संस्कार संस्कृति और साहित्य हमारे बौद्धिक पूर्वज,अनदेखा करने से असुरक्षा और दुख तय है!

दीपक कुमार

द इंडियन ओपिनियन

प्रयाग जिसे आप इलाहाबाद कहते हैं वह अभी तक पूरे भारत में संस्कार संस्कृति और साहित्य को अपना पूर्वज स्वीकार करने वाले क्षेत्र के रूप में अपनी पहचान रखता है.

प्रयागराज प्राचीन काल से ऐसा जनपद रहा है जिसने वैश्विक संस्कृति को प्रारंभिक प्रशिक्षण से गुजर रही मानव सभ्यता को सह अस्तित्व और लोक संगम का संदेश दिया . सैकड़ो वर्षों से इलाहाबाद यानी प्रयागराज में आदिकालीन धर्म संस्कृति इतिहास अर्थशास्त्र विज्ञान समेत संविधान और कानून के संबंध में देश भर के विख्यात लेखक संपादक और प्रकाशकों का क्षेत्र रहा है . यह क्षेत्र लाखों पुस्तकों को जन्म देने वाला क्षेत्र रहा है और किताबों के कदरदान यहां हमेशा बड़ी संख्या में रहे लेकिन अब समाज इस कदर गुमराह होता जा रहा है की अपनी ही संस्कृत अस्तित्व अपने ही किरदार को समझ नहीं पा रहा.

इंटरनेट के आक्रमण से अचंभित भ्रमित वर्तमान पीढ़ी पुस्तकों से दूरी बनाकर अपने वर्तमान और भविष्य को अनिश्चय और अवसाद की ओर धकेल रही .

 


लगभग डेढ़ दशक पहले जब मैं बाराबंकी में ईटीवी संवाददाता के रूप में कार्यरत था तब बसपा शासन काल के कसे हुए दौर में केडी राम बाराबंकी के मुख्य विकास अधिकारी के रूप में मेरे मित्र बने. उन्होंने जीवन को सामाजिक उत्थान के मूल्यों के साथ अनुशासन और संस्कार के मजबूत धरातल पर खड़ा करने का काम किया .वह वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के नेता के रूप में कमजोर और पिछड़े वर्गों के लिए काम कर रहे हैं और सर्व समाज में समरसता के महत्व को समझाने में जुटे हैं.

किताबों के शौकीन के डी राम लंबे समय तक के प्रशासनिक कार्यकाल के जीवन में बहुत कुछ लेखन करते रहे और वर्तमान में भी अपने लेखन के माध्यम से मार्गदर्शन देते हैं लेकिन समाज में पुस्तकों की दुर्दशा ने उन्हें बुरी बुरी तरह झकझोर दिया .

उन्होंने सोशल मीडिया पर प्रभावशाली तरीके से अपनी तकलीफ को जाहिर किया.. उनका पोस्ट देखकर व्यक्तिगत तकलीफ भी हुई और जनता के असंतुलित मनोवृति के प्रति चिंता भी हुई.


जिस प्रकार आपके रक्त संबंधी पूर्वज हैं इस प्रकार संस्कार संस्कृति और साहित्य हमारे आपके बौद्धिक आत्मिक पूर्वज हैं . जीव शरीर के रूप में हमारा पालन पोषण सुरक्षा आदि व्यवस्था प्रत्यक्ष रूप से माता-पिता और कुटुंब के द्वारा किया जाता है परंतु आध्यात्मिक बौद्धिक व सामाजिक मार्गदर्शन तो संस्कार संस्कृति और साहित्य से ही प्राप्त होता रहा है उन्हें भी जो हमारे पूर्वज थे और उन्हें भी जो हमारे अग्रज हैं.

बशर्ते बदलाव कई बार अतिक्रमण तो कई बार दिशा भ्रम कि आत्मघाती स्थिति को दिखाता है. अब वह किताबें भी विश्वासघात और अपेक्षा का दंश झेल रही है जिन्होंने सभ्यता के प्रारंभ होने के क्रम में लंबे समय तक मानव समाज को ज्ञान और अनुभव का संरक्षण दिया और मार्गदर्शन भी किया…

केडी राम जी के लिए यह कहना उचित है कि आपकी चिंता करोड़ों लोगों की चिंता होनी चाहिए.. सभी भारतीयों को विश्व के सभी जिम्मेदार लोगों को इस दिशा में विचार करना चाहिए की नई पीढ़ी को और गुजरती हुई पीढ़ी को भी पुस्तकों का महत्व उनकी उपयोगिता का आभास हो…

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