रिपोर्ट – दीपक मिश्रा
दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक कोरोनावायरस की वैक्सीन ढूंढने में जुटे हैं कई देशों ने कम खर्च में तेजी से जांच करने वाली जांच किट विकसित कर ली है लेकिन भारत के वैज्ञानिक अभी तक खामोश है, जबकि भारत में बीमारियों पर रिसर्च करने वाले बीमारियों का इलाज ढूंढने वाले दर्जनों सरकारी संस्थान है जिन पर जनता की गाढ़ी कमाई के अरबों रुपए खर्च हो रहे हैं इन संस्थानों पर भारी भरकम बजट खर्च करने के बाद भी नतीजा “लगभग शून्य” है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की लापरवाही सीधे तौर पर इसके लिए जिम्मेदार है।
आज भी हमारे देश में ज्यादातर बीमारियों की दवाई विदेशी फार्मूले पर आधारित हैं बल्कि बहुत सी दवाएं तो हमें आयात ही करनी पड़ती है या फिर उन दवाओं के महत्वपूर्ण रसायन आयात करने पड़ते हैं।
यह कड़वी सच्चाई है बीमारियों का समाधान खोजने के लिए, शोध कार्यों में हम बहुत ही पीछे हैं दक्षिण कोरिया, अमेरिका और चीन में बहुत तेजी से करोना वायरस की वैक्सीन काम चल रहा है। अमेरिका की जॉन हापकिंस यूनिवर्सिटी कोरोनावायरस पर व्यापक रिसर्च कर रही है और भारत में भी उसके प्रभाव को लेकर रिपोर्ट जारी कर रही है, लेकिन भारतीय संस्थान इस मामले में खामोश हैं।
भारत में आईसीएमआर ICMR (इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च) नाम का एक बड़ा संस्थान है।
इस संस्थान का काम ही है बीमारियों पर शोध करना दवाई खोजना, इसके अलावा NIV नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी काम है विभिन्न प्रकार के वायरस पर रिसर्च करना और उन वायरस के खतरों से इंसानों को बचाने के लिए वैक्सीन ढूंढना , करोना वायरस पर इस संस्थान को महीनों पहले ही काम शुरु कर देना था लेकिन NIV कोरोनावायरस के आगे अभी तक पराजित साबित हुआ है।
यह बेहद दुखद है कि भारत का कोई भी वैज्ञानिक संस्थान कोरोना वायरस की काट ढूंढने में अभी तक कोई ठोस काम नहीं कर पाया जबकि पिछले 3 महीनों से कोरोनावायरस की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है और सभी को पता था, कोरोना वायरस भारत में भी तबाही मचाने वाला है।