द इंडियन ओपिनियन
बाराबंकी
“परमेश्वर एक है, ईश्वर और अल्लाह में कोई भेद नहीं। जो रब है, वही राम है। यही विचार सत्य है, और इसी में दुनिया को आराम है।”
हाजी वारिस अली शाह एक ऐसे सूफी संत थे जिन्होंने मुस्लिम समाज को भगवान कृष्ण और भगवान राम की महिमा का ज्ञान दिया। उन्होंने हिंदुओं के धर्म परिवर्तन का विरोध किया और उन्हें ब्रह्म में विश्वास करने का मार्गदर्शन दिया। उन्होंने सभी को आत्मिक शुद्धता के साथ बड़ों का सम्मान करने का आदेश दिया। ऐसे महान संत की दरगाह पर उनके पिता सैयद कुर्बान अली शाह की याद में उनके द्वारा सदियों से आयोजित किए जा रहे देवा मेले को ब्रिटिश काल में जिला प्रशासन द्वारा अंगीकृत कर लिया गया था।
उस समय ब्रिटिश कलेक्टर की धर्मपत्नी मेले का शुभारंभ करती थीं और ब्रिटिश पुलिस कप्तान की धर्मपत्नी मेले का समापन करती थीं। यह ऐतिहासिक परंपरा जो नारी शक्ति के स्वाभिमान को नमन करती है, स्वतंत्र भारत में भी निरंतर सशक्त की जा रही है। इसी क्रम में बाराबंकी के देवा मेला का भव्य उद्घाटन जिला अधिकारी सत्येंद्र कुमार की धर्मपत्नी, डॉक्टर सुप्रिया, के कर कमलों से संपन्न हुआ।
मानवता और सह-अस्तित्व के महत्व को मुसलमान और हिंदुओं को समझाने में हाजी वारिस अली शाह ने अपनी पूरी उम्र गुजार दी। उनका संपूर्ण दर्शन इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित था। “सबका साथ, सबका विकास, और सबका विश्वास” जैसे विचारों को उन्होंने सियासत से पहले धरातल पर उतारने का प्रयास किया, जिससे हिंदू और मुसलमान के बीच मतभेदों को दूर किया जा सके।
उन्होंने व्यापक दृष्टिकोण के साथ हर साल 10 दिनों के लिए देवा क्षेत्र में इस मेले की आयोजन की परंपरा शुरू की, जिससे क्षेत्र के हजारों लोगों को न केवल धार्मिक आस्था, मनोरंजन और मेल-मिलाप का अवसर मिल सके, बल्कि क्षेत्रीय और अन्य इलाकों के हजारों दुकानदारों और छोटे व्यापारियों को भी आर्थिक उन्नति का अवसर प्राप्त हो सके।
प्रारंभिक काल से आज के आधुनिक युग तक देवा मेले का स्वरूप भी अत्यधिक आधुनिक और सुविधा-संपन्न हो गया है। पहले देवा मेले के अध्यक्ष जिला अधिकारी और सचिव उप जिला अधिकारी सदर होते थे, लेकिन लगभग एक दशक पहले उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप पर अपर जिला अधिकारी को सचिव का दायित्व दे दिया गया।
बाराबंकी के एडीएम अरुण कुमार सिंह बताते हैं कि इस बार देवा मेला को लेकर न सिर्फ लोगों में काफी उत्साह है, बल्कि व्यापारियों को भी अच्छे व्यापार की उम्मीद है। इसके साथ ही प्रशासन ने भी इंतजामों को और अधिक सुविधाजनक बनाने का प्रयास किया है। पहली बार देवा मेले में जर्मन हैंगर लगाए गए हैं, प्रकाश व्यवस्था, साफ-सफाई, और भीड़ प्रबंधन की योजना विशेषज्ञों की देखरेख में लागू की गई है। इस बार जो आतिशबाजी की जाएगी, वह इको-फ्रेंडली होगी जिससे प्रदूषण न हो। मंच पर स्थानीय कलाकारों के साथ ही राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों को भी आमंत्रित किया गया है।
अध्यक्ष के रूप में जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार स्वयं देवा मेले की सभी व्यवस्थाओं की निगरानी कर रहे हैं और सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस अधीक्षक दिनेश कुमार सिंह के नेतृत्व में हजारों पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाई गई है।
कुल मिलाकर अब गर्मी कम हो चुकी है, यानी मौसम भी अनुकूल है, और यह मेला सैकड़ों वर्ष पुरानी सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ा हुआ है। इसलिए आप सभी अपने परिवार समेत देवा मेला का आनंद लेने के लिए तैयार हो जाइए। जरूरत की चीजों की खरीदारी करें, बच्चों को खुशनुमा मौसम में झूलों का मजा लेने का मौका दें और सांस्कृतिक मंच पर अपने देश के कलाकारों की प्रतिभा की सराहना भी करें।