“जैदपुर विधानसभा की हार भाजपा के लिए मामूली हार नहीं है, क्योंकि यहां की जीत भी भाजपा के लिए मामूली जीत नहीं थी।
2017 में जब भाजपा ने जैदपुर विधानसभा पर भगवा लहराया था तब लोग हैरान रह गए थे क्योंकि जैदपुर विधानसभा पर सपा और बसपा का ही प्रभाव माना जा रहा था ,लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर जैदपुर की जनता ने भाजपा को जीत का स्वाद दिलाया था । कुर्मी समाज के साथ-साथ संपूर्ण हिंदू समाज ने एकजुट होकर उपेंद्र रावत को 2017 में विधानसभा भेजा और फिर 2019 में लोकसभा भी भेजा, लेकिन पार्टी सूत्रों के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में भाजपाइयों ने अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं की जमकर उपेक्षा की हैl सत्ता की ताकत में भाजपा नेताओं के बदले व्यवहार ने महीनों पहले ही जैदपुर हार की पटकथा लिख दी थी।
राजनीतिक रूप से संवेदनशील कुर्मी समाज को भी लगा कि “भाजपाई अब बदल गए हैं।”
बात चाहे सांसद उपेंद्र रावत की हो या फिर जिला अध्यक्ष अवधेश श्रीवास्तव की सभी पर समर्थकों और कार्यकर्ताओं की मदद ना करने के आरोप लग रहे हैं ।
इतना ही नहीं कुछ निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर भी घमंड में चूर होकर भाजपा समर्थकों की उपेक्षा का आरोप लग रहा है। सूत्रों के मुताबिक तमाम कार्यकर्ताओं ने पार्टी हाईकमान को भी अपने असंतोष से अवगत कराया है वहीं हर चौराहे पर चर्चा है कि “भाजपाई अब बदल गए हैं।”
सपा की ओर से डटे रहे बेनी बाबू के सपूत पूर्व मंत्री राकेश वर्मा
भाजपा के जिला सेनापतियों को यह अंदाजा नहीं था कि जिले में कुर्मी लीडरशिप को पर्याप्त महत्व ना देना उनके लिए पराजय का कारण भी बन सकता हैl पार्टी के ही पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं का या कहना है कि एक तरफ जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे पूर्व मंत्री राकेश वर्मा खुलकर सपा प्रत्याशी के लिए घूम घूम कर प्रचार कर रहे थे और कुर्मी समाज को सपा के पक्ष में लामबंद कर रहे थे।
वहीं दूसरी तरफ भाजपा की ओर से कोई भी चर्चित चेहरा कुर्मी समाज को एकजुट करने के लिए नहीं लगाया गया। जबकि जिले में बेनी प्रसाद वर्मा के बाद नंबर दो के कुर्मी नेता संग्राम सिंह वर्मा और उनके भाई सुरेंद्र सिंह वर्मा कई महीनों पहले से भगवा ध्वज लेकर दौड़ रहे हैं लेकिन इस चुनाव में उन्हें खास महत्व नहीं दिया गया।
जैदपुर विधानसभा क्षेत्र संग्राम सिंह वर्मा और सुरेंद्र सिंह वर्मा के प्रभाव वाला क्षेत्र भी माना जाता है, यही उनका गांव घर भी है रिश्तेदार भी हैं उनके लोग भी हैं, इसके बावजूद इस चुनाव में सांसद और जिला अध्यक्ष की गुटबाजी के बीच संग्राम सिंह वर्मा और उनके छोटे भाई सुरेंद्र को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। जानकारों के मुताबिक यही वजह है कि स्थानीय कुर्मी समाज भाजपा के पक्ष में लामबंद नहीं हुआ।
सांसद विधायकों और जिला अध्यक्ष की “आश्वासनों वाली मीठी गोली” से जनता परेशान।
पिछले कुछ महीनों से यह बात चर्चा में थी की भाजपा के सांसद जिला अध्यक्ष और विधायक कुर्मी समाज को सम्मान नहीं दे रहे, इस चर्चा को आगे बढ़ाने में भी विपक्षी दलों ने मेहनत की और बड़ी आसानी से कुर्मी समाज को भाजपा की ओर से सपा की ओर वापस ले जाने में उन्हें सफलता मिली।
पूर्व मंत्री राकेश वर्मा ने इस चुनाव में सपा एमएलसी राजेश यादव राजू के साथ बेहतर जुगलबंदी दिखाइ और दोनों ने पूरी विधानसभा में घूम घूम कर जनता को खासतौर पर कुर्मी समाज को सपा की ओर डायवर्ट करने में काफी हद तक सफलता हासिल कर ली।
भाजपा में होते हुए भी उपेक्षित हुए पूर्व मंत्री संग्राम सिंह वर्मा और सुरेंद्र सिंह वर्मा।
जैदपुर विधानसभा के ही रहने वाले पूर्व मंत्री संग्राम सिंह वर्मा और पूर्व प्रमुख सुरेंद्र सिंह वर्मा फिर भी चुनाव में उनका कायदे से सदुपयोग नहीं किया गया, उन्हें पर्याप्त महत्त्व नहीं दिया गया। यहां कुर्मी समाज की बड़ी संख्या है और सक्रिय सक्रिय कार्यकर्ताओं का पूरा नेटवर्क भी है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी कुर्मी समाज से आते हैं और जैदपुर सीट पर यदि प्रबंधन अच्छा होता तो नतीजे कुछ और होते हैं।
भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने ‘द इंडियन ओपिनियन’ से बातचीत में अपना नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर यह बताया कि भाजपा जिला अध्यक्ष के व्यवहार से कुछ कार्यकर्ता बहुत दुखी है।
जिला अध्यक्ष अवधेश श्रीवास्तव सामने दिखने पर दिखावटी सम्मान भी देते हैं, मीठी बातें भी करते हैं लेकिन थानों और तहसीलों में कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हो रही दूसरों की मदद करना तो दूर भाजपा के पुराने कार्यकर्ता अपने ही घर परिवार के काम नहीं करवा पा रहे, नेता उन्हें केवल मीठी गोली देते हैं। यही हाल सांसद उपेंद्र रावत और जिले के ज्यादातर विधायकों का भी है, जो कि पुराने भाजपा समर्थकों की उपेक्षा कर रहे हैं और दूसरे दलों से आए अवसरवादी चापलूसी करने वाले कार्यकर्ताओं से घिरे हुए हैं ।
कई विधानसभा क्षेत्रों में तो भाजपा की विधायक अपने ही ब्लाक प्रमुखों को भी दबाने में लगे हुए हैं। थानों और तहसीलों में भाजपा के ब्लाक प्रमुखों की ही सुनवाई नहीं होती, क्योंकि विधायक जी का इशारा ऐसा है कि उसी का काम होगा जिसका काम करवाने में उनको “इंटरेस्ट” होगा।
भाजपा की मूल विचारधारा और समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से हो रहा मोहभंग।
जिन लोगों ने कई वर्षों तक मुश्किलें बर्दाश्त करके भाजपा का काम किया गांव देहात मोहल्लों में भाजपा के संगठन को और मतदाताओं को जागृत करने का काम किया उनकी कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही, और यही सब वह कारण रहे जिस वजह से राजनीतिक रूप से सक्रिय समझा जाने वाला कुर्मी समाज जैदपुर के उपचुनाव में भाजपा से दूर हुआ।
कुर्मी समाज के चिंतकों ने इस बार यह निर्णय लिया कि भाजपा के स्थानीय नेताओं को सबक सिखाने के लिए “प्रतीकात्मक चोट” जरूरी है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर भाजपा नेतृत्व के साथ खड़ा रहने वाले कुर्मी समाज ने उपचुनाव में एक सधी हुई रणनीति के तहत बाराबंकी के भाजपाइयों को झटका दिया और यह एहसास दिलाया, “अगर आप जनता के साथ नहीं तो जनता भी आपके साथ नहीं”
फिलहाल कुर्मी समाज की यह राजनीतिक चोट, सत्ता की हनक में अपने पुराने कार्यकर्ताओं को भुला चुके भाजपा के नेताओं पर कितना असर डालेगी यह आने वाला वक्त बताएगा लेकिन जैदपुर के परिणामों पर “जनता के मन की बात ” कह कर कुर्मी समाज ने जरूर यह संदेश दे दिया है कि,
आश्वासन पर आश्वासन वाली मीठी गोली से जनता को भरमाना आसान नहीं होगा और कम से कम राजनीतिक रूप से सक्रिय कुर्मी समाज जरूर बाराबंकी में किसी भी दल को जरूरत के हिसाब से जीत और हार का स्वाद दिलाने के लिए उचित समय पर उचित निर्णय ले सकता है, भाजपा को अपनी विचारधारा और अपने वादों के मुताबिक अपने कार्यकर्ताओं समर्थकों और मतदाताओं का सम्मान करना ही होगा। जनता थानों और तहसीलों में परेशान हो और नेताजी मुस्कुराकर अधिकारियों की चाय पीते रहे ऐसा नहीं चलेगा।
इस पूरे विषय पर द इंडियन ओपिनियन की टीम ने भाजपा का पक्ष लेने के लिए सांसद उपेंद्र रावत से बातचीत की तो सांसद जी ने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और अनदेखी की बातें को नकारते हुए द इंडियन ओपिनियन को बताया की
“जैदपुर हार के कई कारण रहे, एक कारण यह भी रहा कि कुछ अपने लोगों ने असंतुष्ट होकर इस बार साथ नहीं दिया। यानी सांसद जी मानते हैं कि अपने लोग दुखी हैं असंतुष्ट हैं।”
रिपोर्ट – देवव्रत शर्मा