

देवव्रत शर्मा-
अपने स्वर्गीय पिता माधवराव सिंधिया के जमाने से कांग्रेस पार्टी के लिए काम कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ऐसे ही कांग्रेस को अलविदा नहीं कह दिया इसके पीछे उपेक्षा और अपमान की लंबी कहानी है।

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान ही वह पटकथा तैयार होने लगी थी जो आज लोगों के सामने आई है। मध्य प्रदेश की सत्ता पर कमलनाथ के बैठने के साथ ही ज्योतिरादित्य असंतुष्ट हो गए थे और उसके बाद उनके खास लोगों को सरकार में उचित मंत्री पद भी नहीं दिए गए जबकि सरकार में 50 विधायक ज्योतिरादित्य के करीबी माने जाते हैं और उनके स्वर्गीय पिता का भी मध्यप्रदेश कांग्रेसमें बड़ा योगदान माना जाता है बावजूद इसके सोनिया राहुल और प्रियंका ने ज्योतिरादित्य को अनदेखा किया।

उत्तर प्रदेश के चुनाव में ज्योतिरादित्य को प्रभारी बनाया गया था लेकिन सारे निर्णय प्रियंका गांधी खुद कर रही थी उन्होंने ज्योतिरादित्य को लगभग हाशिए पर ही रखा था यह सारी बातें ज्योतिरादित्य को दुखी कर रही थी।

सूत्रों के मुताबिक ज्योतिरादित्य ने इस मुद्दे पर कई बार राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से चर्चा की और मध्यप्रदेश में अपने लोगों को महत्व दिए जाने की बात कही लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया।
इतना ही नहीं सूत्रों के हवाले से यह बात भी सामने आई है कि पिछले एक हफ्ते से ज्योतिरादित्य कांग्रेस अध्यक्ष से मिलने की कोशिश कर रहे थे उन्होंने कई बार सोनिया गांधी के कार्यालय में संपर्क करके उनसे मिलने के लिए समय मांगा लेकिन सोनिया गांधी ने ज्योतिरादित्य को मिलने का समय नहीं दिया जबकि उनकी गिनती कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में होती है।

ऐसी स्थिति में ज्योतिरादित्य के पास पार्टी छोड़ने के अलावा कोई भी सही विकल्प उन्हें उचित नहीं दिखाई पड़ रहा था यही वजह है कि अमित शाह से संकेत मिलते ही उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कह दिया और अपने राजनीतिक भविष्य की शुरुआत में जुट गए।