कोविड का प्रभाव कम हो रहा है।आँकड़े तो यही बताते हैं।दिनचर्या सामान्य हो चुकी है।लोग काम पर जा रहे हैं , मौज मस्ती कर रहे हैं, उत्सवों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं…पर इस सब के बीच कुछ लोग हमको हमेशा के लिए छोड़ कर जा रहे हैं,खामोशी के साथ बिना इतना समय दिए हुये कि हम उनको कोई चिकित्सा सहायता पहुँचा सकें । अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में व्यस्त इन्सान गिरता है और सब कुछ खत्म जैसे किसी ने चलते हुए खिलौने का स्विच बन्द कर दिया हो । आइये कुछ घटनाओं का ज़िक्र करते हैं-
18 नवम्बर 2021 की घटना।एक 26 साल की बच्ची दिल्ली पालम मेट्रो स्टेशन पर अपना मेट्रो कार्ड रिचार्ज कराने के लिए लाइन में खड़ी है।लाइन में सिर्फ 2 लोग है।अचानक वो गिरती है और सब कुछ खत्म।
27 सितम्बर 2022 बी एच यू में योग करती एक छात्रा मृत्यु का ग्रास बन जाती है ।
27 सितम्बर 2022 को 22 साल का बच्चा हैदराबद में टी वी पर क्रिकेट मैच देखकर सोता है। रात में उठता है और फिर सब कुछ समाप्त।
2 अक्टूबर 2022 गुजरात के आनन्द में गरबा खेलता 21 साल का बच्चा अचानक गिरता है और निष्प्राण हो जाता है ।
3 अक्टूबर 2022 – महाराष्ट्र का विरार शहर। 35 साल का व्यक्ति गरबा खेलते खेलते गिरता है और सब समाप्त। लोग अस्पताल ले कर भागते है पर बहुत देर हो चुकी होती है। सदमे से पिता की भी मृत्यु।
किस किस का ज़िक्र किया जाए शशांक तिवारी,सलमान खान का बॉडी डबल सागर पाण्डेय, गायक के के या फिर जम्मू में नृत्य करती वह लोकल कलाकार।
किसी से भी बात कर लीजिए वह इस तरह की किसी घटना की पुष्टि ज़रूर करेगा।सोशल मीडिया भरा पड़ा है इस तरह के समाचारों से और सिर्फ एक ही प्रश्न सबके जहन में आ रहा है—ये क्या और क्यूँ हो रहा है ?
इस क्यूँ के दो सीधे सीधे कारक जो समझ में आते हैं वह हैं-
1. कॅरोना से ठीक होने वालों में दीर्घ कालिक दुष्प्रभाव।
2. कॅरोना वैक्सीनेशन का कोई अपरोक्ष दुष्प्रभाव।
किसी न किसी को तो इन असमय होती मौतों के कारण जानने की पहल करनी होगी..चाहे फिर वह सरकार हो, मेडीकल फेटर्निटी या फिर इस क्षेत्र में कार्यरत शोध अथवा समाज सेवी संस्थाए। क्या इन मौतों में कोई एक ऐसा सूत्र है जो इन सब को आपस में जोड़ता है?
अगर जल्द ही इस दिशा में कोई पहल नहीं होती है तो इस तरह की असमय मौतें सिर्फ एक संवेदनाहीन आंकड़ा बन कर रह जायेंगी।
याद रखियेगा यह सिर्फ वो आँकड़े हैं जो सोशल मीडिया तक पहुँच पाये… उनका क्या जो बिना कोई सुर्खी बटोरे गुमनामी के अंधकार में खो जाते हैं?
विकास चन्द्र अग्रवाल – द इंडियन ओपिनियन