
2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बहुत बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आई, भाजपा नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया और शुरुआती महीनों में योगी आदित्यनाथ ने भी उत्तर प्रदेश के जनता के दिलों में अच्छी छवि बनाने में सफलता हासिल की। एंटी रोमियो स्क्वायड एंटी भू माफिया और पुलिस की सख्त कार्रवाई से लोगों को लगा कि सरकार वाकई में आम जनता के लिए गंभीर है।
लेकिन पिछले कई महीनों से लगातार उत्तर प्रदेश सरकार सवालों के घेरे में है अपराध और कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर सरकार की मुश्किलें बढ़ी हैं तो वहीं भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी सरकार निशाने पर है। हालत यह है कि सरकार से निराश और नाराज होकर बीजेपी के कई विधायक अपना असंतोष जाहिर कर चुके हैं।
पहले जहां सरकार के ऊपर मुसलमानों और ब्राह्मणों के उत्पीड़न और दमन का आरोप लग रहा था वहीं अब बीजेपी सरकार पर दलित विरोधी होने का भी आरोप लगाया जा रहा है विपक्ष सरकार पर हमलावर है और मीडिया के बड़े हिस्से में भी अक्सर योगी सरकार की फजीहत होने वाली खबरें दिखाई पड़ रही हैं।

कहा जा रहा है कि विपक्ष और मीडिया के दबाव में आकर ही सरकार ने यह स्वीकार किया कि कहीं कुछ ना कुछ या तो गलत हो रहा है या फिर हाथ से निकल रहा है इसीलिए सरकार की छवि को बेहतर करने के लिए सूचना विभाग के मुखिया को हटा दिया गया और अवनीश अवस्थी को इस पद से हटाने के बाद नवनीत सहगल को सूचना विभाग का मुखिया बनाया गया l नवनीत सहगल वही अधिकारी हैं जो बसपा और सपा की सरकारों में सूचना विभाग के मुखिया के तौर पर पर काम कर चुके हैं उन्हें हाथरस कांड के गलत प्रबंधन के बाद सूचना का दायित्व सौंपा गयाl हाथरस कांड में जिस तरह से नेताओं और मीडिया को पीड़ित परिवार से मिलने पर रोक लगा दी गई थी उसे एक सवाल खड़ा हुआ कि आखिर सरकार में इस तरह के गलत गलत फैसले कौन करवा रहा है क्या योगी सरकार के पास अच्छे सलाहकार नहीं है जो सरकार को यह बता सकें कि उनके लिए क्या फायदेमंद होगा और क्या नुकसानदेह होगा ?
उत्तर प्रदेश में 2007 में मायावती की सरकार भी बहुमत के साथ आई थी लेकिन वह भी अपनी लोकप्रियता को बनाए रखने में विफल हुई और बुरी तरह चुनाव हार गई जिसके बाद अखिलेश यादव भी बहुमत के साथ सत्ता में आए 2012 से 2017 तक सरकार चलाने के बाद अखिलेश यादव भी जनादेश के मर्म को नहीं समझ पाए उनके सलाहकार भी उन्हें जनता की दिल जीतने वाले सुझाव नहीं दे पाए जिसकी वजह से उन्होंने भी सत्ता गवाई।

अब योगी आदित्यनाथ की सरकार भी 3 साल से अधिक वक्त तय कर चुकी है, समाज के कई वर्गों में सरकार की कार्यशैली को लेकर असंतोष है कई राजनीतिक दलों के लोग सरकार पर जातिवादी होने का आरोप लगाते हैं तो कुछ लोग यह कहते हैं कि योगी सरकार विकास रोजगार और भय मुक्त शासन देने में विफल रही है।
कुल मिलाकर सरकार को यह देखना होगा कि वह अपनी लोकप्रियता और जन स्वीकार्यता को 2022 के चुनाव तक किस स्तर तक रख पाते हैं , क्योंकि 2022 का चुनाव योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक भविष्य को भी तय करेगा। योगी जी को यह ध्यान रखना चाहिए की सपा और बसपा जैसी पार्टियों में दोबारा कुर्सी हासिल कर लेना आसान है लेकिन बीजेपी जैसे बड़े और लोकतांत्रिक दल में दोबारा कुर्सी पर बैठने के लिए बहुत कुछ साबित करना पड़ेगा!
दीपक मिश्रा