द इंडियन ओपिनियन
बाराबंकी
गरीब युवाओं को सरकारी नौकरियों से वंचित रखने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि परीक्षा इतनी दूर आयोजित की जाए कि वहाँ आना-जाना, रुकने और खाने-पीने की व्यवस्था में ही उनकी हालत खराब हो जाए, और वे हाथ जोड़कर दूर से उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा को प्रणाम कर लें।
साधनविहीन महिलाओं और दिव्यांग अभ्यर्थियों की समस्याओं की आप सहज कल्पना ही कर सकते हैं। पुलिस, पीएसी और लाखों अधिकारियों-कर्मचारियों की फौज होने के बावजूद, परीक्षा की शुचिता बनाए रखने के नाम पर युवाओं और छात्रों का शोषण—उमस भरी गर्मी में लंबी यात्रा के लिए विवश करना, अपरिचित शहर में रुकने के लिए विवश करना, और हजारों रुपये खर्च करने के लिए विवश करना—कुल मिलाकर उनका शोषण और सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता या फिर बेशर्मी ही कहा जा सकता है।
लोक सेवा आयोग द्वारा समीक्षा अधिकारी की परीक्षा से संबंधित एक युवक, जिनका आवास जनपद बाराबंकी में है—उनका प्रवेश पत्र देखिए।
बाराबंकी के युवा को गाज़ियाबाद में परीक्षा देने के लिए विवश किया गया। दूरी लगभग 500 किलोमीटर है, यानी कम से कम 24 घंटे पहले घर से निकलना होगा और परीक्षा देने के लगभग 24 घंटे बाद घर पहुंच पाएंगे। यानी तीन दिन की कठिन यात्रा होगी। कम से कम दो-तीन हजार रुपये आने-जाने, रुकने, खाने में खर्च करने की व्यवस्था करनी होगी। यात्रा की थकान की वजह से शारीरिक और मानसिक स्थिति पर जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, उससे परीक्षा प्रभावित होगी—यह तो अलग बात है।
लोक सेवा आयोग का संचालन करने वाले उत्तर प्रदेश सरकार के “बुद्धिरत्नों” को क्या अपनी युवा अवस्था का भी ध्यान नहीं रहा? क्या इतना भी तर्क नहीं लगा सके? इतनी भी बुद्धि नहीं लगा सके कि छात्रों का परीक्षा केंद्र उनके घरों से 100 या 50 किलोमीटर के अंदर ही रखा जाए, जिससे छात्रों को कम से कम परेशानी हो?
एक ओर बेरोजगारी, अव्यवस्था, गरीबी और महंगी शिक्षा ने हजारों-लाखों छात्रों को वैसे ही निराश कर रखा है, उसके ऊपर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का यह गैरजिम्मेदार व्यवहार निश्चित तौर पर युवाओं और छात्रों के लिए बहुत कष्टदायक है।
कई छात्रों ने अपना कष्ट बताते हुए कहा कि इस महंगाई में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना अपने आप में एक मुश्किल काम है। घर वालों से पैसे मांगकर किसी तरह से व्यवस्था की जाती है, लेकिन यह बात समझ से परे है कि क्यों विद्यार्थियों को 500–600 किलोमीटर दूर जाकर परीक्षा देने के लिए विवश किया जा रहा है।
जब परीक्षा की शुचिता के लिए, नकल रोकने के लिए डीएम, एसपी, पुलिस, पीएसी, सारे थानेदार तैनात हैं, हजारों कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है, तो क्या परीक्षा केंद्र छात्रों को 100–50 किलोमीटर की सीमा के अंदर निर्धारित नहीं किए जा सकते थे, जिससे वे आसानी से कम खर्चे में कम से कम परीक्षा तो दे पाते?
लाखों छात्रों से फार्म भरवाकर करोड़ों रुपये इकट्ठा तो कर लिए गए, लेकिन परीक्षा केंद्र इतना दूर कर दिया गया कि बड़ी संख्या में छात्र परीक्षा ही छोड़ देते हैं। कुल मिलाकर इसे उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग और उत्तर प्रदेश सरकार के कुछ अफसरों की संवेदनहीनता, लापरवाही और मूर्खतापूर्ण आचरण न कहा जाए तो और क्या कहा जाए?
विद्यार्थियों के हित में, प्रतियोगी युवाओं के हित में इस अव्यवस्था में सुधार होना ही चाहिए।