द इंडियन ओपिनियन
लखनऊ
विपक्ष और मीडिया से जुड़े लोग अक्सर उत्तर प्रदेश की सरकार में कुछ जातियों के लोगों के खिलाफ उत्पीड़न का आरोप लगाते हैं. यादव समाज के साथ-साथ अक्सर ब्राह्मण समाज के बहुत से नेता यह कह चुके हैं कि योगीराज में ब्राह्मणों का उत्पीड़न हो रहा है ब्राह्मण अधिकारियों का उत्पीड़न हो रहा है बहुत से ब्राह्मण अधिकारी लंबे समय से महत्वहीन पदों पर हैं.
इतना ही नहीं ब्राह्मण अधिकारियों को परेशान करने के बहाने ढूंढे जाते हैं और मामूली बातों पर उन्हें बड़ी सजा दी जाती है.
आईपीएस जुगल किशोर तिवारी का मामला भी समय उत्तर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में खूब चर्चित है जुगल किशोर तिवारी ब्राह्मण समाज के चर्चित अधिकारी हैं आईपीएस अधिकारी होने के साथ ही वह लोगों की सहायता करने के लिए भी जाने जाते हैं . छोटे कर्मचारियों के प्रति भी उनका विनम्र व्यवहार रहता है .
ताजा मामला भी ऐसा है बताया जा रहा है कि कमजोर छोटे कर्मचारियों के प्रति मदद की भावना ही उनके लिए महंगी पड़ गई .
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अग्निशमन विभाग के एक वाहन चालक की मदद करने पर आईपीएस जुगल किशोर तिवारी को निलंबित कर दिया है.
मीडिया सूत्रों के मुताबिक उन्नाव में तैनात एक फायरमैन पर आरोप था कि वह बिना अधिकारियों से अनुमति लिए अवकाश पर चले गए थे जांच के बाद उन्नाव के पुलिस अधीक्षक ने उन्हें दो दंड दिए थे पहले दंड लीव विदाउट पेमेंट का था और दूसरा दंड 3 वर्षों के लिए न्यूनतम वेतन पर कार्य करने का था.
इस मामले में डीआईजी फायर सर्विस जुगल किशोर तिवारी के कार्यालय में अपील की थी की गई थी फायरमैन की अपील सुनते हुए डीआईजी जुगल किशोर तिवारी ने यह निर्णय लिया कि एक गलती के लिए दो सजा नहीं दी जा सकती और उन्होंने अपील का निस्तारण करते हुए परेशान फायरमैन के पक्ष में निर्णय दिया .
डीआईजी जुगल किशोर तिवारी को निलंबित करते हुए उन पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने वाहन चालक फायरमैन को अनुचित तरीके से राहत पहुंचाई .
इस मामले में पत्रकारों के पूछने पर आईपीएस जुगल किशोर तिवारी का कहना है कि उन्होंने नियम कानून के अनुरूप काम किया और अपनी बात सही फोरम पर रखेंगे .
जुगल किशोर तिवारी ब्राह्मण समाज के काफी प्रभावशाली अधिकारी माने जाते हैं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ब्राह्मण समाज में काफी लोकप्रिय होने की वजह से सरकार ने लंबे समय से उन्हें महत्वहीन पद पर पदों पर रखा हुआ था और उनके निलंबन के भी ऐसे तमाम राजनीतिक और जातिवादी निहितार्थ नेतार्थ निकल जा रहे हैं.