

रिपोर्ट – आराधना शुक्ला
आपसी गुटबाजी और ठोस नेतृत्व के अभाव से जूझती कांग्रेस पार्टी ने बड़ी आसानी से मध्य प्रदेश का किला गवा दियाl ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया को असंतुष्ट करने की कीमत सोनिया गांधी को चुकानी पड़ी है और भाजपा ने महाराज को गले लगा कर मध्यप्रदेश में फिर से भगवा राज की वापसी की गाथा लिख डाली।
लेकिन अब मध्य प्रदेश का “भगवा राज” पुराने “शिव राज” से अलग होगा पुराने शिवराज में शिवराज सिंह चौहान और पुराने भाजपाइयों का वर्चस्व था नए भगवा राज में ग्वालियर के महाराज का भी पूरा दखल रहेगा l बीजेपी का एक हिस्सा इस बार मध्यप्रदेश के दुर्ग पर शिवराज सिंह चौहान की जहां किसी दूसरे सर्वमान्य चेहरे को देखना चाहता है हो सकता है कोई ऐसा मजबूत चेहरा एमपी की गद्दी पर सवार हो जिसे भाजपा नेतृत्व के साथ साथ ग्वालियर के महाराजा सिंधिया का भी समर्थन हो , लेकिन अभी पत्ते खुले नहीं है।

जैसा कि पहले से ही तय माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी कुर्सी नहीं बचा पाएँगें। सियासी सरगर्मी जोरों पर थी और कमलनाथ सरकार पर संकट मंडरा रहे थे। इसी कड़ी में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और बीजेपी में शामिल होने के बाद यह तय हो गया था कि अब कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ेगी।क्योंकि ज्योतिरादित्य अकेले नहीं गए थे उनके साथ 22 विधायको ने पार्टी छोड़ी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार शाम तक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने के आदेश दिए थे लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ विधानसभा की बजाय राजभवन पहुंचे और गवर्नर लालजी टंडन को अपना इस्तीफा सौंपा कमलनाथ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बीजेपी को उनकी सरकार गिराने के लिए षडयंत्र रचने का आरोप लगाया और कहा की मध्य प्रदेश की जनता उन्हें माफ नहीं करेगी।

कमलनाथ सरकार को कोर्ट ने आज शाम 5:00 बजे तक बहुमत परीक्षण कराने के निर्देश दिए थे इससे पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर बागी विधायक फ्लोर टेस्ट के लिए विधानसभा आना चाहते हैं तो कर्नाटक और मध्य प्रदेश के डीजीपी उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कराएं साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पूरी कार्यवाही की वीडियो रिकार्डिंग कराने को भी कहा था।
मध्यप्रदेश में कमलनाथ के इस्तीफे के बाद भाजपा अपनी सरकार बनाने का दावा पेश करेगी।लेकिन अगला मुख्यमंत्री कौन होगा यह कहना मुश्किल है। वैसे तो शिवराज सिंह चौहान इस दौड़ में सबसे आगे हैं पर अंतिम फैसला भाजपा विधायक दल की बैठक में होगा।
आगे की राह-:
*फिलहाल भाजपा के 106 विधायक हैं और उन्हें बहुमत साबित करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
विधानसभा में 230 विधायक संख्या है जिसमें से 25 सीटें खाली हैं। 2 सीटें विधायकों के निधन के कारण और 23 सीटें इस्तीफे के कारण खाली हैं।
206 विधायकों के सदन में बहुमत के लिए 104 विधायकों के समर्थन की जरूरत है। भाजपा के पास 106 विधायक हैं। कांग्रेस के 92 और सपा,बसपा व निर्दलीय विधायकों के समर्थन से आंकड़ा तक ही पहुंचता है।
अगर चार निर्दलीय भाजपा के साथ नहीं आए तो भाजपा को 25 में से कम से कम 10 सीटें जीतनी होंगी।
अगर निर्दलीय कांग्रेस के साथ बने रहे तो कांग्रेस को 25 में से 17 सीटें जीतनी होंगी और अगर इन विधायकों ने साथ छोड़ा तो 21 सीटें जीतनी होंगी। इसके अलावा अगर सपा बसपा ने भी साथ नहीं दिया तो 25 में से 24 सीटें जीतनी होंगी बहुमत के लिए।