द इंडियन ओपिनियन

उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में जहां दशकों पहले ही विकास प्राधिकरण का गठन हो चुका है और सैकड़ों करोड़ रुपये की विकास योजनाएं उन शहरों को एक सुव्यवस्थित जीवनशैली का वरदान दे रही हैं, वहीं प्रदेश के महत्वपूर्ण जनपदों में शामिल राजधानी लखनऊ के सबसे नजदीकी जनपद बाराबंकी आज भी अपेक्षित विकास से कोसों दूर है।
सन 2006 में, जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे, तभी से बाराबंकी में विकास प्राधिकरण के गठन या फिर उसे लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) में शामिल करने की योजनाओं पर चर्चा होती रही है। गौरतलब है कि लखनऊ विकास प्राधिकरण के पास विकास कार्यों के लिए हजारों करोड़ रुपये का बजट उपलब्ध रहता है, जबकि बाराबंकी के विकास के लिए बहुत ही सीमित बजट की व्यवस्था हो पाती है।

इसी कारण बाराबंकी नगर क्षेत्र और विनियमित क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा आज भी पिछड़ेपन का शिकार है। नगर क्षेत्र में न तो व्यवस्थित ड्रेनेज की व्यवस्था है और न ही सीवर सिस्टम विकसित हो सका है। मामूली बारिश में जलभराव, गंदगी, संकरी गलियां, टूटी सड़कें और अव्यवस्था ये सब बाराबंकी शहर को एक पिछड़े कस्बे का स्वरूप प्रदान करते हैं।
लंबे समय से बाराबंकी के लोग लखनऊ जैसी विकास की रफ्तार और माहौल का सपना देख रहे हैं। चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता जनता को सपने दिखाकर लोकसभा और विधानसभा में पहुंच जाते हैं, लेकिन बाराबंकी को वह विकास का अधिकार नहीं दिला पाए जो चंद किलोमीटर दूर लखनऊ के लोगों को मिला हुआ है। जबकि बाराबंकी की जनता और संसाधन प्रदेश के समग्र विकास में बराबर का योगदान दे रहे हैं।

मुलायम सिंह यादव की सरकार के बाद बसपा शासनकाल में और उसके पश्चात अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए भी बाराबंकी के विनियमित क्षेत्र को एलडीए (LDA) में शामिल करने पर चर्चा हुई, परंतु नेताओं और अफसरों की उदासीनता के चलते यह प्रस्ताव हमेशा ठंडे बस्ते में चला गया।

पिछले वर्ष, तत्कालीन जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार के कार्यकाल में यह मामला एक बार फिर चर्चा में आया था। लखनऊ विकास प्राधिकरण के तत्कालीन उपाध्यक्ष इंद्रमणि त्रिपाठी ने सक्रिय भूमिका निभाई थी और लखनऊ सीमा से लगे बाराबंकी के तीन विकासखंडों को एलडीए में शामिल करने का प्रस्ताव शासन को भेजा था।
उस समय द इंडियन ओपिनियन ने उपाध्यक्ष इंद्रमणि त्रिपाठी का इंटरव्यू भी प्रकाशित किया था, जिसमें बाराबंकी के सुनियोजित विकास पर विस्तार से चर्चा हुई थी। तत्कालीन जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने भी बाराबंकी के नियोजित विकास को लेकर आश्वासन दिया था। लेकिन कुछ प्रभावशाली लोगों के दबाव में बाराबंकी को एलडीए का हिस्सा बनने से रोकने के लिए एक लॉबी सक्रिय हो गई, जो रियल एस्टेट माफियाओं के प्रभाव में काम करती है। यह समूह नहीं चाहता कि लखनऊ की तरह त्वरित और पारदर्शी विकास का वातावरण बाराबंकी में भी बने।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि लखनऊ विकास प्राधिकरण के पास जहां हजारों करोड़ रुपये का बजट उपलब्ध है, वहीं बाराबंकी में विकास कार्यों के लिए धन की भारी कमी है। यही वजह है कि यहां की जनता अनियोजित कॉलोनियों में प्लॉट खरीदकर घर बनाने को विवश है, क्योंकि सरकारी तंत्र ने कभी भी आम नागरिकों के लिए उचित मूल्य पर विकसित कॉलोनी या प्लॉट उपलब्ध कराने में गंभीर रुचि नहीं दिखाई।
आवास विकास परिषद ने यहां बहुत सीमित दायरे में काम किया है, और लगभग 90 प्रतिशत शहरीकरण अनियोजित ढंग से हो रहा है। यदि बाराबंकी के नगर क्षेत्र और विनियमित क्षेत्र को लखनऊ विकास प्राधिकरण में शामिल कर लिया जाए, तो निस्संदेह लखनऊ जैसे तेज रफ्तार विकास का लाभ बाराबंकी को भी प्राप्त होगा।

लखनऊ विकास प्राधिकरण के संयुक्त सचिव एस.पी. सिंह ने द इंडियन ओपिनियन से बातचीत में कहा कि,
“लखनऊ विकास प्राधिकरण के पास विकास की असीम योजनाएं और संभावनाएं हैं। यहां बजट की भी कोई कमी नहीं है। यदि शासन स्तर पर निर्णय लेकर बाराबंकी को एलडीए के अधीन लाया जाता है, तो निश्चित रूप से बहुत कम समय में उल्लेखनीय विकास संभव होगा।”