रिपोर्ट – आराधना शुक्ला,
वैसे तो दो देशों के बीच सैन्य अभ्यास करना सामान्य बात होती है लेकिन इन दिनों भारत-अमेरिका के बीच हुए नौसैनिक युद्धाभ्यास कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। दरअसल भारत और अमेरिका के बीच नौसैनिक युद्धाभ्यास बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार दीप समूह के पास किया गया।
भारत अमेरिका नौसैनिक युद्धाभ्यास- ‘पासेक्स’:
सोमवार को अमेरिका का विमान वाहक युद्धपोत ‘निमित्ज’ बंगाल की खाड़ी पहुंचा जहां भारतीय नौसेना की पूर्वी कमान ने उसका जोरदार स्वागत किया। दरअसल यही वह ‘स्वागत’ है जिसे युद्धाभ्यास कहा जा रहा है।
इस प्रकार के युद्धाभ्यास पूर्व नियोजित और विस्तृत नहीं होते हैं बल्कि युद्ध पोतों के गुजरते वक्त युद्ध की तरकीबों का प्रदर्शन किया जाता है। इस युद्धाभ्यास को ‘पासेक्स’ नाम दिया गया है। भारतीय नौसेना के प्रवक्ता नें पासेक्स के बारे में ट्वीट के माध्यम से बताया कि, निमित्ज़ करियर स्ट्राइक ग्रुप हिंद महासागर क्षेत्र से गुजर रहा है। उसके गुजरने के दौरान भारतीय नौसेना ने अमेरिकी नौसेना के साथ पासेक्स युद्धाभ्यास किया है। भारतीय नौसेना ने हाल ही में जापान के ‘जेएमएसडीएफ’ और फ्रांसीसी नौसेना के साथ भी इसी तरह का अभ्यास किया है।”
इस युद्धाभ्यास के दौरान अमेरिकी रक्षा मंत्री ने चीन का उल्लेख किए बिना ही उस पर निशाना साधते हुए कहा कि “आजाद लोकतांत्रिक देशों की ताकत को कम मत आंको।”
हिंद महासागर का क्षेत्र हमेशा से ही व्यस्ततम व्यापारिक मार्गों में से एक रहा है ऐसे में इस समुद्री जल क्षेत्र में सभी देशों के हित जुड़े हुए हैं। पिछले दिनों दक्षिण चीन सागर में हुई चीनी सैनिकों की दखल से कई पूर्वी एशियाई देशों को अपने ही अधिकार क्षेत्र से पीछे हटना पड़ा था। इंडोनेशिया उनमें से एक था जिसके कुछ जहाजों को चीनी नौसेना ने पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। वहीं वियतनाम भी चीनी हरकत का भुक्तभोगी बना। जब इस तरह की घटनाएं के बाद एक घट रही हो तब हिंद महासागर में भारत और अमेरिका का नौसैनिक युद्धाभ्यास सामान्य नहीं कहा जा सकता।
युद्धाभ्यास के बहानें चीन को सन्देश:
एक तरफ दक्षिण चीन सागर में चीनी हलचल और दूसरी तरफ अपनी सीमा से लगे देशों के साथ सीमा विवाद और सैनिक विवाद जैसी हरकतों से चीन अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा था। गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प को भी इस मुद्दे से अलग नहीं देखा जा रहा है। विवाद के दौरान अमेरिका ने भारत का सहयोग का हाथ आगे बढ़ाया था। हालांकि सामरिक मामलों के जानकारों का कहना है कि भारत भले ही गुट निरपेक्ष रहे पर जरूरत पड़ने पर अमेरिका भारत के साथ खड़ा रहेगा।
सामरिक मामलों के जानकार सुशांत सरीन का कहना है कि, “पहले अगर इस तरह का अभ्यास किया जाता तो भारत में ही इसके विरोध के स्वर गूंजने लगते। मगर चीन नें जो गलवान घाटी में किया उसके बाद इस तरह के अभ्यास का लोगों ने स्वागत किया है।”
उनका यह भी कहना है कि, “इसमें कोई शक नहीं कि भारत और अमेरिका के बीच सामरिक मामलों को लेकर नज़दीकियां बढ़ीं हैं भारत नें अमेरिका के साथ कई सामरिक समझौते भी किए हैं जिसके तहत भारत अमेरिका से सामना करने की तकनीक भी ले रहा है।”
भारत और अमेरिका के बीच हुए रक्षा समझौते:
(1). 2016 में ‘लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम आफ एग्रीमेंट- एलईओएम (लेमो)’, इसके तहत भारत और अमेरिका एक दूसरे के सैनिक अड्डों का इस्तेमाल कर सकते हैं।जब भी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे तो चीन ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज कराई थी।
(2). 2018 में कम्युनिकेशन कंपैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट- कॉमकासा’, इसके तहत भारत अमेरिका से अत्याधुनिक तकनीक प्राप्त कर सकता है।
कोई भी देश अमेरिका से आधुनिक तकनीक वाले हथियार कभी खरीद सकता है जब उसने तीन तरह के समझौते पर हस्ताक्षर किए हों- ‘लेमो’, ‘कॉमकासा’ और ‘बीका’।
भारत में अभी तक यह लेमो और कॉमकासा पर हस्ताक्षर किए हैं।
इसके अलावा इसी साल फरवरी में दोनों देशों के बीच 3 अरब डॉलर का रक्षा समझौता भी किया गया है।
इसमें अमेरिका से 24 एमएच रोमियो हेलीकॉटर की 2.6 डॉलर की खरीद भी शामिल है।
यूएसएस निमित्ज़ अमेरिकी नौसेना का सबसे बड़ा विमान वाहक युद्धपोत:
निमित्ज़ न सिर्फ अमेरिका का बल्कि पूरी दुनिया का सबसे बड़ा युद्धपोत है। इसमें टीकोडेरोंगा- क्लास गाइडेड मिसाइल जहाज, यूएसएस प्रिंसटन और मिसाइलों को ध्वस्त करने वाले युद्धपोत यूएसएस स्टोरेन और यूएसएस रॉल्फ जॉनसन शामिल है। इसे सुपरकरियर के नाम से भी जाना जाता है।
वर्ष 1975 में अमेरिकी नौसेना में इसे कमीशन किया गया था। इस जंगी बेड़े का नाम अमेरिकी नौसेना के तीसरे फ्लीट एडमिरल कमांडर चेस्टर निमित्ज़ के नाम पर रखा गया है जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हिंद महासागर का सामरिक महत्व:
अमेरिकी नौसैनिक अधिकारी अल्फ्रेड फायर मेहैन ने कहा था, “जिसका हिंद महासागर पर नियंत्रण है, उसी का एशिया पर प्रभुत्व है। बीसवीं सदी में यह महासागर सातों समुद्रों का आधारभूत है। विश्व के भविष्य का निर्णय इसके जल तल पर होगा।” इस वक्तव्य से हिंद महासागर के महत्व को समझा जा सकता है। एक तरफ जहां चीन इस क्षेत्र पर कब्जा जमाने की होड़ में लगा है वहीं दूसरी तरफ अमेरिका समय-समय पर यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहा है।
अमरीकी नौसेना की सातवीं कमान द्वारा जारी किए गए बयान में रीयर एडमिरल जिम किर्क के हवाले से कहा गया है कि, “हवाई सुरक्षा के अलावा ट्रेनिंग को भी सुधरने में इस अभ्यास से काफी मदद मिली है।” बयान में यह भी कहा गया है कि अभ्यास से दोनों देशों की सेनाओं की क्षमता बढ़ेगी जिससे समुद्री रास्तों से आने वाले खतरे या फिर पायरेसी (समुद्री डकैती) और आतंकवाद से मिलकर लड़ा जा सकता है। वहीं भारतीय नौसेना नें साफ कर दिया है कि आने वाले समय में बंगाल की खाड़ी में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ भी भारतीय नेवी नौसैनिक युद्धाभ्यास करेगी।