बाराबंकी। ‘जो सत्य अहिंसा पे चला डर नहीं सकता, भूले से किसी की हानि कर नहीं सकता। सत्याग्रहों से जिसने बड़ी जंग जीत ली, वह मौत के बाड़े से कभी मर नहीं सकता।।’ यह काव्य रचना प्रसिद्ध गीतकार डाॅ. बुद्धिनाथ मिश्र ने गांधी भवन में गांधी सप्ताह के दूसरे दिन आयोजित 41वें अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं मुशायरा में पढ़ी। जिसकी अध्यक्षता पूर्व न्यायधीश मंगल प्रसाद ने की।
इसी श्रंृखला को श्री मिश्र ने आगे बढ़ाते हुए अपनी सुरीली आवाज और हल्की मोहक मुस्कान के साथ ‘एक बार और जाल फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह हो’ कविता पढ़ी। जिसे सुनकर श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो गए।
इसके बाद मशहूर शायर कुंवर जावेद ने अपनी प्रिय नज़्म कुछ यूं पढ़ी ‘गुलमोहर गुलनार चमेली या गुलाब की प्रिय सहेली, तुमको फूलों में फूलों की रानी कैसे मानूं। मेरे मन के आंगन में एक बार खिलो तो जानूं।
हास्य कवि डाॅ अनिल बौझड़ ने लोगो को हंसाते हुए अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा कि ‘तुम आप करौ ईद, हम आपन करी होली। न तुम हमसे बोलौ, न हम तुमसे बोली।’
वहीं कवि डाॅ आलोक शुक्ला ने पढ़ा ‘जीना आया जब तलक जिन्दगी फिसल गई, आइना वही रहा पर सूरते बदल गई।’
कवि जमुना प्रसाद उपाध्याय ने अपनी काव्य रचना प्रस्तुत करते हुए पढ़ा ‘जब-जब रायसुमारी करनी पड़ती है, क्या-क्या कारगुजारी करनी पड़ती है। खादी से समझौता करना पड़ता है, गांधी से गद्दारी करनी पड़ती है।’
अन्त में जमील खैराबादी ने शेर पढ़ते हुए कहा कि ‘पैदा हुए महात्मा हिन्दुस्तान में, खुशबू है इनके प्यार की हर एक मकान में।’ कवि सम्मेलन एवं मुशायरा का संचालन शायर डाॅ. ज़िया टोकनी ने की।
कवि सम्मेलन एवं मुशायरा में लखनऊ से आए वाहिद अली वाहिद, मोहम्मद अली ‘साहिल’, सरला शर्मा, अतुल वाजपेयी, डाॅ. रेहान अल्वी, फै़ज खुमार ने अपनी काव्य रचना प्रस्तुत की। इस मौके पर प्रमुख रूप से संयोजक राजनाथ शर्मा, एन.एन अवस्थी, तौकीर कर्रार, मौलाना फहीम अहमद, मो0 उमेर अहमद किदवई, एस.एम साहिल, परवेज अहमद, मो हनीफ अहमद, सत्यवान वर्मा, विनय कुमार सिंह, रवि प्रताप सिंह, रंजय शर्मा सहित सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद रहे।