द इंडियन ओपिनियन
दीपक मिश्रा
लखनऊ
बड़ी जनसंख्या वाले भारत में, विशेषकर घनी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरी मिलना बड़ी बात है, और IAS, IPS, PCS, और PPS बन जाना उससे भी बड़ी बात है।
एक तरफ लोग इसे राष्ट्र सेवा और लोक सेवा का सबसे बड़ा अवसर मानते हैं, वहीं दूसरी तरफ इसे कठिन परिश्रम से हासिल किया गया “राजयोग” भी मानते हैं। इन संवर्गों के अधिकारी जिन पदों पर काम करते हैं, उन पदों पर जनता की सेवा, देश को आगे बढ़ाने के साथ-साथ प्रशासनिक और आर्थिक शक्तियाँ होती हैं। इसके साथ-साथ मान-सम्मान, वैभव, और राजा-महाराजा जैसी सुख-सुविधाएं भी मिलती हैं।
PCS और PPS के अधिकारी दशकों तक IAS/IPS बनने का इंतजार करते हैं, और उनकी आँखों और दिलों में यह सपना होता है कि जब उन्हें IAS/IPS अवार्ड होगा, तो उन्हें भी जिले का कलेक्टर या कप्तान बनने का मौका मिलेगा। ऐसे अधिकारियों के परिवार के लोग, उनके बच्चे भी यह सपना देखते हैं कि कब उनके रिश्तेदार या पिताजी किसी जिले के DM या कप्तान बनेंगे। लेकिन कई बार, तीन दशकों की सेवा के बाद भी, ऐसे अधिकारी निराश होकर रिटायर हो जाते हैं, और पूरी व्यवस्था को लेकर उनके दिलों में प्रश्न चिह्न रह जाता है।
जब उनसे कोई पूछता है कि आप किसी जिले के DM या कप्तान क्यों नहीं बने, तो उनका मन अन्याय से उपजी पीड़ा और कुंठा से भर जाता है। उनके मन में यह सवाल उठता है कि जो सरकार “सबका साथ, सबका विकास” का दावा करती है, उसने उन्हें समान अवसर क्यों नहीं दिया?
PPS और PCS संवर्ग के अधिकारी अपने जीवन का बड़ा हिस्सा IAS/IPS कलेक्टर और कप्तान के अधीन काम करने में बिताते हैं और उस समय का इंतजार करते रहते हैं, जब उन्हें खुद उस कुर्सी पर बैठने का अवसर मिलेगा। उनके मन में यह विचार होता है कि जब वे जिलाधीश या पुलिस अधीक्षक, मंडल आयुक्त या DIG, IG बनेंगे, तो वे कुछ अलग और बेहतर करके दिखाएंगे। जिन अधिकारियों को मौका मिल जाता है, वे भाग्यशाली होते हैं, लेकिन बाकी लोग अपने विचार मन में लिए ही रिटायर हो जाते हैं।
उत्तर प्रदेश में स्टेट सर्विस यानी प्रमोशन से और डायरेक्ट कोटे से लगभग 540 IAS और 450 IPS अधिकारी तैनात होते हैं। यह संभव नहीं है कि सभी को लगातार महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया जा सके। लेकिन यदि न्यायपूर्ण तरीके से तैनाती प्रक्रिया अपनाई जाए, तो अधिकांश अधिकारियों को रिटायर होने से पहले एक बार जिलाधिकारी, कप्तान, DIG, और कमिश्नर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काम करने का अवसर दिया जा सकता है। हर लोक सेवक को उसकी सर्वोच्च कार्यकुशलता दिखाने का अवसर दिया जाना नैसर्गिक न्याय के अनुकूल है।
जिन अधिकारियों ने अपना पूरा जीवन सरकारी तंत्र की सेवा में बिता दिया, जब वही खुद को अन्याय का शिकार मानते हैं, तो उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र स्वस्थ कैसे कहा जा सकता है? आमतौर पर ज्यादातर सरकारों में महत्वपूर्ण पदों पर साल-दो साल के अंतराल पर अधिकारियों का तबादला होता है, जबकि अधिकतम तीन वर्षों का नियम है। अगर सरकार की कृपा हो जाए, तो सारे नियम ढीले पड़ जाते हैं।
अवसर की समानता लोकतंत्र की मूल अवधारणा है। पहले भी कुछ पार्टियों के शासन में पोस्टिंग में भेदभाव की बात सामने आती रही है, लेकिन भाजपा सरकार से लोगों को न्यायपूर्ण पोस्टिंग की अपेक्षा थी, क्योंकि भाजपा “सबका साथ, सबका विकास” का नारा देती है। फिर भेदभाव क्यों? यह सवाल कई अधिकारी दबी जुबान में कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश शासन के अंतर्गत काम करने वाले तमाम अधिकारी, नाम न छापने की शर्त पर, कहते हैं कि वे अपेक्षाकृत महत्वहीन पदों पर लंबे समय से तैनात हैं, क्योंकि शासन में उनकी सुनवाई नहीं होती। सूत्रों के अनुसार, कई अधिकारी ऐसे हैं, जो IAS और IPS बनने के बाद भी कभी किसी जिले के कलेक्टर या कप्तान नहीं बन पाए और रिटायर हो गए।
उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद में कई IAS अधिकारी कहते हैं कि वे सरकार की भेदभावपूर्ण पोस्टिंग नीति के शिकार हो रहे हैं। कम से कम एक बार तो IAS बनने के बाद जिलाधिकारी के पद पर काम करने का अवसर मिलना चाहिए। अगर IAS बनने के बाद एक बार भी DM नहीं बन पाए, तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। सरकार चाहे तो अधिकांश अधिकारियों को यह अवसर मिल सकता है। कई अधिकारी लंबे समय से जिलों में महत्वपूर्ण पदों पर तैनात हैं, और कई अधिकारी उपेक्षित पदों पर।
इसी प्रकार पुलिस मुख्यालय में तैनात कई IPS अधिकारी भी निराश हैं। उन्हें लगता है कि सरकार उनके साथ उपेक्षा कर रही है। कई IAS अधिकारी मंडलों में अपर आयुक्त के रूप में लंबा समय काट रहे हैं। आवास विकास समेत तमाम विभागों में भी कई वर्षों से IAS अधिकारी तैनात हैं। पुलिस विभाग की शाखाओं, जैसे विशेष जांच, CBCID आदि में भी कई IPS अधिकारी लंबे समय से तैनाती का इंतजार कर रहे हैं, और उन्हें उम्मीद है कि कभी प्रमुख सचिव गृह, प्रमुख सचिव नियुक्ति या मुख्यमंत्री की नजरे इनायत होगी।
कोई भी अधिकारी इतना साहस नहीं करता कि नौकरी करते हुए खुलकर अपना असंतोष जाहिर करे, लेकिन दबी जुबान में अपना दर्द व्यक्त करने वाले अधिकारियों की संख्या बड़ी है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हर वर्ग के अधिकारियों को आशा है कि वे उनके साथ न्याय करेंगे। उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसे IAS/IPS अधिकारी भी हैं, जो लंबे समय से महत्वपूर्ण पदों पर तैनात हैं और कई बार DM, कप्तान, DIG, IG बन चुके हैं। वहीं कई IAS/IPS ऐसे हैं, जो कई वर्षों से पोस्टिंग में न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उन्हें लगता है कि वे उपेक्षा के शिकार हैं।
इस समस्या के राजनीतिक और सामाजिक निहितार्थ भी महत्वपूर्ण हैं। जातिगत राजनीति और विपक्ष के विमर्श में अधिकारियों की भी बड़ी भूमिका होती है। जिन वर्गों के अधिकारी खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं, वे अपने समाज में दबी जुबान में इन बातों का प्रचार करते हैं, और सत्ताधारी दल को इसका नुकसान चुनावों में उठाना पड़ता है। हालाँकि, केवल जाति को अधिकारियों की तैनाती का मानक नहीं होना चाहिए। प्रशासनिक व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए बिना भेदभाव के सभी वर्गों के अधिकारियों को अवसर मिलना चाहिए।
इस विषय पर खबर लिखना किसी भी पत्रकार के लिए आसान नहीं है, क्योंकि कोई भी अधिकारी खुलकर अपनी बात नहीं रखता। विपक्ष के लोग आरोप लगाने को तैयार हैं, लेकिन सत्ता पक्ष यह मानने को तैयार नहीं कि पोस्टिंग में भेदभाव होता है। जो पीड़ित हैं, वे भी खुलकर अपना दर्द नहीं कहते, लेकिन ब्यूरोक्रेसी के एक हिस्से में असंतोष की बात सभी जानते हैं।
फिर भी हमें उम्मीद है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस खबर को देखेंगे और पिछले कई वर्षों के ट्रांसफर-पोस्टिंग की समीक्षा करेंगे। न्यायपूर्ण तरीके से सभी अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर काम करने का अवसर सुनिश्चित करेंगे। यह सही है कि बेहतर काम करने वाले अधिकारियों को हर सरकार अपने निकट रखती है, लेकिन कई बार अवसर मिलने पर अधिकारी खुद अपनी क्षमताओं को विकसित कर लेते हैं, इसलिए सभी को मौका अवश्य मिलना चाहिए।