लेकिन..निर्वाचन आयोग की आपराधिक लापरवाही/तुगलकशाही भी याद रहेगी?भीषण गर्मी में चुनाव कम मतदान,बहुतों ने गंवाई जान!

The Indian opinion
Deepak Kumar

अंतिम चरण के मतदान संपन्न होने के साथ ही देश में 2024 का लोकसभा चुनाव आखिरकार तमाम छोटी बड़ी घटनाओं और जानलेवा गर्मी के बीच एक बड़ी लोकतांत्रिक औपचारिकता को पूर्ण कर गया लेकिन इसके साथ ही कुछ बड़े सवाल हैं जिनके जवाब देने की जिम्मेदारी देश के निर्वाचन आयोग पर बनती है.

भारत के बड़े हिस्से में भीषण गर्मी का कहर है और यह सिलसिला पिछले करीब 3 सप्ताह से बना हुआ है . एक तरफ सरकारी तंत्र लोगों को भीषण गर्मी से बचने के लिए घरों से न निकलने की सलाह दे रहा है दूसरी तरफ मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए मतदान केदो पर पहुंचने की भी सलाह दे रहा है .हीट वेव्स का अलर्ट जारी हो रहा है तो वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए भी तमाम उपक्रम किया जा रहे हैं अब जब लोग वोट डालने के लिए घरों से निकलेंगे तो गर्मी का तो सामना करना ही पड़ेगा और वही मतदान कर्मियों की तो मजबूरी है कितनी भी लू और गर्मी हो उन्हें ड्यूटी तो करनी है सुरक्षा कर्मियों को भारी भरकम बंदूक लेकर धूप में खड़ा ही होना है और यही वजह है कि यह लोकसभा चुनाव दर्जनों सरकारी कर्मियों सुरक्षा कर्मियों और आम लोगों की मौत का कारण भी बन गया .

भारत की जलवायु और भौगोलिक स्थितियों को जानते हुए भी मई जून के भीषण तापमान वाले जानलेवा गर्मी के मौसम में चुनाव कराने की जिद ने बेवजह दर्जनों परिवारों को मातम और बर्बादी के कगार पर खड़ा कर दिया.

मीडिया सूत्रों के मुताबिक भीषण गर्मी में चुनाव होने की वजह से देश प्रदेश में दो दर्जन से अधिक मतदान कर्मियों और और मतदाताओं की कथित तौर पर तेज धूप और गर्मी लगने की वजह से मौत हो गई . तमाम अखबार मतदान कर्मियों की मौत की खबरों से भरे पड़े हैं इन खबरों को पढ़कर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का मन दुखी हो गया और यह सवाल उठने लगा कि आखिर यह तुगलक्की फरमान किस बुद्धिमान मस्तिष्क की उपज थी कि भीषण गर्मी में जब लोग अपने घरों से नहीं निकालना चाहते तब इस जानलेवा मौसम में हजारों मतदान कर्मियों को ड्यूटी करने के लिए बाध्य किया जाए और हजारों लाखों मतदाताओं को घरों से निकलने के लिए बाध्य किया जाए?

निर्वाचन आयोग की इस अदूरदर्शिता और तुगलकी फैसले की वजह से देश में संभवत लाखों मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाए मतदान प्रतिशत और अधिक होता यदि यह चुनाव अप्रैल तक ही संपन्न कर लिए जाते.

जानकारों के मुताबिक तेज गर्मी की वजह से अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्र में 5 से 15% तक वोटिंग में कमी आई है इस हिसाब से देखें तो लाखों मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने से वंचित रह गए क्योंकि तेज गर्मी एक बड़ी बाधा थी और चुनाव की गलत तिथियां इस बड़ी बाधा की असली वजह थी.

निर्वाचन आयोग चाहता तो केंद्र सरकार से तालमेल बनाकर इस चुनाव को अप्रैल माह के समापन के पूर्व ही संपन्न कराया जा सकता था मार्च अप्रैल में यदि चुनाव संपन्न होता तो कम से कम 10% से 15,% वोटिंग और अधिक हो सकती थी और लोकतंत्र भी और अधिक समृद्ध होता दर्जनों परिवारों में मातम ना होता जिनके कमाऊ सदस्य और परिवार के मुखिया देश के निर्वाचन प्रक्रिया में तुगलकी फसलों की भेंट चढ़ गए और बेवजह मारे गए.

भारत जैसे देश में जो की दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है सर्वाधिक मतदाताओं वाला देश है यहां पर चुनाव जैसा बड़ा फैसला लेने के पहले जलवायु की स्थितियां पर्यावरण की स्थितियां भौगोलिक स्थितियों को अनदेखा किया जाना आपराधिक लापरवाही जैसा प्रतीत होता है.

आखिर उन लोगों का उन परिवारों का क्या दोष था जिनके घरों में इस वजह से मातम है कि उनके घर के मुखिया या परिवार के प्रमुख सदस्य निर्वाचन ड्यूटी कर रहे थे और गर्मी लगने से मारे गए कई मतदाताओं के भी गर्मी लगने से मौत की खबरें आ रही है. जिस परिवार ने अपना जवान बेटा या जिन बच्चों ने अपने पिता को खोया होगा वह कभी 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं भूल पाएंगे और साथ ही निर्वाचन आयोग की इस आपराधिक लापरवाही और अविवेकपूर्ण फैसले को भी नहीं भूल पाएंगे.

देश में कई लोकसभा और विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण ड्यूटी कर चुके रिटायर्ड आईपीएस अनिल कुमार सिंह कहते हैं कि “निश्चित तौर पर भारत की जलवायु और मौसम की स्थितियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए था यह चुनाव यदि अप्रैल माह तक संपन्न हो जाता तो काफी अच्छा होता वोट प्रतिशत भी काफी अधिक होता और लोगों को असुविधा का सामना न करना पड़ता”

निर्वाचन आयोग प्रयास करता तो यह चुनाव अप्रैल माह के समापन के पूर्व ही संपन्न हो सकते थे , हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सरदार आलोक सिंह कहते हैं कि “निर्वाचन आयोग पर सरकार का पूरा प्रभाव रहता है इस बार का चुनाव लोग कभी नहीं भूल पाएंगे क्योंकि एक तरफ तो सरकार लोगों को दोपहर में घर से न निकलने के लिए चेतावनी दे रही है सरकार कह रही है की अपने आप को गर्मी से बचाए तेज धूप से बचाए और दूसरी तरफ निर्वाचन आयोग और सरकारी तंत्र यह भी कह रहा है कि घरों से जरूर निकले और वोट करें यानी सरकारी तंत्र खुद ही भ्रम की स्थिति में है और उसकी नीतियों में विरोधाभास है भीषण गर्मी में चुनाव की वजह से एक तरफ तो जहां वोट प्रतिशत कम हुआ लाखों लोग अपनी मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाए, वहीं दूसरी तरफ बड़ी संख्या में निर्वाचन कर्मियों सुरक्षा कर्मियों और मतदाताओं की मौत की खबरें आना बहुत ही चिंताजनक है और को दुखी करने वाली है.यह निसंदेह एक अदूरदर्शिता पूर्ण फैसला था सभी को यह पता है कि मई जून के महीने में अधिकांश भारत में भीषण गर्मी होती है ऐसे में चुनाव को इस तिथियां में जनता पर थोपना उचित नहीं था यह चुनाव अप्रैल तक हो जाता तो लोगों को काफी सुविधा होती मतदान प्रतिशत भी बढ़ता”

.निर्वाचन आयोग के द्वारा आपराधिक लापरवाही किए जाने के विषय पर वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक सिंह का कहना है कि “अदालतों को इस मामले में सक्रियता से देखना चाहिए कि यह मामला आपराधिक लापरवाही का है या फिर अविवेकपूर्ण फैसले का, लेकिन कुल मिलाकर फैसले से लोकतंत्र को भी नुकसान हुआ है जनता को भी और सरकारी कर्मचारियों को भी”

 

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