मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का हालचाल पूछने उनके घर पहुंचे। इस मुलाकात के दौरान सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव भी वहां मौजूद थे। इस मौके पर सीएम योगी ने मुलायम को कुंभ की पुस्तिका भेंट की ।
बहाना था शिष्टाचार मुलाकात का, बहाना था पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व रक्षा मंत्री के हाल चाल का लेकिन निशाना था पूरी तरह सियासी।
जो विपक्ष में है उन्हें भी सत्ता का सहयोग चाहिए जो सत्ता में है उन्हें भी विपक्ष का साथ चाहिए। भारत की राजनीति का वह सच जो अक्सर आम जनता और राजनीतिक कार्यकर्ताओं से छिपाया जाता है।
राजनीतिक दलों और विचारधाराओं की प्रतिस्पर्धा में कार्यकर्ता कई बार एक दूसरे के दुश्मन भी हो जाते है । सोशल मीडिया पर तो अलग-अलग दलों के नेताओं और विचारधाराओं के समर्थक नफरत की तलवारें जहरीले शब्दों के साथ चलाते ही रहते हैं, कई बार सड़कों और मैदानों में भी विचारधाराओं के यह संघर्ष हिंसक झगड़ों और अपराधों के रूप में देखने को मिलते हैं। लेकिन बहुत सारे कार्यकर्ता इस बात को नहीं समझते कि जिन नेताओं कि विचारधारा को लेकर वह संघर्षशील हैं ।दूसरे दलों के लोगों से लड़ने झगड़ने को भी तैयार हैं वही नेता अपनी जरूरतों के लिए एक दूसरे से जुड़े रहते हैं मिले रहते हैं पार्टियों के कार्यकर्ता भले आपस में संबंध खराब कर ले समर्थक भले एक दूसरे के दुश्मन हो जाए लेकिन नेता हमेशा एक दूसरे से दोस्ती बनाए रखते हैं एक दूसरे की जरूरतें पूरी करते रहते हैं।
बड़े और ताकतवर लोगों ने अपनी सियासी जरूरतों और निजी जीवन की सुख-सुविधा और आसानीयों को जारी रखने के लिए एक शब्द गढ़ा है जिसे हिंदी में” शिष्टाचार” कहते हैं।
यह “शिष्टाचार” राजनीति में कुछ भी करने की इजाजत देता है।
कल तक सीएम योगी और पूर्व सीएम अखिलेश यादव जमकर एक दूसरे की आंसुओं से आलोचना कर रहे थे कोई किसी को बाबा, चिलम पिछड़ा विरोधी जैसे शब्दों से चिढ़ा रहा था तो कोई बबुआ और भ्रष्टाचारी कहकर अपना गुस्सा उतार रहा था। लेकिन चुनाव खत्म और सियासत का दूसरा खेल शुरू, वह खेल जहां अपनी सुख सुविधाएं वैभव और राजनीतिक जरूरतें पूरी करने के लिए हर वह समझौता किया जाता है जिसे स्वार्थ और अवसर वाद कहा जा सकता है।
लेकिन शिष्टाचार सियासत का वह हथियार है जो असंभव को संभव बनाने के लिए अक्सर इस्तेमाल किया जाता है।
फिलहाल आज जब सीएम योगी मुलायम सिंह से मिलने उनके आवास पहुंचे तो वहां पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और अखिलेश के विरोधी चाचा शिवपाल यादव भी मौजूद थे, सब ने मिलकर साथ में जलपान किया खूब बातें भी हुई और तस्वीरों की गवाही या बता रही है कि माहौल बहुत मीठा था और सभी के दिल आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं , सभी एक दूसरे का बहुत ख्याल रखते हैं और हर जरूरत में एक दूसरे के काम आते हैं।
आगे भी आते रहेंगे, जरूरत के हिसाब से बंद कमरों में काम की बातें भी होती रहेंगी।
.. तो आम जनता और कार्यकर्ताओं को भी हमारी सलाह है कि जहां दिल लगाने की जरूरत हो वहां दिल लगाइए और दिमाग लगाने की जरूरत हो दिमाग लगाइए सियासी जलन में अपना सुख चैन ना गवाएं , अपने और अपने परिवार की तरक्की में अपने देश की तरक्की में अपना समय लगाइए।.
द इंडियन ओपिनियन के लिए देवव्रत शर्मा की रिपोर्ट