाम शहर आधारित सत्ता के संहर्ष मे बदल गया है। अमीरों को विमान से भारत वापस लाया जा रहा है। जबकि किसान और मिडिल क्लास परिवेश के लाखों, खास-तौर पर उत्तर-बिहार के मज़दूर, सड़क और रेल पटरियों पर मर रहें हैं। कोई पूछने वाला नही है।

एक इतिहासकार के बतौर जिसने वी डी सावरकर के बाद 1857 पर भारतीय परिपेक्ष्य से काम किया, और 2000 पेज की किताब लिखी, मै यह कह सकता हूं कि आज का अमीर वर्ग वही है जिसने 1857 मे अंग्रेज़ो का साथ दिया था। और देश के खिलाफ गद्दारी की थी। उस लड़ाई मे अनगिनत लोग शहीद है। एक ही लेख मे सबके नाम लेना संभव नही । पर ज़्यादातर प्रमुख नायक–मंगल पांडे, बाबा शाहमल जाट, धन-सिंह गूजर, बशारत अली, बहादुर शाह ज़फर, ठाकुर बेणी माधव सिंह, ठाकुर बल बलभद्र सिंह चहलारी, बाबू कुंवर सिंह, मेघार राय, जवाहर राय, भागीरथ मिश्र, हेतलाल मिश्र, विश्वनाथ साही, बख्त खान, वीरा पासी, गंगू मेहतर, भोंदू सिंह अहीर, गुन्नू कोल, अवंती बाई लोध, मौलवी अहमदउल्लाह शाह, मौलवी लियाक़त अली, शिया मेंहदी हसन, राजा बालकृष्ण श्रीवास्तव, भागोजी नायक भील, शंकर साई गोंड, सुरेन्द्र साही,
शिया अली कासिम, बेगम हज़रत महल, रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई कोइरी, फज़लुल हक़ खैराबादी, राव तुला राम, नहार सिंह जाट, नाना साहब पेशवा, तांत्या टोपे, राजा जय लाल सिंह कुर्मी, चेतराम जाटव आदि–हरियाणा, उत्तर-प्रदेश और बिहार के थे। इनमे सभी धर्मों और जातियों के योद्धा थे।

यहीं नही–असाम के चाय बगान के उद्यमी मनीराम दीवान, अहोम राजा कर्पदेशवर सिंघा, बुदधिजीवी पियाली बरुआ,  हज़ारीबाग मे कैद सिंध के अमीर, अविभाजित पंजाब की अमर प्रेम कथा शीरीं-फरहाद मे फरहाद के वंशज अहमद खरल, हज़ारा के पीर, जम्मू के डोगरे, कुमायूं-गढ़वाल के ब्राहमण-राजपूत, हिमाचल के राजपूत-ब्राहमण, गिलगिट, कशमीर के शाह, लुधियाना के सिक्ख, गुजरात के व्यापारी मगनलाल बनिया, निहालचंद झावेरी, गड़बड़ दास पटेल एवं जिवाभाई ठाकोर, द्वारिका के वघेर, मुंबई के सोनार जगन्नाथ शंकरसेठ, पुणे के कायस्थ महाप्रभु रंगो बापोजी, नाना साहब के पठान सचिव अज़ीमउल्लाह खान, आंध्र-प्रदेश-पूर्वी गोदावरी के किसान नेता कारूकोणडा सुब्बारेड्डी, गिरिजन-कोई आदिवासी, कापू-कम्मा किसान, एटा-मैनपुरी के दलित जाटव, कर्नाटक के बाबा साहेब नारगुंद, वेंकटप्पा नायक, गौड़ा, वोकालिग्गा, लिंगायत और कुरूबा किसान, उड़ीसा के पंडे, पटनायक, पाणिग्रही और आदिवासी, सिंहभूम के कोल, भानभूम के संथाल, पलामू-सोनभद्र-मिरज़ापुर के चेरो और खरवार, छत्तीसगढ़/तेलंगाना के गोंड, मालवा, दक्षिणी गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के भील, राजस्थान के मेघवाल और मीणा,
तमिल नाडू के वनियार और मुदालियार, केरल के मोपलाह और   मणिपुर के राजकुमार नरेंद्र सिंह, पंजाब के सिक्ख सरदार मोहर सिंह खालसा–आखिर इतने diverse लोगों मे वो क्या बात थी जिसने सभी से यह ऐलान करवाया कि ब्रिटिश ईस्ट कंपनी के राज का अंत हो गया है, बहादुर शाह ज़फर पूरे मुल्क के बादशाह हैं, और हुकूमत किसान-बुनकार-लड़ाकू पेशे से आये आम सिपाहियों के हाथ मे है? ऐसा कैसे हो गया कि कई जगह उच्च जाति के सिपाही, दलित रजवारों, मुसहरों, पासियों, वाल्मीकियों, चमारों, महारों  के नेतृत्व मे लड़े? और 1857 मे जो नये तथ्य आ रहे हैं उनके हिसाब से उत्तर-प्रदेश, बिहार, मध्य-प्रदेश, गुजरात मे बड़े पैमाने पर बड़े-बड़े सामंत, पारसी-मारवाड़ी दलाल-ट्रेडर्स, बंगाली और हिंदी पुनर्जागरण के बड़े परिवारों की बड़ी-बड़ी प्रतिभायें, जिन्होंने आज का राष्ट्र-गान तक लिखा, उनके परिवार ने बिन अपवाद अंग्रेज़ो के साथ थे?

हमे तो बताया गया है कि ‘राष्ट्र’ जैसा concept, अंग्रेज़, कांग्रेस या अब RSS लायी है? टाटा-बिड़ला-अंबानी इत्यादी का ‘राष्ट्र’ बनाने मे बड़ा योगदान है?

1857 को हम प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहते हैं! पर उसपे पैनी नज़र डाली जाये तो दिखता है कि यहां राष्ट्र का concept अहिंसा, हिंदुत्व से नही–बल्कि अंग्रेज़/साम्राज्यवाद/सामंतवाद विरोधी, किसानो, बुनकरों, मज़दूरों, सिपाहियों, छोटे व्यापारियों और उद्यमियों द्वारा चलायी गयी खूनी क्रांती से निकला!

हमको कहा गया हिंदू-मुस्लिम-सिक्ख सैकड़ो साल लड़ते रहे? और अंग्रेज़, कांग्रेस या RSS ने उन्हे एक किया? पर हम देखते हैं कि अंग्रेज़ ने लूट-लूट कर भारत जिसका 1720 मे विश्व व्यापार मे हिस्सा 22% था–वो 1857 के आते-आते 2% रह गया! ग्रोथ निगेटिव मे चली गयी! कांग्रेस ने अगर एक किया तो विभाजन कयूं हुआ? और RSS ने एक किया तो हम आज दूसरे विभाजन की कगार पर कयूं खड़े हैं?

किसी को मालूम ही नही कि सनातन धर्म और इस्लाम के बीच 1857 मे धर्म-ग्रंथो को साक्षी मान कर लिखित एकता हुई थी। मस्जिद-मंदिर विवाद भी सुलझ गया था। बिरजीस क़दर के घोषणापत्र मे निचली और ऊंची जातियों के बीच बराबरी की बात की गई थी। ये एक तरह का बिल आफ राइट्स था। हर किसान को ज़मीन का funda बहादुर शाह ज़फर के घोषणापत्र मे मैजूद था।

1857 के शहीदों का सपना था–भारत मे किसान राज की स्थापना एवं सामंती या दलाल पूंजी से नही, बल्कि किसान-पथीय पूंजीवाद द्वारा समूचे भारत का विकास।

ये पूरा लोकतंत्र, इसकी संस्थाऐ–बीज रूप मे हम मुगल काल से विकसित कर रहे थे। पंचायती राज के लिये हमे सरकारी संस्थाओं की ज़रूरत नही पड़ती। पता नही वो आज़ाद भारत कैसा होता जो 1857 की गर्भ से निकलता। कुछ भी हो, उसमे 1947 का विभाजन कतई न होता! 

आज़ादी के बाद, उत्तर-प्रदेश विधान सभा के सामने हमे मंगल पांडे की प्रतिमा लगानी चाहिये थी, बहादुर शाह ज़फर की अस्थियाँ बर्मा से भारत लानी चाहिये थीं। और हर राज्य की विधान सभा, हर जिले की कचहरी पर वहां के लोकल 1857 के नायक-नायकों की प्रतिमा लगानी चाहिये थी। तब राष्ट्र निर्माण होता। ये है असल ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’। दूसरी बात, पूरे भारत मे अभी भी क्रूर अंग्रेज़ अफसरों का महिमामंडन होता है। अंग्रेज़ो की प्रतिमाओं पर हम कम-से-कम उनकी क्रूरता का तो बखान करें! जो बेहद विवादास्पद हैं उनको हटाया जाये! 

सबसे बड़ी बात 1857 मे भारत की जनसंख्या 15 करोड़ थी। 1857-1867 के बीच 1 करोड़ भारतीय मारे गये। अकेले उत्तर-प्रदेश मे 50 लाख। ये दुनिया का सबसे बड़ा होलोकासट  था। इसपे न कभी जांच हुई–और न ब्रिटिश हुकूमत से माफी और मुआवज़े की मांग की गई!

एक आडिया आफ इंडिया कांग्रेस का है; एक RSS का है; और एक 1857 का है–जिसको जिस रास्ते जाना है जाये–पर एक बात समझ लें। भारत मे निरंकुश-फासीवाद आ रहा है। ये और कुछ नही पश्चिमी साम्राज्यवाद का मोहरा है। मतलब भारत को फिर से गुलाम बनाने की साज़िश ज़ोरों पर है।

इस संकट से हमे सिर्फ 1857 की विचारधारा निकाल सकती है!

हम अभी भी मांग करते हैं:
मंगल पांडे की प्रतिमा उत्तर-प्रदेश विधान सभा के सामने लगनी चाहिये!
मंगल पांडे को भारत रत्न से नवाज़ा जाये!
बहादुर शाह ज़फर की अस्थियाँ म्यान्मार से भारत लायीं जायें और यथोचित सम्मान के साथ उनका स्मारक बने!
अंग्रेज़ो की कब्र इत्यादी पर उनका महिमामंडन बंद हो!
1 करोड़ भारतवासियों के नरसंहार के लिये ब्रिटेन माफी मांगे/मुआवज़ा दे!
कोहिनूर हीरा और अन्य से लूटे खज़ाने, भारत को वापिस किया जाये!
भारत को किसान पथीय-पूंजीवादी विकास के रास्ते ले चला जाये!

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