वन चौकी से 200 मीटर की दूरी पर काट डाले दर्ज़नों पेड़, अधिकारी अनभिज्ञ या मौन सहमति?

भारत-नेपाल सीमा पर स्थित सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के खूबसूरत जंगलों में बेशकीमती पेड़ों पर वनमाफियाओं का आरा लगातार चल रहा है। जिसे रोक पाने में जिला प्रशासन और वन विभाग की टीम लगातार नाकाम होती नजर आ रही है। हद तो तब हो जाती है जब सोहेलवा वन जीव प्रभाग के पूर्वी रेंज के अंतर्गत बनकटवा सर्किल के पिपरा वन चौकी से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर ही वन माफिया हरे भरे पेड़ों को काट ले जाते हैं और वन विभाग के कर्मियों को पता नहीं चलता। इस मामले पर डीएफओ प्रखर गुप्ता ने कहा है कि वह जांच करवा कर दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे। लेकिन कब तक, इसका कोई पता नहीं है।

चौकी से 200 मीटर दूरी ओर कट गए पेड़ :-

मामला बलरामपुर जिले के हर्रैया सतघरवा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले पिपरा वन चौकी से जुड़ा हुआ है। जहां रात के अंधेरे का फायदा उठाते हुए वन चौकी से महज 200 मीटर की दूरी पर वनमाफियाओं द्वारा बेशकीमती जंगली शीशम व सागौन के दो दर्जन से अधिक हरे पेड़ों को काट लिया गया। कुछ पेड़ तो मौके पर ही पड़े रह गए जबकि अन्य को वनमाफिया उठा ले गए।

सबकी सहमति से होता है कटान :-

ग्रामीणों ने कैमरे पर ना बोलने की शर्त पर बताया कि यहां पर कटान आम बात है। हर रोज़ सोहेलवा से दर्ज़नों की संख्या में हरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जाती है। जिसमें ना केवल पुलिस विभाग के लोगों बल्कि वन विभाग के लोगों की भी मौन सहमति होती है। उनकी सहमति के बिना यहां से कोई एक पत्ता भी नहीं ले जा सकता। जब मीडिया में इस तरह की खबरें चलती है तो वन विभाग के अधिकारी साइकिल वालों को पकड़कर बड़ी कार्रवाई दिखा देते हैं जो महज खानापूर्ति होती है।

गांवों में लगातार बढ़ रहे हैं हमले :-

बताया जाता है कि सुहेलदेव वन्य जीव अभ्यारण्य का रकबा लगातार घट रहा है। जिससे आम बस्तियों में जंगली जानवरों का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। लगातार हो रहे जंगल कटान के कारण वन्य क्षेत्र से सटे गांवों में तेंदुआ, जंगली सुअर व अन्य खूंखार जानवर गांवों की तरफ भोजन की तलाश में आ रहे हैं।

संकुचित होता जा रहा है जंगल :-

हम आपको बताते चलें कि नेपाल से सटा सोहेलदेव वन्य जीव अभ्यारण्य 452 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में श्रावस्ती और बलरामपुर जिले की सीमा में फैला हुआ है। आजादी के पहले अंग्रेज यहां वन्यजीवों का शिकार करने आया करते थे। 1991 में इसे भारत सरकार और उत्तर प्रदेश द्वारा रिजर्व फारेस्ट घोषित कर दिया गया। लेकिन उसी के साथ जंगल का दोहन भी शुरु हो गया। जो आज तक जारी है। संगठित वनमाफिया न सिर्फ वन्यजीवों का शिकार कर उनकी तस्करी करते हैं। बल्कि बेशकीमती लकड़ियों का अवैध कटान भी करते है, जिससे जंगल संकुचित होता जा रहा है।

क्या बोले जिम्मेदार :-

वन विभाग की चौकी से महज 200 मीटर की दूरी पर हुए कटान से यहां तैनात वन्यकर्मियों पर भी वनमाफ़ियाओं से मिली भगत करने का भी आरोप लगने लगा है। हालांकि पूरे मामले पर डीएफओ प्रखर गुप्ता ने बताया कि मामला संज्ञान में आया है। जांच करा कर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि हम लगातार वन्यजीवों के संरक्षण और जंगल के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। हमने 1 साल के भीतर कई सौ वाहनों पर कार्रवाई की है और कई वन माफियाओं के खिलाफ मुकदमा लिखवाकर, उन्हें जेल भेजा गया है।

रिपोर्ट – योगेंद्र विश्वनाथ

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