हाथरस कांड: अधिकारियों ने उपजाई मुसीबत, क्या आलोचना से घबराकर संतुलन खो रही योगी सरकार?

उत्तर प्रदेश के हाथरस में बेटी के साथ हुई हैवानियत के बाद जिस तरह से पुलिस प्रशासन ने नासमझी का परिचय दिया है उसे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार खुद कटघरे में खड़ी हो गई है।

घटना की जांच और दोषियों को सजा दिलाने के मोर्चे पर सरकार ने गंभीरता दिखाई है एसआईटी का गठन किया है पीड़ित परिवार को 25 लाख मुआवजा और सरकारी नौकरी की घोषणा भी की है दोषियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की बात कही गई है लेकिन यहां तक तो सरकार ने संवेदनशीलता दिखाई लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत सरकार के नेताओं और बड़े अफसरों के पास इस गंभीर सवाल का कोई जवाब नहीं है कि आखिरकार हिंदू धर्म के मानने वाले परिवार के साथ उनकी धार्मिक आस्था पर क्यों आघात किया गया ।

उस समय जब वह शोकाकुल थे उनकी बेटी की बेरहमी से हत्या हुई थी और सनातन मूल्यों के अनुसार रात में अंतिम संस्कार नहीं होता है वह अगले दिन सुबह अपनी बच्ची का अंतिम संस्कार करना चाहते थे लेकिन आधी रात पुलिस की निगरानी में जबरदस्ती अंतिम संस्कार करवा कर न सिर्फ परिवार के मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई गई बल्कि नैतिकता और मानवता के मूल्यों का हनन करते हुए उनकी धार्मिक आस्था पर भी चोट पहुंचाई गई । इतना ही नहीं सरकार और प्रशासन के इस कृत्य से यह संदेश गया कि मामले पर पर्दा डालने के लिए आनन-फानन में मामले को दबाने के लिए आधी रात धार्मिक नियमों के विरुद्ध अंतिम संस्कार करवाया गया, और इस तरह सरकार ने खुद ही विपक्ष के हाथों एक बहुत बड़ा मुद्दा दे दिया।

पिछले कुछ दिनों में आपराधिक घटनाओं को लेकर जिस तरह से विपक्ष में जोर शोर से सियासी लाभ लेने की कोशिश की है सरकार पर हमले तेज किए हैं इसके बाद ऐसा लग रहा है की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार कहीं ना कहीं आलोचनाओं के प्रहार से विचलित हो रही है अपना संतुलन खो रही है और इसीलिए हाथरस की घटना में सरकार ने अनापेक्षित कार्यवाही करते हुए रात में ही कथित तौर पर अंतिम संस्कार करवा दिया। और सरकार की इस गलत कार्रवाई की वजह से सरकार की कई गुना ज्यादा आलोचना हो रही है।

सपा बसपा कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दल इस मामले में अपना बड़ा सियासी फायदा देख रहे हैं और इस मामले को ज्यादा से ज्यादा भुनाकर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं क्योंकि 2022 का चुनाव नजदीक है और योगी के सिंहासन को हिलाने के लिए विपक्षी दलों को कानून व्यवस्था की कमियां ही सबसे ज्यादा रास आती हैं।

घटनाएं मुलायम सिंह के शासन में भी होती थी निठारी कांड लोगों को आज भी याद है मायावती के शासन में भी कई गंभीर बलात्कार सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले हुए अखिलेश राज में भी निघासन और बदायूं जैसी घटनाएं हुई जहां बेटियों के साथ हैवानियत हुई और या घटनाएं योगीराज में भी हो रही है दर्शन अपराध को सिर्फ कानून व्यवस्था की दृष्टि से।

आलेख – दीपक मिश्रा,

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