बाल गंगाधर तिलक, चंद्रशेखर आजाद की जयंती के अवसर पर मोदी, योगी, नड्डा समेत दिग्गज नेताओं ने श्रद्घा-सुमन अर्पित किए।

आज़ादी के आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले दो स्वतंत्रता सेनानियों की आज जयंती है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आज़ाद को उनकी जन्म जयंती पर देश सलाम कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत अन्य दिग्गजों ने इस मौके पर दोनों को नमन किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर बालगंगाधर तिलक, चंद्रशेखर आजाद को नमन किया। पीएम मोदी ने लिखा कि भारत माता के सपूत चंद्रशेखर आजाद को उनकी जयंती पर नमन। अपने युवा दिनों में उन्होंने देश को आजाद करने के लिए खुद को झकझोर दिया था।


चंद्रशेखर आजाद का शौर्य ऐसा था कि अंग्रेज भी उनके सामने नतमस्तक हो जाते थे। आजाद ने बचपन से ही आजाद भारत के विचार को जिया व चरितार्थ किया और अंतिम सांस तक आजाद रहे। उनके बलिदान ने स्वाधीनता की जो लौ जगाई वो आज हर भारतवासी के ह्रदय में देशभक्ति की अमर ज्वाला बन धधक रही है।
योगी आदित्यनाथ ने अपने ट्वीट में लिखा कि अंग्रेजी हुकूमत से भारत की राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक स्वतंत्रता के प्रबल पक्षधर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जन्म जयंती पर श्रद्धापूर्ण नमन। स्वदेशी उद्यमशीलता से ओत-प्रोत आपके विचार हमें सदैव प्रेरित करते रहेंगे।


वहीं, चंद्रशेखर आज़ाद को याद करते हुए योगी आदित्यनाथ ने लिखा कि असाधारण वीरता व अदम्य साहस के पर्याय, राष्ट्रभक्ति की प्रतिमूर्ति, स्वाधीनता संग्राम के प्रणेता अमर हुतात्मा चंद्रशेखर आजाद को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी इस मौके पर ट्वीट किया। जेपी नड्डा ने लिखा कि देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले, अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन। आपने अपने अदम्य साहस, वीरता और राष्ट्र भक्ति से अंग्रेज़ी हुकूमत की नींव हिला दी। राष्ट्र के प्रति आपका असीम समर्पण आने वाली पीढ़ियों को युगों-युगों तक प्रेरणा देगा।

बता दें कि चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के भावरा में हुआ था। 1921 में ही चंद्रशेखर आज़ाद सुचारू रूप से आज़ादी की लड़ाई में कूद गए थे। आज़ाद बाद में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मेंबर भी बन गए
काकोरी कांड समेत अंग्रेज़ों को मात देने वाली कई अन्य गतिविधियों में चंद्रशेखर आज़ाद की अहम भूमिका थी। 27 फरवरी, 1931 को जब अंग्रेज़ चंद्रशेखर आज़ाद को ढूंढ रहे थे, तब उन्होंने खुद को गोली मार ली थी क्योंकि उनका प्रण था कि अंग्रेज़ कभी उन्हें ज़िंदा नहीं पकड़ पाएंगे।

 रिपोर्ट – आर डी अवस्थी

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