IAS द्वारा पत्रकार की पिटाई, परिस्थितियां कैसी भी हो संतुलन नहीं खोना चाहिए!

देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा के एक और अधिकारी ने अपना संतुलन खो दिया और एक नौजवान पर अपनी ताकत और नाराजगी का प्रदर्शन करने लगे। यह नजारा है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगे हुए उन्नाव जनपद का जहां मुख्य विकास अधिकारी दिव्यांशु पटेल इलेक्ट्रॉनिक् मीडिया से जुड़े एक पत्रकार की पिटाई करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं ।

उन्नाव के मियागंज इलाके में ब्लॉक प्रमुख चुनाव के कवरेज के लिए कई पत्रकार मौजूद थे और वहां पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी। इसी बीच वहां वीडियो रिकॉर्डिंग कर रहे पत्रकार कृष्णा तिवारी और मुख्य विकास अधिकारी दिव्यांशु पटेल के बीच अचानक बात बिगड़ गई और दिव्यांशु पटेल अपना संतुलन खो बैठे और इसी बीच एक सफेदपोश खद्दर धारी नेता ने भी अपने व्यक्तित्व और चरित्र की नुमाइश कर दी।

घटना के बाद पूरे प्रदेश में यह वीडियो वायरल हो रहा है सरकार पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर लोकतंत्र के उत्सव यानी ब्लॉक प्रमुख चुनाव के दौरान क्यों लोकतंत्र के चौथे खंभे के प्रतिनिधि पत्रकार को इस तरह शिकार बनाया गया।

डीएम उन्नाव ने हस्तक्षेप करते हुए मामले में जांच के निर्देश दिए हैं और सीडीओ ने अपने व्यवहार के लिए खेद भी जाहिर किया है। उनका कहना है कि ब्लाक परिसर के निकट प्रतिबंधित क्षेत्र में बिना आई कार्ड लगाए हुए संदिग्ध युवक को उन्होंने रोकने का प्रयास किया तो संबंधित युवक के द्वारा सीडीओ के साथ बदसलूकी की गई ।

मुख्य विकास अधिकारी दिव्यांशु पटेल के अनुसार उनके शरीर पर भी खरोच आई हैं जिसके बाद वह अपना नियंत्रण खो बैठे बाद में पता चला कि कृष्णा तिवारी मीडिया संस्था से जुड़े हुए हैं तो सीडीओ ने अपने व्यवहार के लिए खेद प्रकट किया।

फिलहाल उन्नाव में दोनों पक्षों में समझौते का प्रयास चल रहा है पत्रकार के सम्मान को सुनिश्चित करने के साथ इस विवाद का पटाक्षेप होना चाहिए और आगे ऐसी घटनाएं दोबारा न हो इसका सभी को ख्याल रखना होगा।

इस घटना को पत्रकारों की आपसी गुटबाजी और राजनीतिक खेमे बंदी से भी जोड़कर देखा जा रहा है । पिछले कुछ वर्षों में सभी जनपदों में पत्रकारों और प्रशिक्षु मीडिया कर्मियों की संख्या बढ़ी है मीडिया पर अक्सर अनुशासनहीनता और पक्षपात के आरोप भी लगते हैं लेकिन विकृतियां समाज के सभी हिस्सों में आई हैं ।

पत्रकारों के साथ बदसलूकी पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने ही उनके लोगों ने भी की थी तब अखिलेश ने भी पत्रकारों का साथ नहीं दिया था ।

ऐसी वारदातें आए दिन हो रही हैं, पहले से ही आर्थिक और संवैधानिक सुरक्षा के अभाव में काम कर रहे पत्रकार, लोकतंत्र में आपके अधिकारों के मुख्य संरक्षक हैं।

जो न्यूनतम सुविधाओं में अधिकतम जोखिम उठाते हुए काम कर रहे हैं इसके बावजूद पत्रकारों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं ।

लेकिन सवाल सिर्फ पत्रकार के नहीं आम आदमी के भी सम्मान का भी है और पत्रकार का सम्मान भारतीय नागरिक के सम्मान का प्रतीक है जिस की गारंटी भारत के संविधान ने ली है।

ब्यूरो रिपोर्ट द इंडियन ओपिनियन

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