देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के दो सबसे बड़े अफसर आपस में उलझ गए। अक्टूबर 2017 से लेकर जनवरी 2019 तक,करीब सवा दो साल CBI दो आईपीएस अधिकारियों की खींचतान में पिसकर रह गई।विवाद के केंद्र में एक नाम था IPS आलोक वर्मा का।सीबीआई में घमासान तब शुरू हुआ जब आलोक वर्मा के निदेशक रहते राकेश अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर बनाया गया। दोनों ने भ्रष्टाचार के एक मामले की जांच में एक दूसरे पर घूसघोरी और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे।वर्मा और अस्थाना की लड़ाई में CBI की साख गिरती चली गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने वर्मा को पद से हटाने का फैसला किया।आलोक वर्मा सीबीआई के पहले ऐसे निदेशक रहे जिन्हें दो साल का निर्धारित कार्यकाल पूरा करने से पहले पद से हटाया गया। सीबीआई में जाने से पहले आलोक वर्मा दिल्ली पुलिस कमिश्नर रह चुके थें।19 जनवरी, 2017 को सरकार ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक नियुक्त किया। उनका नाम एक तीन सदस्यीय सिलेक्शन पैनल ने क्लियर किया था।
पांच सदस्यीय केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के सामने वर्मा ने अस्थाना के प्रमोशन का विरोध किया था। नवंबर 2017 में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कॉमन कॉज नाम के NGO की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती दी। SC ने याचिका खारिज कर दी। राकेश अस्थाना ने शिकायत की कि वर्मा उनके काम में दखल दे रहे हैं, अपुष्ट तथ्यों के आधार पर उनकी बदनामी करा रहे हैं।
इसके बाद CVC ने जांच शुरू की। अस्थाना ने यह भी आरोप लगाया कि वर्मा ने 2017 में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ पटना मेंउस वक्त छापेमारी न करने को कहा जब टीमें धावा बोलने को एकदम तैयार थीं।
ब्यूरो रिपोर्ट ‘द इंडियन ओपिनियन’