क्या गलत सलाहकारों से घिरे हैं योगी,हिंदुत्व की हिमायत पर सुप्रीम फजीहत जबकि मौजूद था ठोस कानूनी विकल्प?

दीपक मिश्रा
द इंडियन ओपिनियन लखनऊ

यह बहुत बड़ी खबर है और इस खबर पर ध्यान दीजिए। दुकानों पर दुकान मालिक का नाम लिखने का कानून तो कांग्रेस सरकार ने ही पूरे देश में लागू कर दिया था तो क्या योगी के अधिकारियों ने बेवजह करवा दी भाजपा सरकार की सुप्रीम कोर्ट में फजीहत ?

आखिर क्यों योगी के अधिकारियों ने पुराने कानून को जानते हुए भी जारी करवाया विवादित आदेश जबकि पुराने कानून में पहले से ही सभी दुकानदारों के लिए नाम लिखने का निर्देश है और 10 लाख तक के जुर्माने का भी प्रावधान है?

सन 2006 में केंद्र में कांग्रेस गठबंधन की सरकार के द्वारा खाद्य सुरक्षा अधिनियम बनाया गया था और इस कानून को पूरे देश में लागू कर दिया गया था यह कानून कहता है कि यदि किसी भी प्रकार की खाद्य सामग्री बेचने वाले दुकानदार चाहे छोटा दुकानदार हो या फिर बड़ा उसके पास फूड सेफ्टी रजिस्ट्रेशन नहीं है तो उसके विरुद्ध कठोर कार्रवाई हो सकती है 10 लाख रुपए तक का जुर्माना भी लग सकता है।

इतना ही नहीं इस कानून में प्रावधान है कि हर दुकानदार को फूड सेफ्टी लाइसेंस जिसमें कि उसका नाम भी स्पष्ट अक्षरों में लिखा होगा उसे अपनी दुकान पर विक्रय के स्थान पर प्रमुख जगह पर लगाना होगा जिससे सभी ग्राहक आसानी से फूड सेफ्टी रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस मे दुकानदार का नाम पहचान देख सकें।

साल में 12 लाख से अधिक का टर्नओवर करने वाले व्यापारियों के लिए लाइसेंस अनिवार्य है जबकि रजिस्ट्रेशन हर छोटे-बड़े व्यापारी के लिए अनिवार्य है। ठेला खोमचा फेरी लगाने वालों के लिए भी फूड सेफ्टी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है रजिस्ट्रेशन के साथ नेम प्लेट डिस्प्ले करना भी अनिवार्य है। फल सब्जी बेचने वालों के लिए चाट फुल्की अंडे आदि बेचने वालों के लिए नॉनवेज वेज कुछ भी बेचने वालों के लिए फूड सेफ्टी कानून अनिवार्य है और इसी के तहत नेम प्लेट में रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट का पूरा विवरण अपनी दुकानों पर या ठेले पर इस प्रकार से लगाने का निर्देश है कि सभी ग्राहक उसे आसानी से देख सके पढ़ सके और समझ सके और ऐसा न करने वाले दुकानदार को व्यापार करने से प्रतिबंधित कर दिया जाता है उनका चालान किया जा सकता है और भारी जुर्माना लगाया जा सकता है इस कार्य में पुलिस का सहयोग भी लिया जा सकता है ।

परंतु इस मजबूत कानून होते हुए भी योगी सरकार के सलाहकारों ने खाद्य सुरक्षा विभाग को पीछे करते हुए कांवड़ियों के मार्ग पर सीधे पुलिस को यह कार्य करने के लिए आदेश जारी कर दिया जिसकी वजह से मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के भाजपा सरकारों की जमकर फजीहत हुई । इतना ही नहीं इससे संपूर्ण भारतीय जनता पार्टी और देश में हिंदुत्व की राजनीति को भी झटका लगा। जबकि खाद्य सुरक्षा विभाग को पहले से ही यह अधिकार कांग्रेस शासन में लागू कानून के तहत पूरे देश में मिला हुआ है कि वह किसी भी ऐसे छोटे-बड़े दुकानदार के खिलाफ कठोर कार्रवाई कर सकती है जो खाने पीने की चीजों में मिलावट करें शुद्धता से खिलवाड़ करें या फिर अपने सही नाम का प्रदर्शन ना करें।

खाद्य सुरक्षा कानून के जरिए सरकार और प्रशासन सभी दुकानदारों को दुकानों के मालिकों को उनका नाम प्रदर्शित करने के लिए निर्देशित कर सकते हैं क्योंकि कानून ऐसा जरूरी है।

तो क्या उत्तर प्रदेश की सरकार चलाने वाले बड़े अधिकारियों को अपने देश में लागू कानून की जानकारी नहीं है ? क्या उत्तर प्रदेश सरकार के सलाहकारों ने सीनियर आईएएस अफसरो की लॉबी ने मनोज कुमार सिंह और एसपी गोयल जैसे अनुभवी अधिकारियों ने विधिक सलाहकारों ने मुख्यमंत्री को सही सुझाव नहीं दिया या फिर एक बड़ा सियासी प्रोपेगेंडा खड़ा करने के लिए खाद्य सुरक्षा अधिनियम के होते हुए भी बेवजह कमजोर और विवादित आदेश जारी किया गया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया ?

पवित्र श्रावण माह में कांवरियों के मार्ग पर खाद्य पदार्थ बेचने वालों के लिए अपना नाम दर्शाने के आदेश पर तो सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है लेकिन इस मुद्दे पर पूरे देश में जो चर्चा छिड़ी है उसे वह रुकने का नाम नहीं ले रही बहुत से लोग यह सवाल कर रहे हैं कि क्या ग्राहकों को उन दुकानदारों के बारे में जानने का अधिकार नहीं जिनको अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे देकर वहां से खाने पीने की चीज या कोई भी चीज खरीदते हैं?

कई बड़े वकीलों का मानना है कि सवाल सिर्फ खाने पीने की चीजों का नहीं है यह किसी भी ग्राहक का नैसर्गिक अधिकार है कि वह यह जान सके कि वह किस विक्रेता से या किसी उत्पादक से उसकी बनाई हुई कौन सी वस्तु खरीद रहा है और उसे वस्तु में क्या तत्व है क्या क्वालिटी है उपभोक्ता संरक्षण कानून भी इस सिद्धांत का समर्थन करता है।

खाद्य सुरक्षा विभाग के बड़े अधिकारी दबी जुबान में यह कहते हैं कि पहले से मौजूद कानून को अनदेखा करके योगी सरकार की ओर से वह अधिकार पुलिस को देने का प्रयास किया गया जो खाद्य सुरक्षा विभाग का था । जबकि खाद्य सुरक्षा विभाग चाहे तो पहले ही मौजूद कानूनी अधिकारों के दम पर पूरे देश में इस मुद्दे पर प्रभावी कार्रवाई कर सकता है । इसी बात पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई तो क्या यह माना जाए कि सरकार राजनीतिक फायदे के लिए इस मुद्दे को उठा रही थी?

द इंडियन ओपिनियन के लिए दीपक मिश्रा की रिपोर्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *