

देवव्रत शर्मा-
देश के कई बड़े राज्यों में चुनाव हारने के बाद जिस तरह से दिल्ली में भी भारतीय जनता पार्टी को पराजय मिली है उसके बाद देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में भाजपा को अपना किला बचाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ेगा।
2022 में उत्तर प्रदेश के लिए विधानसभा का चुनाव होना है और अभी भी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर सरकारी अस्पताल और सरकारी इंटर कॉलेज डिग्री कॉलेज “अच्छी हालत” में नहीं है। अस्पतालों में बड़ी संख्या में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है उच्च गुणवत्ता की दवाएं उपलब्ध नहीं है बावजूद इसके मरीजों की भीड़ से अस्पताल कराह रहे हैं।
वहीं सरकारी स्कूलों की भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है बहुत से इंटर कॉलेज और डिग्री कॉलेजों में अध्यापकों की कमी है सभी विषयों की नियमित कक्षाएं नहीं चल पा रही है जो राजकीय इंटर कॉलेज एक जमाने में बहुत प्रतिष्ठित माने जाते थे अब वहां एडमिशन लेने में भी बच्चों की रुचि नहीं रह गई क्योंकि वहां का शैक्षणिक माहौल खराब हो चुका है। यही हाल ज्यादातर सरकारी और अनुदानित इंटर कॉलेज और डिग्री कॉलेजों का है।
सरकार ने नकल पर तो सख्ती करी है लेकिन शैक्षणिक माहौल बेहतर बनाने में सफलता अभी नहीं मिल पाई है।
बेरोजगारी के मुद्दे पर भी उत्तर प्रदेश में बहुत काम करने को बाकी है। पिछले तीन दशकों में उत्तर प्रदेश के लगभग हर जिले में तमाम उद्योग बंद हुए हैं अव्यवस्था भ्रष्टाचार के चलते सहकारी चीनी मिलों और सहकारी कताई मिलों की भी स्थिति खराब हुई है इसके समेत प्रदेश के लगभग हर जिले में तमाम बंद पड़ी फैक्ट्रियां बेरोजगारी और आर्थिक मंदी की कहानी कह रही हैं।
जरूरत इस बात की है कि सरकार विशेषज्ञों से अध्ययन करवा कर पूरे प्रदेश में बंद हुई सरकारी और निजी फैक्ट्रियों को आधुनिक और लाभदाई तकनीक के साथ संचालित करवाने का रास्ता निकाले जिससे प्रदेश में आर्थिक गतिविधियां बढ़ सकें और हजारों बेरोजगारों को रोजगार मिल सके।

स्वास्थ्य शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर यदि उत्तर प्रदेश सरकार अपने बचे हुए कार्यकाल में ठोस काम नहीं कर पाई तो 2022 में विपक्ष की संगठित चुनौती का मुकाबला करना उसके लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि लगातार कई राज्यों के बाद दिल्ली का चुनाव हार कर जहां भाजपा के कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है वही विपक्ष का मनोबल कई गुना अधिक बढ़ चुका है।
यह लेखक के अपने विचार हैं।