गरीबों कमजोर और साधारण लोगों को आसानी से न्याय मिल सके इस बात के लिए पुलिस व्यवस्था और न्याय व्यवस्था पर हर महीने अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं इसके बावजूद गरीब और कमजोर लोगों को इंसाफ के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं।
ताजा मामला उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले का है जहां लगभग ढाई महीने पहले प्रेम प्रसंग में एक नौजवान की हत्या कर दी गई मृतक के परिजनों का आरोप है कि ढाई महीनों के दौरान वाह थानेदार से लेकर एसपी आईजी डीआईजी के दफ्तरों के चक्कर लगाते लगाते थक गए लेकिन ना तो एफ आई आर दर्ज की गई और ना ही हत्या आरोपियों की गिरफ्तारी की गई।
बस्ती जनपद के खाना सोहना के टोला करीमनगर के लाल बहादुर का कहना है कि बीते 10 अप्रैल को उनके जवान बेटे ओम प्रकाश को पेड़ में बांधकर पीट पीट कर मार डाला गया और उसके शव को फेंक दिया गया।
इस मामले में गांव के कई प्रत्यक्षदर्शियों ने देखा कि प्रेम प्रसंग के चलते प्रेमिका के परिजनों ने ही उनके बेटे को बंधक बनाकर पीट पीट कर मार डाला उनके द्वारा नामजद तहरीर कई बार थाने पर पुलिस अधीक्षक के कार्यालय पर और आईजी डीआईजी के कार्यालय पर भी दी गई लेकिन इस मामले में अभी तक न तो मुकदमा दर्ज किया गया नहीं दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई ।
वह इंसाफ के लिए दर-दर भटक रहे हैं उनके दिव्यांग बेटे की बेरहमी से हत्या कर दी गई लेकिन पुलिस अधिकारी संवेदनहीनता दिखा रहे हैं और सरकार के निर्देशों के बावजूद मामले में एफआइआर भी दर्ज नहीं की गई है परेशान होकर पीड़ित पिता राजधानी लखनऊ के गोमती नगर स्थित सिगनेचर बिल्डिंग डीजीपी मुख्यालय पर शिकायत करने के लिए पहुंचे वहां भी उन्होंने प्रार्थना पत्र दिया।
द इंडियन ओपिनियन से बात करते हुए मृतक के परिजनों ने बताया कि वह बेहद गरीब परिवार से हैं भेड़ चराने का काम करते हैं गडरिया समुदाय से हैं उनकी समस्या को जानते हुए भी उनकी मदद नहीं की जा रही और हत्यारोपी खुलेआम घूम रहे हैं ।
इस मामले में द इंडियन ओपिनियन के द्वारा पीड़ित को इंसाफ दिलाने की नियत से बस्ती के पुलिस अधीक्षक के सीयूजी नंबर पर बात की गई पुलिस अधीक्षक ने बताया कि मामले को देखा जाएगा जांच कराई जाएगी।
लापरवाह और गैर जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों की ऐसी ही कार्यशैली के चलते हजारों लोग इंसाफ के लिए संघर्ष करते करते थक कर बैठ जाते हैं और न्याय की हत्या हो जाती है और इसके साथ साथ सत्ताधारी पार्टी और सरकार की भी छवि खराब होती है । सबसे बड़ी बात यह है कि जिन गरीबों को प्राथमिकता के आधार पर हिसाब दिलाने के लिए सरकारी अधिकारियों के वेतन और अन्य सुविधाओं पर सरकारी खजाने से भारी-भरकम धनराशि खर्च की जाती है वह अधिकारी गरीबों की तकलीफों को समझना ही नहीं चाहते।
द इंडियन ओपिनियन, बस्ती