वीआईपी सुरक्षा के नाम पर जनता के धन की बर्बादी
हमारे देश का संविधान कहता है कि हर नागरिक को समुचित सुरक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन सरकार सुरक्षा देने में भी अपना राजनीतिक नफा नुकसान देखती है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक देश में लगभग 550 नागरिकों पर एक सुरक्षाकर्मी उपलब्ध है लेकिन लगभग 15000 वीआईपी की सुरक्षा में 50,000 से ज्यादा कमांडोज और सुरक्षाकर्मी तैनात हैं।
वीआईपी सुरक्षा पर हमारे देश में हर साल लगभग ₹500 करोड़ खर्च होता है।
वीआईपी में सत्ता पक्ष और विपक्ष के हजारों नेता व्यापारी फिल्म अभिनेता सेलिब्रिटीज आदि शामिल हैं। सरकार ने बाबा रामदेव और आमिर खान जैसे लोगों को भी जेड श्रेणी की सुरक्षा दे रखी है। चंद्र बाबू नायडू, फारूक अब्दुल्लाह, उमर अब्दुल्ला, शिवपाल यादव, नरेश अग्रवाल, बेनी प्रसाद वर्मा जैसे तमाम सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसद विधायक पूर्व सांसद पूर्व विधायक और पूर्व मंत्रियों को भी भारी सुरक्षा दी गई है।
सुरक्षा देने के लिए बने हैं दिखावटी नियम पहुंच और प्रभाव से मिलती है सुरक्षा
वैसे तो सुरक्षा के लिए तमाम नियम बने हैं खुफिया विभाग पुलिस विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों की कमेटी सुरक्षा की संस्तुति करती है जिसे राज्य स्तर पर चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी की कमेटी अपनी मंजूरी देती है और फिर केंद्रीय गृह मंत्रालय के स्तर पर भी प्रक्रिया है।
लेकिन आमतौर पर राज्य और केंद्र की सरकार में शामिल बड़े नेताओं के इशारों पर उनके चाहे तो खास लोगों को श्रेणी पद सुरक्षा आसानी से उपलब्ध करा दी जाती है और सुरक्षा की मांग करते करते हर साल देश में बहुत से लोगों की बेरहमी से हत्या हो जाती है, लेकिन सरकार पुलिस बल की कमी का बहाना करके उन्हें समुचित सुरक्षा नहीं दे पाती।
सुरक्षा के अभाव में जूझती है मारी जाती है आम जनता
जनता के पैसों से सरकार का खजाना चलता है जनता के पैसों से ही नेताओं और कथित वीआईपी की भारी-भरकम सुरक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च होते है, लेकिन वही जनता स्वयं सुरक्षा के अभाव में अपराधी घटनाओं का शिकार होती है। ताजा मामला लखनऊ में हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या का है, इसके पहले पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यकर्ता उनकी गर्भवती पत्नी और 8 वर्षीय बच्चे की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इसी तरह देश में सभी जाति धर्म के लोग हिंसा और असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। तमाम हत्याएं होती रहती हैं पुलिस दावा करती है कि दोषियों को पकड़ा जाएगा जेल भेजा जाएगा लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हत्याओं पर रोक कैसे लगाई जाए ?
यदि किसी की जान को खतरा है और वह पुलिस से सुरक्षा मांग रहा है तो पुलिस उसे समुचित सुरक्षा क्यों नहीं देती ?
गंभीर खतरे की जानकारी होते हुए भी सरकार ने कमलेश को नहीं दी सुरक्षा
कमलेश तिवारी के मामले में पहले से ही सरकार को यह पता था कि उन्हें सुरक्षा का गंभीर खतरा है कई संगठनों ने उनके विवादित बयानों के चलते उनके खिलाफ हत्या का फतवा जारी किया था उन्हें मारने वाले को 51 लाख रुपए के इनाम का ऐलान किया गया था।
खुफिया एजेंसियों में इस बात के इनपुट भी दिए थे फिर भी सरकार ने उन्हें सुरक्षा नहीं दी।
भाजपा सरकारों पर हिन्दुओं की अनदेखी की उपेक्षा का आरोप
कमलेश तिवारी के समर्थकों और तमाम हिंदूवादी नेताओं का आरोप है कि, हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर देश और प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर लगातार हिन्दुओं की उपेक्षा का आरोप लग रहा है। कमलेश तिवारी की हत्या के बाद अब यह आरोप चरम पर है। उत्तर प्रदेश में भगवाधारी योगी आदित्यनाथ की सरकार है उसके बावजूद कमलेश तिवारी को समुचित सुरक्षा नहीं दी। लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी हो या उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह सभी ने कमलेश तिवारी को लेकर लापरवाही का परिचय दिया और उनकी सरेआम हत्या हो गई।
फिर छिड़ी आम आदमी बनाम वीआईपी सुरक्षा की बहस
इस हत्याकांड ने एक बार फिर से देश में वीआईपी सुरक्षा बनाम वीआईपी की सुरक्षा की बहस छेड़ दी है।
लोग सोशल मीडिया पर यह सवाल कर रहे हैं कमलेश तिवारी को आखिर कई बार मांगने के बावजूद सुरक्षा क्यों नहीं दी गई। लोगों की मांग है कि योगी सरकार सिर्फ हत्यारों की गिरफ्तारी का दावा ना करें इस पूरे मामले में कमलेश तिवारी को सुरक्षा देने में लापरवाही और संवेदनहीनता बरतने वाले सभी पुलिस अधिकारियों की जांच करा कर उन्हें दंडित किया जाए।
रिपोर्ट – देवव्रत शर्मा