सैनिटाइजर और मास्क की कालाबाजारी पर आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत होगी कार्यवाही, जानिए क्या है प्रावधान!

रिपोर्ट – अराधना शुक्ला

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एडवाइजरी में हैंड सैनिटाइजर और मास्क को इस्तेमाल करने की बात कही गई है।इसी के मद्देनजर जब भारत में भी कोरोना वायरस की आहट सुनाई पड़ी तो लोगों ने झटपट से बचाव उपायों की तरफ रुख किया। लेकिन बाजार में बढ़ती मांग और वस्तुओ की कमी को देखते हुए व्यापारियों ने हैंड सेनीटाइजर और मास्क की कीमतों को कई गुना बढ़ा दिया। जब सरकार तक यह बात पहुंची तो उसने इन दोनों ही वस्तुओं को आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के अंतर्गत जरूरी वस्तुओं की श्रेणी में रख दिया। ऐसा करने के बाद अब इनकी कालाबाजारी पर रोक लगेगी और उपभोक्ताओं को एक समान कीमत पर इनकी उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।

क्या कहता है आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955
अनिवार्य वस्तुओं की आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित करना और बेईमान व्यापारियों से उपभोक्ताओं को शोषण से बचाना इस अधिनियम का उद्देश्य है।
केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों को प्रदत्त शक्तियों के तहत राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को प्रशासन द्वारा आवश्यक घोषित की गई वस्तुओं के उत्पादन, वितरण, मूल्य निर्धारण और व्यापारिक पहलुओं को विनियमित करने की शक्ति भी यह एक्ट प्रदान करता है।
इस कानून को लागू करना राज्य सरकारों और संघ राज्य प्रशासनों की जिम्मेदारी होती है।

राज्य सरकारों को  अधिनियम में शामिल उत्पादों की कीमतें तय करने का अधिकार होता है।
राज्य सरकारी अपने राजपत्र में अधिसूचना जारी कर सकते हैं। इसके अलावा अपने स्वयं के आदेश भी जारी कर सकते हैं।और संबंधित राज्यों में मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार कार्यवाही भी कर सकते हैं।
राज्य इन वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाने को भी कह सकते हैं आपूर्ति बाधित ना हो इसके लिए भी निर्देश दिए जा सकते हैं।
इस अधिनियम में सजा का भी प्रावधान है।
इस अधिनियम का उल्लंघन करने वालों को सात साल के  कारावास की सजा हो सकती है।
दोषी पाए जाने वाले व्यापारियों को जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
इसके अलावा सात साल की जेल और जुर्माना दोनों ही भुगतना पड़ सकता है।
कई बार संशोधन के बाद भी इसमें सुधार की मांग उठती रही है ।

आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 में सरकार ने कहा था कि यह अधिनियम आज के दौर में अप्रासंगिक हो चुका है। क्योंकि इस अधिनियम उस समय बनाया गया था जब देश में अकाल,भुखमरी, सूखे जैसे हालात थे और खाद्यान्नों की कमी थी। आर्थिक समीक्षा के अनुसार आवश्यक वस्तु अधिनियम अप्रत्याशित रूप से स्टॉक सीमाएं तय कर देती है जिससे निजी क्षेत्रों को भंडारण अवसंरचना तैयार करने में दिक्कत होती है। इसके अलावा कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन श्रृंखला तैयार करने में भी परेशानी होती है। इसके अलावा कृषि उत्पादों के राष्ट्रीय बाजार विकसित करने में परेशानी उठानी पड़ती है।

बाजार को स्वतंत्र बनाए रखने के लिए इस अधिनियम को खत्म करने की सिफारिश भी की गई थी। संपदा सृजन बढ़ाने के लिए अधिनियम खत्म करने पर भी विचार किया जा रहा था। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार यह अधिनियम अब सिर्फ परेशानी का सबब बनकर रह गया है क्योंकि कृषि क्षेत्र में बड़े निजी निवेश के लिए सरकार इसमें बड़े बदलाव नहीं कर पा रही है।
अब केवल तीन विशेष परिस्थितियों में ही अधिनियम लागू होगा-
(1).बड़ी प्राकृतिक आपदा।
(2).युद्ध या राष्ट्रीय संकट जैसी आपात स्थिति में।
(3).किसी वस्तु के उत्पादन में 10 से 15% तक की गिरावट होने पर।
क्योंकि कोरोना वायरस एक महामारी बन कर दुनिया के सामने खड़ा है।ऐसे में मास्क और सेनीटाइजर को इस अधिनियम में शामिल करना वक्त की जरूरत है।

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